दशहरे पर मोहन भगवत का सन्देश / किसी को छूट ना मिले, बच्चो को संस्कारी बनाये, जनसँख्या नियंत्रण कानून पर दिया जोर
नागपुर,05अक्टूबर(इ खबर टुडे)। आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे पर अपने भाषण में समाज में एकता की अपील की है। खासतौर पर दलितों के खिलाफ अत्याचार का जिक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि कौन घोड़ी चढ़ सकता है और कौन नहीं, इस तरह की बातें अब समाज से विदा हो जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि समाज में सभी के लिए मंदिर, पानी और श्मशान एक होने चाहिए। उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों से इसके लिए प्रयास करने की अपील की। मोहन भागवत ने कहा कि ऐसे प्रयास संघ के स्वयंसेवक करेंगे तो समाज में विषमता को दूर किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि जाति के आधार पर विभेद करना अधर्म है। उन्होंने कहा कि यह धर्म के मूल से परे है।
बच्चों को सिर्फ पैसा कमाने की मशीन बनना न सिखाएं
उन्होंने कहा कि जब हम यह सोचकर बच्चों को भेजें कि उन्हें अच्छा नागरिक बनाना है तो वह बेहतर व्यक्ति और संस्कार युक्त बनेंगे। ऐसा नहीं करेंगे तो बच्चे पैसा कमाने की मशीन ही तो बनेंगे। उन्होंने कहा कि सामाजिक कार्यक्रमों में और महात्माओं के द्वारा भी व्यक्तित्व का निर्माण होता है। सिर्फ स्कूल और कॉलेजों में ही लोग तैयार नहीं होते हैं। लोकमान्य तिलक गुरुकुल में नहीं पढ़े, महात्मा गांधी ने भी ऐसा नहीं किया था। डॉ. हेडगेवार की शिक्षा अंग्रेजी स्कूल में थी, लेकिन इन महान लोगों पर इसका असर नहीं था। इन सभी को समाज और परिवार के संस्कारों के चलते आगे बढ़ने का मौका मिला।
जनसंख्या नियंत्रण की नीति लाए सरकार
जनसंख्या पर एक समग्र नीति बने, सब पर समान रूप से लागू हो, किसी को छूट नहीं मिले, ऐसी नीति लाना चाहिए। 70 करोड़ से ज्यादा युवा हैं हमारे देश में। चीन को जब लगा कि जनसंख्या बोझ बन रही है तो उसने रोक लगा दी। हमारे समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा। नौकरी-चाकरी में भी अकेली सरकार और प्रशासन कितना रोजगार बढ़ा सकती है? समाज अगर ध्यान नहीं देता है तो होता है।
इस दौरान मोहन भागवत ने रोजगार के मुद्दे पर भी बात की और कहा कि सिर्फ सरकारी नौकरी करना ही रोजगार नहीं है। उन्होंने कहा कि आर्थिक उन्नति के लिए रोजगार की बात आती है और स्किल ट्रेनिंग हो रही है। हम सब लोग चाहते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था रोजगार उन्मुख हो और पर्यावरण फ्रेंडली हो। लेकिन इसके लिए हमें उपभोग त्यागना होगा। ऐसा तो नहीं है कि अपने वैभव को प्रकट करने के लिए लुटाते हैं। रोजगार का अर्थ सिर्फ सरकारी नौकरी नहीं है। उसमें भी लोग सोचते हैं कि सरकारी नौकरी हो और पास में ही हो। किसी भी समाज में 20 से 30 फीसदी नौकरियां ही होती हैं। अन्य लोगों को अपनी आजीविका के लिए कोई और उद्यम करना होता है। यदि हम लोग खुद रोजगार के सृजन के प्रयास नहीं करेंगे तो अकेले सरकार कितनी नौकरियां दे सकती है।
जो कार्रवाइयां चल रही हैं, भोले मन से समाज उसमें फंसे नहीं
हमारे बीच दूरियां बढ़ाने के लिए सतत प्रयास करते रहते हैं जिससे देश में आतंक का वातावरण बने। किसी को कोई डर न रहे, अनुशासन न रहे, ऐसा प्रयास हमेशा चलते रहते हैं। हम उनको पैठ दें, इसलिए वो हमसे नजदीकी जताते हैं। जाति, पंथ, संप्रदाय के नाम पर वो हमारे हमदर्द बनके आते हैं जबकि उनका अपना हित होता है। वो अपने हितों के लिए देश-समाज के विरोधी बन जाते हैं। भागवत ने गैर-कानूनी घोषित किए गए इस्लामी कट्टरपंथी संगठन पीएफआई पर हुई कार्रवाइयों की तरफ इशारा किया। उन्होंने सचेत किया, ‘जो कार्रवाइयां चल रही हैं, भोले मन से समाज उसमें फंसे नहीं।’