सत्ता के लिए नैतिक आचरण भुलाकर कितना गिरेंगे राजनेता।।
चंद्र मोहन भगत.
महाराष्ट्र की राजनीति में वर्तमान सत्र में राजनीति के नैतिक आचरण में गिरावट का दौर लगातार जारी है ।।पिछले दो दिनों में राजनीतिक जमीर बेचने खरीदने का दूसरा प्रमाणिक उदाहरण जनता के सामने दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा और देश की जानी-मानी पार्टी एनसीपी ने प्रस्तुत किया है । इसमें भाजपा का रोल नैतिकता को गिरा कर सत्ता पर काबिज होने वाला तो एनसीपी का जमीर बेचकर गिरकर सत्ता पाने वालारहा है। अप्रत्यक्ष रूप से केंद्रीय सत्ता अपनी ताकत का उपयोग भी नैतिक गिरावट के लिए करने लगी है।
स्वाभाविक दृश्य में साफ नजर आता है कि महाराष्ट्र में दूसरी बार केंद्र सरकार ने अपने अधीन अदृश्य राजनीतिक भविष्य मारक अस्त्रों को नीति विरुद्ध सत्ता के युद्ध में तैनात किया है ।इतने निम्न स्तर पर गिरकर केंद्रीय सरकार ने पहले शिवसेना के नेताओं को गिराया और हाल में एनसीपी नेताओं को नैतिक गिरावट स्वीकारने को मजबूर कर दिया। दोनों ही दलों को गिरावट स्वीकारने के लिए किन मारक अस्त्रों का उपयोग करने के नाम से डराया गया सार्वजनिक है ।
ऐतिहासिक दौर में कहा जाता था युद्ध में सब जायज है जितने के लिए वर्तमान लोकतंत्र में सत्ता पाने के लिए जितनी भी अनीति अपनाई जाए सब जायज है । महाराष्ट्र में विधान सभा चुनाव के बाद से राजनीति में अनीतियों का लगातार सार्वजनिक प्रदर्शन किया जा रहा है । इस सत्ता के राजनीतिक युद्ध में भाजपा शिवसेना और एनसीपी का त्रिकोणीय संघर्ष चल रहा है । कौन कब किस के कितने विधायक छीन कर सत्ता हासिल कर ले राजभवन तक बस यही सब घट रहा है । इसके बाद कानूनी मान्यता के लिए न्यायालय में संघर्ष भी होना तय माना जा रहा है। जनता जनार्दन और दर्शकों के मस्तिष्क में न चाहते हुए भी यह संघर्ष जारी है कि हमारे मतों से चुने गए विधायक ने स्वतः अपनी नैतिक विधायकी बेची या लाभ कमाने के लिए या कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए, यह शोध का विषय होकर समय के गर्भ में है ।
इस सत्ता के युद्ध लाभ की स्थिति में भाजपा रहेगी ही तब नुकसान सिर्फ शरद पवार का होगा या एनसीपी या महाराष्ट्र विकास अघाड़ी दल का जिसमें कांग्रेसी विधायक भी शामिल है । राजनीति में अनुभवी दूरदर्शी और दक्षता की मिसाल बन चुके एनसीपी प्रमुख शरद पवार पहले ही इशारा कर चुके थे कि उनके विधायकों को ईडी के नोटिस मिल चुके हैं और कार्रवाई से बचने के लिए भाजपा से हाथ मिला सकते हैं ! कुछ नाम भी उजागर हुए थे ऐसा ही होता भी हो भी गया। अब खोज का विषय ये है कि शरद पवार के भतीजे अजीत पवार अपनी मर्जी से, ई डी के डर से या शरद पवार के आदेश से भाजपा में दूसरी बार सहज समाए हैं । यह भी कि शरद पवार अजित पवार को महाराष्ट्र सरकार का उप मुख्यमंत्री बने रहने देंगे या पहले की तरह 100 घंटे भी पूरे नहीं होने देंगे और वापसी करा लेंगे ! जो भी होगा सामने आ जाएगा पर राजनेताओं के नैतिक गिरावट की ये पाताली सीमा होगी। फिर भी इस नाटक के सभी राजनीतिक पात्र इसे नैतिक गिरावट को अपने मतदाता और प्रदेश के हित में जायज ठहराएंगे । सामान्य जन को महाराष्ट्र की राजनीति के इस दृश्य में नैतिकता से नीचे गिरने और गिराने वाले सभी पात्र नजर आए होंगे ।
भविष्य मारक अस्त्र चलाने की धमकी देने वाली केंद्रीय सत्ता और इन से डर कर अपने मतदाताओं से अनुमति लिए बगैर समझौता करने वाले विधायक । इनकी विशेषता जानने के लिए यह उल्लेख भी जरूरी है कि हमाम में दोनों सामाजिक चारित्रिक नैतिक दृष्टि से नितांत बेशर्मी की हद तक नंगे है। क्योंकि केंद्रीय ताकतवर संस्था ने जिन विभागों के अस्त्रों का डर दिखाया था उन अस्त्रों की अपराध सीमा में यह लोग क्यों कैसे और कब समाहित हो गए ! अपने ही अपराध को इतना बड़ा क्यों कर दिया कि आज विरोधी सत्ता की शासकीय ताकत के आगे मतदाताओं का विश्वास तोड़ कर घटने टेक कर घिघियाने लगे हैं । ये भी कि जब काबिल विधायक बनने के लिए अपने मतदाताओं के सामने हाथ जोड़ कमर तक झुक रहे थे तब तो ईडी के भविष्य मारक शास्त्रों की मारक क्षमता से बाहर थे ।
अचानक विधायक चुने जाने के बाद से ऐसा क्या करने लगे थे कि इनके बैंक खाते लाकर घरों की दीवारें सूटकेस बिस्तर पेटियां भारतीय मुद्राओं से भरी रहने लगी ? ऐसे सभी दल बदलू विधायकों की नैतिक गिरावट रोकने के लिए गिरने से पहले मारक अस्त्रों में लपेटकर कृष्ण कुंज भेज देना चाहिए ताकि भविष्य में कम से कम मतदाताओं का विश्वास तोड़ने वाला कोई जनप्रतिनिधि बनने की हिम्मत ना करें ।