BJP Dissatisfaction : असंतुष्टों को मनाने की कवायद, लेकिन दीपक के दलबदल की चिंता नहीं भाजपा को ; भाजपा नेताओं के दलबदल में साथ नहीं देते कार्यकर्ता
भोपाल 07 मई ( इ खबर टुडे /वैभव गुप्ता)। क्या भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश इकाई में विधानसभा चुनाव से पहले वाकई भगदड़ मचने जा रही है? यह सवाल पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी के कांग्रेस में जाने से खड़ा हुआ है। इसके अलावा इंदौर में भंवर सिंह शेखावत, सत्यनारायण सत्तन, जबलपुर में अजय विश्नोई, रतलाम में हिम्मत कोठारी और ग्वालियर में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भतीजे अनूप मिश्रा के असंतोष में उठे सुरों को लेकर भी यह कयास लगाया जा रहा है। यह सब भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की गिनती में आते हैं। कभी सत्ता और संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके इन नेताओं का पार्टी में बदलाव के साथ वक्त भी बीत गया है। विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ पार्टी में उठे असंतोष की यह आवाजें नेतृत्व को चिंता में डालने वाली जरूर हैं लेकिन भाजपा इसकी बहुत ज्यादा चिंता करेगी, ऐसा लगता भी नहीं हैं।
इसके कारण बहुत साफ हैं। भाजपा में कार्यकर्ता आमतौर पर नेता के साथ तभी तक रहता है जब तक कि नेता पार्टी में बना रहे। पार्टी छोड़ने के बाद आमतौर पर भाजपा कार्यकर्ता नेता के पीछे नहीं भागता है। केडर बैस पार्टी की यही सबसे बड़ी मजबूती है। दीपक जोशी का तो कोई बड़ा राजनीतिक कद नहीं है सिवाए इस पहचान के कि वे पार्टी के संस्थापक सदस्य, वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के सुपुत्र हैं। बहुतों को शायद अब याद ना हो लेकिन यह भी एक तथ्य है कि दीपक जोशी 1990 में पार्टी के संगठन चुनाव में भोपाल के टीटी नगर मंडल अध्यक्ष का चुनाव एक साधारण कार्यकर्ता राकेश गुप्ता से हार गए थे। एक बार अपने पिता की परम्परागत सीट बागली और दो बार हाट पिपल्या से विधायक रहे दीपक जोशी 2018 में विधानसभा का चुनाव मंत्री रहते हुए हार गए थे। हो हल्ले के अलावा दीपक जोशी भाजपा को कोई बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा पाएंगे, इसकी संभावना लगभग नगण्य है।
अतीत में भाजपा से पूर्व मुख्यमंत्री वीरेन्द्र कुमार सखलेचा और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी बगावत कर नई पार्टी खड़ी की थी, लेकिन ये दोनों बड़े नेता भी भाजपा को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा पाए थे। तथ्य यह भी है कि भाजपा की विचारधारा में डूबे किसी बड़े नेता ने जब भी पार्टी से बगावत की, कांग्रेस में जाने की तुलना में नई पार्टी का गठन किया और वक्त के साथ वापस भाजपा में वापसी की। दीपक जोशी का राजनीतिक कद इतना बड़ा नहीं है कि वे खुद कोई नया राजनीतिक दल बना पाते, लिहाजा कांग्रेस में जाकर उन्होंने सही या गलत कदम उठाया है, यह आने वाला समय बताएगा।
बाकी अभी जो नेता पार्टी में रहकर खुलकर असंतोष व्यक्त कर रहे हैं, वे भी अब धारदार नहीं बचे हैं। हिम्मत कोठारी कभी मालवा के लोकप्रिय नेता हुआ करते थे , लेकिन 2008 में वे अपनी परम्परागत सीट रतलाम शहर से निर्दलीय पारस सकलेचा के हाथों बुरी तरह हारे थे। 2013 में उनका टिकट काट कर पार्टी ने चेतन काश्यप को टिकट दिया था, काश्यप रतलाम से लगातार दो चुनाव भारी अंतर से जीत चुके हैं। लिहाजा यह माना जाता है कि रतलाम में हिम्मत कोठारी युग का अंत हो चुका है। इसी तरह भंवर सिंह शेखावत या सत्यनारायण सत्तन भी बीते वक्त की बात हो चुके हैं। अजय विश्नोई लगातार असंतोष व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी है। असल में भाजपा को इन नेताओं के असंतोष से ज्यादा चिंता उन कार्यकर्ताओं की है, जो पार्टी में ही रहकर पीढ़ी बदलाव के दौर में उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। लिहाजा, भाजपा संगठन लगातार यह कवायद कर रहा है कि पार्टी के उन निष्ठावान कार्यकर्ताओं को, जो अपने को उपेक्षित मान रहे हैं, उनका असंतोष दूर किया जाए। इसके लिए भाजपा ने बकायदा पार्टी के एक दर्जन से ज्यादा सीनियर नेताओं को पूरे प्रदेश में ऐसे कार्यकर्ताओं से मिलने के लिए कहा था। भाजपा यह सारी प्रक्रिया पूरी करके ऐसे कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के प्रयासों में जुटी हुई है।