DP Jewellers : शेयर बाजार के लिए लिस्टेड तो हुआ,लेकिन नकली हालमार्क लगी ज्वेलरी बेचने के आरोपों से भी घिरा है डीपी ज्वेलर्स
रतलाम,13 नवंबर (इ खबरटुडे)। वैसे तो यह रतलाम के लिए प्रतिष्ठा का विषय है कि रतलाम के आभूषण व्यवसायी डीपी ज्वेलर्स द्वारा बनाई गई कंपनी डीपी आभूषण इसी महीने नेशनल स्टाक एक्सचेंज के लिए लिस्टेड हुई है,लेकिन कंपनी के शो रुम्स पर नकली हालमार्क लगी ज्वेलरी बेचने और सोने की अधिक कीमतें वसूलने के आरोप इस प्रतिष्ठा को धूमिल भी कर सकते हैैं। कंपनी के भोपाल स्थित शोरुम के विरुद्ध न्यायालय द्वारा नकली हालमार्क लगी ज्वेलरी बेचने के मामले में बाकायदा अर्थदण्ड की कार्यवाही भी हो चुकी है।
डीपी ज्वेलर्स फर्म की नींव 1940 में स्व.धूलचंद कटारिया ने रखी थी और बाद में इसे स्व.पन्नालाल और मनोहर लाल कटारिया ने आगे बढाया। डीपी ज्वेलर्स ने 2010 में विस्तार प्रारंभ किया और इन्दौर में शोरुम खोला गया। इसके बाद 2012 में उदयपुर और 2015 में भोपाल में शोरुम खोले गए। वर्तमान में भीलवाडा और उज्जैन मे भी शोरुम खोले जा चुके है। डीपी ज्वेलर्स की सफलता की कहानी के बीच बीच में सोने की क्वालिटी,कीमतों को लेकर आरोप लगे तो कर्मचारियों के शोषण जैसे आरोप भी लगते रहे,लेकिन इन सबके बावजूद यह कंपनी विस्तार करती चली गई।
वर्ष 2018 में डीपी ज्वेलर्स ने अपने प्रतिष्ठान को लिमिटेड कंपनी में बदलने की शुरुआत की और कंपनी को स्टाक एक्सचेंज में लिस्टेड कराने की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी गई। किसी कंपनी को स्टाक एक्सचेंज में लिस्टेड कराने के लिए कंपनी को प्रतिवर्ष स्टाक एक्सचेंज को कंपनी की आडिट रिपोर्ट भेजना होती है और इसी के साथ कारपोरेट कंपनीज के लिए बनाए गए तमाम नियमों का पालन भी करना होता है। डीपी ज्वेलर्स ने डीपी आभूषण लिमिटेड की पहली आडिट रिपोर्ट 30 मई 2018 को नेशनल स्टाक एक्सचेंज को भेजी और इसी के साथ कंपनी को स्टाक एक्सचेंज मेंं लिस्टेड कराने की प्रक्रिया शुरु हो गई। कंपनी के कुल छ: बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में से तीन तो कटारिया परिवार के ही है,जबकि अन्य तीन रतलाम के ही व्यवसायी हैं। आकंडों के लिहाज से कंपनी भारी मुनाफा अर्जित कर रही है। कंपनी ने 31 मार्च 2019 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 1645.34 लाख रु. का शुद्ध मुनाफा दर्शाया है। जानकारों की मानें तो यह मुनाफा बेहद कम दर्शाया गया है,क्योंकि सोने के व्यवसाय का बडा हिस्सा नगद में होता है और इसे बैलेंस शीट में दर्शाया भी नहीं जाता।
लेकिन इसे रतलाम का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि स्थानीय व्यवसायी व्यवसाय को तो कारपोरेट स्तर पर ले जाने की तैयारी करते है लेकिन उनके तौर तरीकों में कारपोरेट स्तर की प्रतिबद्धता और प्रोफेशनलिज्म दिखाई नहीं देता। उनका व्यवसाय करने का तरीका नहीं बदलता। वे कस्बाई मानसिकता को छोड नहीं पाते और उन्ही तौर तरीकों को अपनाए रहते है।
ऐसी ही कहानी डीपी आभूषण के साथ भी हुई। एक तरफ तो कंपनी लिमिटेड कंपनी में बदल कर नेशनल स्टाक एक्सचेंज में लिस्टेड होने की तैयारी कर रही थी,लेकिन दूसरी तरफ नकली हालमार्क लगाकर ज्वेलरी बेचने,ज्वेलरी की बनवाई में निर्धारित राशि से अधिक राशि वसूलने और सोने की क्वालिटी में गडबडी करने जैसे तौर तरीके भी जारी थे। जिस समय कंपनी द्वारा कंपनी संचालन के लिए प्रोफेशनल कंपनी सैक्रेटरी और आडिटर आदि की सेवाएं ली जा रही थी,उसी समय कंपनी द्वारा धोखाधडी भी की जा रही थी।
धोखाधडी की इन्ही शिकायतों के आधार पर भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा कंपनी के भोपाल और इन्दौर स्थित शोरुम पर छापे मारे गए। इन छापों में भारी मात्रा मेंनकली हालमार्क लगी ज्वेलरी बरामद की गई। भारतीय मानक ब्यूरो ने कंपनी के मालिक रतनलाल कटारिया और मैनेजर राजेश पटेल के खिलाफ ब्यूरो आफ इण्डियन स्टैण्डर्ड एक्ट की धारा 11 सहपठित 33 के तहल प्रकरण दर्ज कर भोपाल सीजेएम न्यायालय मेंआपराधिक प्रकरण क्र.6241/2017 पेश किया। प्रकरण की सुनवाई के पश्चात डीपी ज्वेलर्स,रतनलाल कटारिया और मैनेजर राजेश पटेल को नकली हालमार्क वाली ज्वेलरी रखने व बेचने के अपराध में दोषसिद्ध करार देते हुए दोनो अभियुक्तों और शोरुम पर 25-25 हजार रु. का अर्थदण्ड लगाया। उक्त आदेश की अपील जबलपुर ंहाईकोर्ट में की गई तो हाईकोर्ट ने प्रकरण क्र. सीआरआर 3448/2018 में सुनवाई के बाद न सिर्फ जुर्माने की रकम को पच्चीस हजार रु. से बढाकर 40 हजार रु. कर दिया,बल्कि जब्त की गई संपूर्ण नकली हालमार्क वाली ज्वेलरी को राजसात करने के आदेश भी दिए।
मेकिंग चार्ज मेंं भी गडबडी के आरोप
आमतौर पर ज्वेलरी व्यवसाई स्वर्णाभूषणों की मेकिंग चार्ज (बनवाई)के लिए 2 से 7 प्रतिशत की राशि वसूलते है,लेकिन कहा जाता है कि डीपी ज्वेलर्स द्वारा 11 से 35 प्रतिशत तक मेकिंग चार्ज वसूला जाता है। रतलाम के सोने की प्रतिष्ठा पूरे देश में फैली है,ऐसे में रतलाम की शुध्दता की प्रतिष्ठा के नाम पर डीपी ज्वेलर्स द्वारा बडे शहरों में सोने के दाम कहीं अधिक वसूले जा रहे हैैं।
कारपोरेट आफिस में भी गडबडी
वैसे तो कंपनी अब कारपोरेट कंपनी बन गई है और इसका कारपोरेट आफिस भी कालबादेवी मुंबई मेंं है। लेकिन इस कारपोरेट आफिस में जिम्मेदार कर्मचारी भी मौजूद नहीं होते। कारपोरेट आफिस की जिम्मेदारी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को दे दी गई है,जो किसी भी पूछताछ में कंपनी के रजिस्टर्ड आफिस पर बात करने की सलाह दे देते है। कंपनी का रजिस्टर्ड आफिस रतलाम के चांदनीचौक में है।
सीएसआर भी सिफर
किसी कंपनी के कारपोरेट कंपनी में तब्दील होने पर कंपनी को कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) फण्ड की व्यवस्था करना होती है और सीएसआर के माध्यम से समाजसेवा के काम करने होते है। रतलाम में संचालित होने वाले अन्य कारपोरेट कंपनियों द्वारा सीएसआर फण्ड से कई जनहितैषी कार्य किए जाते है। रतलाम के जिला चिकित्सालय,उद्यानों और अन्यान्य स्थानों पर विभिन्न उद्योगों के सीएसआर फण्ड से किए गए जनहितैषी कार्य सभी को नजर आते हैैं,लेकिन डीपी आभूषण लिमिटेड द्वारा सीएसआर फण्ड से कोई कार्य अब तक किसी की नजर में नहींआया है। वैसे तो कंपनी ने नियमों की पूर्ति के लिए बाकायदा सीएसआर पालिसी बना रखी है और सीएसआर फण्ड का उपयोग भी कागजों में दर्शाया जाता होगा,लेकिन शहर की किसी समस्या के निराकरण के लिए इस फण्ड का कहीं उपयोग अब तक कहीं भी दिखाई नहीं दिया है।