May 2, 2024

अजहर हाशमी का गजल-संग्रह ‘मामला पानी का’ हिन्दी साहित्य को सौगात है- डॉ क्रांति चतुर्वेदी

रतलाम,13मार्च(इ खबर टुडे)। प्रसिद्ध लेखक और पर्यावरण- विशेषज्ञ डॉ क्रांति चतुर्वेदी ने साहित्यकार प्रो. अजहर हाशमी के हाल ही में प्रकाशित हिन्दी ग़ज़ल संग्रह ‘ मामला पानी का, वर्चुअल विमोचन किया। डॉ चतुर्वेदी ने इस ग़ज़ल संग्रह की कई विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रो. अजहर हाशमी का गजल-संग्रह ‘मामला पानी का हिन्दी साहित्य को अमूल्य सौगात है। हाशमीजी वैसे हिन्दी साहित्य की कई विधाओं पर अधिकार पूर्वक लिखते हैं। संस्मरण से लेकर व्यंग्य तक, निबंध से लेकर मुक्तक तक, अतुकांत कविता से लेकर गीत और गजल तक हाशमी जी की विलक्षण प्रतिमा से पाठको का साक्षात्कार होता है। लेकिन खास बात यह है कि कई विधाओं में लिखने के बावजूद हाशमी जी मूलत: गीतकार और ग़ज़लकार पहले हैं तथा अन्य विधाओं के रचनाकार बाद में ।

डॉ चतुर्वेदी ने कहा कि प्रो. अजहर हाशमी का हिन्दी गजल-संग्रह मामला पानी का उन सभी पहलुओं को रेखांकित करता है, जिन्हें हम पारिवारिक-सामाजिक साहित्यिक और सांस्कृतिक सरोकार कहते है। हाशमी जी का यह हिन्दी ग़ज़ल संग्रह मामला पानी का दरअसल शब्दों के ताने-बाने पर बुना हुआ सरोकारों का परिधान है। ग़ज़ल तो एक गुलदस्ते यानी पुष्पगुच्छ की तरह होती है जिसका हर शेर स्वतंत्र चिंतन का प्रतीक होता है। हाशमीजी की गजलों में भी यह बात है किंतु उन्होंने किसी एक विषय को लेकर भी शेर कहे है। इस हिन्दी गजल संग्रह (मामला पानी का) की पहली गजल ही उसका प्रमाण है। इस ग़ज़ल का हर शेर माँ की महिमा बतलाता है। हाशमी जी ने अपनी गजलों में नए बिम्बों और प्रतीको का बड़ा प्रभावी प्रयोग किया है। जैसे: स्नेह के संदूक जैसी माँ / जनवरी की धूप जैसी माँ ।”

संदर्भ प्रकाशन, भोपाल द्वारा प्रकाशित मामला पानी का गजल संग्रह में 94 गजलें हैं। हर ग़ज़ल कोई-न-कोई संदेश देती है। कुछ शेर या काव्य-पंक्तियाँ तो ऐसी है कि बेहद सरल भाषा में संदेश दे जाती है। जैसे:-जो शख्स तेरे दुख में तेरे साथ खड़ा था/ कद उसका फ़रिश्ते से कहीं ज्यादा बड़ा था। डॉ चतुर्वेदी ने आगे कहा कि इस हिन्दी गजल संग्रह के कुछ शीर्षक पाठकों को पढ़ने के लिए आकर्षित करते हैं। जैसे इतवार के अखबार जैसी माँ, न्याय है पिता’, ‘सूरज @ मकर संक्रांति’, ‘आग की बारिश’, ‘रिश्तों’ से गायब गर्माहट की कस्तूरी’ ईद मुबारक’, ‘वन घायल हैं, डरी सी नदियाँ ‘दिल की धड़कन सही तो सही ज़िन्दगी, ‘कार’ से भी ज्यादा संस्कार ज़रूरी,’ चल पड़ा मौसम पहनकर कोहरे की वरदी।

सबसे उल्लेखनीय तो यह है प्राय: हर पुस्तक में किसी-न-किसी द्वारा लिखित भूमिका होती है, परंतु हाशमी जी ने मामला पानी का’ में नवाचार करते हुए कहा है : भूमिका यह कि .. कोई भूमिका नहीं। प्रो. हाशमी का यह हिन्दी गजल संग्रह पाठकों को तो पसंद आएगा ही, नवोदित गजलकारों के लिए भी पाठशाला की तरह होगा।

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