May 2, 2024

आत्ममुग्ध नेता या अभिनेता…….?

-डॉ डीएन पचौरी

गाना एक दिल और सौ अफ़साने हाय मोहब्बत हाय जमाने इसी गाने से मिलती-जुलती कुछ हालत मोहब्बत की दुकान के मालिक पप्पू उर्फ राहुल बाबा उर्फ राहुल गांधी की हो रही है। उमर 55 की दिल बचपन का। बेचारे इस उमर में भी बाबा कहलाते हैं अर्थात अकल से अपरिपक्व हैं। अब जाने कब अक्ल परिपक्व होगी और निर्णय लेने की क्षमता आएगी? लेखक को राहुल गांधी से ईर्ष्या द्वेष नफरत ऐसा कुछ नहीं है किंतु सच्चाई तो सामने दिखती है। श्रीमान हमेशा कुछ ऐसे कारनामे करते रहते हैं जिससे उनकी छवि उन्हें पप्पू या बाबा कहने पर मजबूर करती है। आइए उनके कुछ हाल के महीनों के कारनामे देखिए।

अभी 8 जुलाई 2023 को हरियाणा के सोनीपत के गांव मैं एक किसान के घर पहुंच गए और उसका ट्रैक्टर चलाया साथ ही कीचड़ और पानी से भरे हुए खेत में उन्होंने धान के रोपाई की। किसान उसके बच्चे आसपास के किसान और उनकी औरतें सबके साथ चारपाई पर बैठ कर उन्होंने नाश्ता भी किया। यह सब ऐसे ही नहीं किया। इनके कार्यकलापों को लोड करने के लिए चार कैमरे चल रहे थे। जो इनके हर एक्शन की हर कोण से शूटिंग कर रहे थे। लग रहा था जैसे किसी अभिनेता की फिल्म की शूटिंग चल रही है।

5 मई को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावास में पहुंचकर छात्रों से चर्चा की उनके साथ भोजन किया और उनकी समस्याएं जानी। यद्यपि विश्वविद्यालय के अधिकारियों को यह बात पसंद नहीं आई क्योंकि देश की सबसे पुरानी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और सेलिब्रिटी या वीआईपी का इस तरह बिना सुरक्षा के घूमना अच्छी बात नहीं है। यदि कल से कुछ हो जाता है तो मीडिया और विपक्ष राहुल की गलती न मानकर सरकार की ऐसी तैसी कर देगी, पर राहुल बाबा को इसकी कोई चिंता नहीं है। मई के दूसरे हफ्ते में ही केरल में एक डिलीवरी ब्वॉय की बाइक पर बैठकर दो किलोमीटर तक यात्रा की पिज्जा और डोसे का आनंद लिया। उसके तीन-चार दिन बाद ही कर्नाटक में महिलाओं की एक बस में चढ़ गए और महिलाओं से उनकी समस्याओं के बारे में विस्तृत चर्चा की। बेचारे चर्चा ही कर सकते हैं आश्वासन दे सकते हैं क्योंकि निराकरण तो इनके हाथ में है नहीं।

मई के तीसरे सप्ताह में ट्रक में बैठकर पंजाब में चंडीगढ़ से अंबाला तक की यात्रा की और ट्रक चालकों की समस्याओं को जाना। अंतिम सप्ताह में अमेरिका गए और वही रटा हुआ भाषण जो ब्रिटेन में दिया था अमेरिका में भी दोहरा दिया और बता दिया कि भारत में लोकतंत्र की हत्या हो रही है। लोकतंत्र की हत्या की बात करते समय यह भूल जाते हैं कि दादी ने 1975 में इमरजेंसी लगाकर डेढ़ लाख लोगों को डेढ़ साल तक जेलों में बंद रखा और उन पर निर्दयता पूर्वक अत्यंत बर्बर अत्याचार किए गए। फिल्म को प्रतिबंधित किया कुछ फिल्मों के जैसे “किस्सा कुर्सी का” के प्रिंट तक जला दिए। गायकों को जैसे किशोर कुमार के गाने प्रतिबंधित किए गए उन्हें आकाशवाणी पर नहीं बजाने दिया गया। क्योंकि उस समय किशोर कुमार ने सरकारी कार्यक्रम में गाने से मना कर दिया था। क्या उस समय लोकतंत्र की हत्या नहीं हुई थी? बेचारे बाबा को इतनी समझ होती तो ऐसी बात करते ही क्यों?

अमेरिका से लौटकर दिल्ली में एक गैरेज में गए और कारीगरों के साथ इंजन सुधारने में लग गए। नट बोल्ट पर कार्य करते रहे और हाथ मुंह काले कर लिए। उनकी समस्याओं को जाना और उन्हें भी आश्वासन देकर आ गए। राहुल बाबा और दिग्विजय सिंह दोनों कुछ ऐसे कारनामे करते रहते हैं अथवा ऐसे भाषण देते हैं जो इनकी पार्टी के कांग्रेस जनों को भी पसंद नहीं है किंतु बेचारे कुछ कर नहीं सकते। कहीं पर चुनाव हो रहे हो और वहां पर कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में इन दोनों की दो दो सभाएं रखवा दी जाए तो कांग्रेस प्रत्याशी की हार लगभग तय मानी जाती है। इसीलिए विपक्षी पार्टी हमेशा चाहती है राहुल जी और दिग्विजय सिंह जी की सभाएं उनके क्षेत्र में अवश्य होनी चाहिए।

अब बोझा उठाने वाले कुली हमाल ऑटो चालक मांस मछली अंडा बेचने वाले सब्जी विक्रेता साइकिल रिक्शा चलाने वाले सभी बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं कि कब राहुल बाबा आ करके उनकी समस्याएं सुनेंगे और आश्वासन देंगे।
(लेखक शिक्षाविद और स्वतंत्र विचारक है )

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