November 14, 2024

रतलाम / शासकीय निशुल्क दवाइयां का निजी उपयोग किया, कोर्ट ने लोकसेवक को दी 10 वर्ष की सजा

रतलाम ,10 अगस्त (इ खबर टुडे)। शासकीय निशुल्क दवाइयां का अपने निजी हित में उपयोग करने एवं बिना डिग्री के मरीजों के उपचार करने वाले शासकीय लोकसेवक ड्रेसर रुस्तम सिंह नरवरिया पिता प्रेम सिंह नरवरिया निवासी ग्राम ग्राम बेड़दा को न्यायालय ने 10 वर्ष की सजा तथा ₹6000 के अर्थ दंड से दंडित किया है l

अपर लोक अभियोजक एवं शासकीय अभिभाषक सतीश त्रिपाठी ने बताया कि आरोपी शासकीय स्वास्थ्य केंद्र बेडदा जिला रतलाम में वर्ष 1986 से पदस्थ था। घटना दिनांक 13 सितंबर 2015 की है।तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी पुष्पेंद्र शर्मा को शिकायत मिली थी कि ग्राम चीरा खदान में दो बच्चों की मृत्यु हो गई है। ग्राम चीराखदान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बेडदा के अंतर्गत आता है। जांच के लिए कलेक्टर के निर्देश पर जांच दल बनाया गया था जिसमें डॉक्टर आर एन राजलवाल , डॉक्टर शैलेश, वीरेंद्र सिंह रघुवंशी तथा आशीष चौरसिया शामिल थे। उक्त जांच दल द्वारा 13 सितंबर 2015 को ग्राम बेडदा स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंच कर जांच की। इसके बाद आरोपी के ग्राम बेड़ादा स्थित निजी अस्पताल पहुंचे। जहां भारी मात्रा में शासकीय अस्पताल से मिलने वाली निशुल्क दवाइयां मिलीं।

सभी निशुल्क दवाइयां को जांच दल द्वारा जप्त कर पंचनामा बनाकर आरोपी का निजी अस्पताल सीलबंद किया गया। सभी जप्त दवाइयां शासकीय होकर गरीबों के उपयोग के लिए थी। आरोपी ने शासकीय दवाइयां का निजी बताकर लाभ कमाया। स्वास्थ्य विभाग द्वारा पुलिस थाना सरवन पर शिकायत दर्ज कराई गई। जिस पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 409 एवं मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान अधिनियम की धारा 24 में मामला पंजीबद्ध करके न्यायालय में अभियोग पत्र प्रस्तुत किया अभियोजन की ओर से 22 गवाह के कथन न्यायालय में करवाए गए।

न्यायालय ने माना निशुल्क दवाइयां का निजी उपयोग किया

तृतीय अपर जिला सत्र न्यायाधीश श्रीमती बरखा दिनकर ने आरोपी को सजा सुनाते हुए अपने निर्णय में लिखा कि आरोपी द्वारा ग्राम बेडदा के स्वास्थ्य केंद्र में गरीब मरीजों को मिलने वाली निशुल्क दवाइयां का निजी उपयोग किया है। जो दंडनीय है। आरोपी ने लोक सेवक ड्रेसर के पद पर रहते हुए चिकित्सकीय कार्य किया है। इस आधार पर आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के तहत 10 वर्ष का कारावास एवं ₹1000 का जुर्माना तथा आयुर्विज्ञान अधिनियम की धारा 24 के तहत 3 वर्ष का कारावास एवं ₹5000 का जुर्माना लगाया है। शासन की ओर से पैरवी अपर लोक अभियोजक एवं शासकीय अभिभाषक सतीश त्रिपाठी ने की।

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