November 25, 2024

Punishment : हर हफ्ते दी जा रही थोकबन्द सजा से भारी तनाव में है जिले भर के पुलिसकर्मी, तीन हफ्तों में 295 को मिली सजा, माइनर एक्ट के टार्गेट ने भी बढाई टेंशन

रतलाम,29 अगस्त (इ खबरटुडे)। प्रदेश के पुलिस मुखिया सुधीर सक्सेना द्वारा काम के भारी दबाव के चलते तनावग्र्रस्त रहने वाले पुलिस कर्मियों का तनाव दूर करने के लिए साप्ताहिक अवकाश दिए जाने के निर्देश दिए गए है। लेकिन रतलाम जिले के पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश मिलना तो दूर हर हफ्ते मिलने वाली थोकबन्द सजाओं ने पुलिस कर्मियों के तनाव में जबर्दस्त इजाफा कर दिया है। इतना ही नहीं मायनर एक्ट में अनिवार्य रुप से कार्यवाही करने के टार्गेट ने भी पुलिसकर्मियों की टेंशन बढा दी है।

पुलिस कर्मियों पर काम का जबर्दस्त दबाव रहता है। अपराधों की विवेचना,न्यायालय की पेशियां,इसके अलावा ला एण्ड आर्डर की ड्यटियां,रात्रि गश्त जैसी लगातार व्यस्तताओं के चलते पुलिस कर्मियों के काम के घण्टे तक निर्धारित नहीं होते। त्यौहारों के मौसम और चुनाव जैसे मौको पर उन्हे कई बार लगातार चौबीस घण्टों से ज्यादा समय तक काम करना पडता है। काम के अत्यधिक दबाव का प्रतिकूल असर पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य पर तो पडता ही है,उनके पारिवारिक सम्बन्धों पर भी इसका बुरा प्रभाव पडता है। इन्ही समस्याओं को देखते हुए पुलिस महानिदेशक सुधीर सक्सेना द्वारा प्रदेश के पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने के निर्देश दिए गए थे।

साप्ताहिक अवकाश नहीं साप्ताहिक सजाएं

इधर रतलाम में साप्ताहिक अवकाश तो आज तक किसी पुलिस कर्मी को नहीं मिला,लेकिन पिछले तीन हफ्तों से थोकबन्द सजाएं जरुर मिल रही है। पिछले तीन हफ्तों में अब तक कुल 295 पुलिसकर्मियों को निन्दा की सजा दी जा चुकी है। पहली थोकबन्द सजा उस दिन दी गई थी,जिस दिन पूरा देश स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मना रहा था और जिस दिन कई सजायाफ्ता कैदियों की सजाएं माफ भी की जाती है। लेकिन रतलाम में पन्द्रह अगस्त के दिन जिले के 148 लोगों को निन्दा की सजा दी गई। उसके बाद वाले हफ्ते में निन्दा की सजा पाने वालों की संख्या 86 थी,जबकि इस हफ्ते यानी आज मंगलवार को 61 कर्मियों को निन्दा की सजा सुनाई गई है। इसके साथ ही 41 को चेतावनी जारी की गई है।

डेली डायरी और टार्गेट है सजा का कारण

पुलिस कर्मियों को सजा दिए जाने के पीछे दो मुख्य कारण है। नवागत पुलिस अधीक्षक ने रतलाम का पदभार ग्रहण करने के बाद जिले के समस्त अनुसन्धान अधिकारियों को डेली डायरी लिखने के निर्देश दिए थे। पुलिस कर्मियों के आउटपुट को बढाने के उद्देश्य से सभी पुलिसकर्मियों को निर्देश दिए गए कि वे अपने प्रत्येक कार्यदिवस में किए गए कार्यों को डायरी में लिखे। जिससे कि वरिष्ठ अधिकारी जब चाहें इन डायरियों का अवलोकन कर,पुलिसकर्मी द्वारा किए गए कार्यों का मूल्यांकन कर सके। इसके साथ ही समस्त विवेचकों को मायनर एक्ट में अनिवाय रुप से कार्यवाही करने के निर्देश भी जारी किए गए। ये दोनो ही निर्देश पुलिसकर्मियों के गलें में फांस की तरह चुभ रहे है। अपनी दैनन्दिन व्यस्तता के चलते यदि वे डायरी लिखने में चूक कर जाते है तो उन्हे सजा दी जा रही है। इसी तरह यदि माइनर एक्ट के मामले दर्ज नहीं करते है तो भी उन्हे सजा दी जा रही है।

माइनर एक्ट ने किया दुखी

समस्त पुलिसकर्मियों को निर्देश दिए गए है कि वे सप्ताह में कम से कम एक प्रकरण माइनर एक्ट आवश्यक रुप से दर्ज करें। माइनर एक्ट में जुए सट्टे के प्रकरण,सार्वजनिक स्थान पर मदिरापान,चाकू लेकर घूमने पर आर्म्स एक्ट और द.प्र.सं.की धारा 107,116 तथा 151 के तहत की जाने वाली प्रतिबन्धात्मक कार्यवाहियां शामिल है। लगातार दी जा रही सजाओं के डर का असर ये है कि आजकल माइनर एक्ट के मामलों में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। पिछले हफ्ते के मात्र चार दिनों में जिले में आबकारी एक्ट की धारा 34 और 36 के कुल 111 मामले दर्ज किए गए है। इसी तरह जुए सïट्टे के मामलों में भी जबर्दस्त वृद्धि हुई है।

हांलाकि मामलों की संख्या जरुर बढी है,लेकिन ये सभी मामले बेहद मामूली है। आबकारी एक्ट में बनाए गए अधिकांश मामलों में दो चार बाटलें होने पर प्रकरण दर्ज कर लिए गए है। इसी तरह अपने खेत में बैठकर मदिरापान करने वालों को आबकारी एक्ट की धाारा 36 बी के तहत पकड लिया गया है। कई पुलिसकर्मियों को टार्गेट पूरा करने के लिए फर्जी मामले दर्ज करना पड़ रहे है। आर्म्स एक्ट के प्रकरण बनाने के लिए बाजार से सब्जी काटने वाले चाकू खरीदकर मंगवाए जाते है और आर्म्स एक्ट का प्रकरण दर्ज कर दिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा सात वर्ष तक की सजा वाले मामलों में गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाने के बाद माइनर एक्ट के किसी मामले में आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। वैसे भी माइनर एक्ट के अधिकांश मामले जमानती किस्म के होते है,जिसमें आरोपी को थाने से जमानत पर रिहा किए जाने का प्रावधान होता है। लेकिन ऐसे प्रत्येक मामले में अनुसन्धान अधिकारी को काफी लिखा पढी करना पडती है। और अन्त में जब ऐसे मामले न्यायालय में पंहुचते है तो आरोपी मामूली अर्थदण्ड की सजा पाकर छूट जाता है। कानून की जानकारी ना रखने वालों को माइनर एक्ट के प्रकरणों की बडी संख्या देखकर जरुर ये लग सकता है कि पुलिस बेहद सक्रिय हो गई है,लेकिन वास्तव में पुलिस की इस तरह की सक्रियता गंभीर अपराधों के नियंत्रण में कोई विशेष भूमिका नहीं निभा पाती है। उल्टे इस तरह के मामूली मामलों में व्यस्त होने की वजह से पुलिस गंभीर अपराधों की रोकथाम पर कम ध्यान दे पाती है।

इसलिए बढा है तनाव

हर हफ्ते दी जा रही लगातार थोकबन्द सजाओं के कारण पुलिसकर्मियों का तनाव बढता ही जा रहा है। असल में पुलिस विभाग में निन्दा की सजा को बेहद गंभीर सजा माना जाता है। पुलिसकर्मी की सेवापुस्तिका में निन्दा की तीन सजाओं के बाद उसकी वेतनवृद्धि रोकने की सजा दिए जाने का प्रावधान है। इसके अलावा निन्दा की सजा का सबसे बुरा असर पुलिसकर्मी की पदोन्नति पर पडता है। जिले में जिस गति से सजाएं दी जा रही है,प्रत्येक पुलिसकर्मी इससे घबराया हुआ है। कई ऐसे पुलिस अधिकारी,जिनका सेवाकाल दो तीन वर्ष का बचा है,अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेने का मन बना रहे है।

थाना प्रभारियों की स्थिति भी ठीक नहीं है। जिले के कई थाना प्रभारी जिला छोडकर चले जाना चाहते है। कुछ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस तनाव के कारण उन्हें हायपरटेंशन और ब्लडप्रैशर जैसी बीमारियां होने लगी है। जिसका बुरा असर आखिरकार उनकी सेवा पर पड रहा है। इतना ही नहीं एक पुलिस अधिकारी का तो ये तक कहना था कि इस तनाव का बुरा असर उसके पारिवारिक सम्बन्धों पर पड रहा है।

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