अभी तक जागे नही है अरमां ,और कसर बाकी है …।
-चंद्रमोहन भगत
बदलाव की बयार चली थी कुछ समय पहले कांग्रेस में कि लोकतंत्रिक तरीके से सुधार कर संगठन को मजबूत बनाया जाय ताकि जनमत को फिर से आकर्षित कर सके ।ये बयार थोड़े ही समय में ठंडी पड़ गई क्योंकि जिन कांग्रेसियों ने इसे उपजाया था वे पहले ही शीर्ष नेतृत्व के चाटुकार रह चुके हैं । अंतिम दौर तक पँहुच कर जब कांग्रेस का अंतिम अंत नजर आने लगा तब ये लोग संगठन में लोकतंत्र लाने की बात करेंगे तो फुस्सी बम ही साबित होंगे । तभी इनकी चलाई बयार परवान चढ़ने से पहले ही डह गई फिर बाकी कांग्रेसियों में भी अभी लोकतंत्र के अरमा अभी जागे नही हैं ।।
तो कपिल सिब्बल गुलाम नबी आजाद के साथ 23 कांग्रेसियों का संगठन को लेकर भेजे गए सुझावी पत्र को इस पीढ़ी के बाद वाले चाटुकारों ने कचरे के डब्बे के हवाले करवा दिया। ये वर्षों से कांग्रेसियों के जहन में छाई हुई स्थाई संस्कृति का नतीजा है कि नेतृत्व सही करे या गलत आवाज नही उठाने का ।जिन पदाधिकारियों ने आवाज उठाई थी ये वही लोग थे जिन्होंने कांग्रेस में किस्मत से आये लोकतांत्रिक समय का स्वागत करने की बजाय नकारा भी बेइज्जत भी किया था । समय था राजीव गांधी के बाद सीताराम केसरी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना और इन सभी की मदद से हटाया जाना । उस दौर में ये सभी पार्टी में लोकतंत्र पसन्द करने वाले कांग्रेस को एक परिवार तंत्र के हवाले करने के समर्थक थे ।
सोंचिए अगर सीताराम केसरी का दौर चलता और कांग्रेस में लोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष बनते चले जाते तो शायद आज कांग्रेस का ऐसा हश्र नही होता जो आज दिख रहा है । इतने बुरे हश्र की उम्मीद तो इन 23 नेताओं को भी नहीं रही होगी वरन ये सभी केसरी का साथ दिए होते अब तो इतनी देर हो गई है कि न केसरी बचे हैं न केशर जैसे लोग जो डुबती कांग्रेस को ऊपर उछाल सकें । धीरे धीरे मरणासन्न होती कांग्रेस को बचाने के लिए ही सही जिन 23 कांग्रेसियों ने आवाज़ उठाई थी उनका अतीत सार्वजनिक रूप से कभी कांग्रेस हितैषी नजर नहीं आया उल्टे स्वयं के हित साधने में ये अव्वल रहे और जब लगने लगा कि कांग्रेस संगठन में हित साधने लायक कुछ बचा ही नहीं तो संगठन में बदलाव की बयार लाने के प्रयास करते नजर आए । पिछले 20 सालों से कांग्रेस की घटती जन साख पर इन नेताओं ने कभी गौर करने की कोशिश भी नहीं की थी ।
पूरी शान से पदों पर आसीन रहे और कांग्रेस को धीरे धीरे गर्त में जाता देखते रहे थे । इसीलिये अब इनके अलावा बचे अन्य चाटूकारों ने भी इनकी चिठ्ठी पर नजर तक नहीं डाली हताश होकर सार्वजनिक मंच पर पहूंचे पर बात तब भी नहीं बनी । इतनी हिम्मत सीताराम केसरी को अध्यक्ष पद से हटाते समय दिखाते तो कांग्रेस आज मरणासन्न स्थिति में नही पहुंचती क्योंकि यंहा तक कांग्रेस को पंहुचाने में ये ही लोग मुख्य पात्रों की भूमिका निभाते रहे हैं ।कांग्रेस की नई पीढ़ी ने भी जो इनसे सीखा है वही इनको लोटा रहे हैं ऐसे में कांग्रेस संगठन में चुनाव हो जाए या परिवार तंत्र से मुक्ति मिल जाय ऐसे लक्छण भी नजर नहीं आ रहे हैं ।