नवरात्रि मेले में भारी भ्रष्टाचार की तैयारियां जोरों पर
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में होगी लाखों की ऊ परी कमाई,आर्केस्ट्रा माफिया सक्रिय
रतलाम,8 सितम्बर (इ खबरटुडे)। नवरात्रि बेहद नजदीक है। नगर निगम के अफसर व नेताओं के लिए तगडी कमाई का मौका भी नजदीक आ गया है। अफसर और नेता मिलकर नवरात्रि मेले में तगडी कमाई करने की तैयारियों में अभी से जुट गए है। शहर के आर्केस्ट्रा माफिया,अफसर और नेताओं के इस गठजोड से सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम पर लाखों रु.के भ्रष्टाचार की विधिवत तैयारियां शुरु हो गई है।
उल्लेखनीय है कि कालिका माता परिसर में आयोजित होने वाला नवरात्रि मेला लम्बे समय से नेताओं व अफसरों की कमाई का साधन रहा है। नागरिकों को स्तरीय मनोरंजक कार्यक्रम दिखाने की आड में नेता व अफसर आर्केस्ट्रा माफिया के साथ मिल कर इन दस दिनों में जबर्दस्त उपरी कमाई करते रहे है। मेले की तगडी कमाई का ही असर है कि अब इस मेले की अवधि दस दिन से बढाकर पन्द्रह दिन कर दी गई है।
नगर निगम की निर्वाचित परिषद प्रारंभ होने के साथ ही नवरात्रि मेला अफसरों और नेताओं की कमाई का जरिया बन गया था। नवरात्रि मेले के मंच पर आने वाले देश भर के ख्यात और गुमनाम कलाकार इस तथ्य से अच्छी तरह परिचित है कि यदि उन्हे नवरात्रि मेले में अपनी प्रस्तुति देना है तो बडी राशि पर हस्ताक्षर कर बेहद कम राशि से ही संतोष करना पडेगा।
नगर निगम के अफसर व नेता इस मामले में इतने दुस्साहसी हो गए है कि कलाकारों से वास्तविक पारिश्रमिक की राशि से आठ सौ से नौ सो प्रतिशत अधिक राशि पर हस्ताक्षर करवा लेते है। यदि कलाकार बहुत ही ज्यादा विख्यात हो तो बात अलग है,लेकिन यदि कलाकार स्थानीय या कम विख्यात हो तो उसे यह करना ही पडता है।
जानकार सूत्र बताते है कि नगर निगम के पहले निर्दलीय महापौर पारस सकलेचा के जमाने से नवरात्रि मेले के मंच पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम ठेके पर दिए जाने की शुरुआत हुई थी। निर्दलीय महापौर ने अपने एक चहेते व्यक्ति को पूरे मेले के तमाम कार्यक्रमों का ठेका दिलवा दिया। उक्त ठेकेदार ने अफसरों को भी पूरी तरह खुश रखा। ठेकेदार की इस योग्यता का असर यह हुआ कि तब से लेकर अब तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का पूरा ठेका वही ठेकेदार अलग अलग नामों से ले लेता है। तब से लेकर आज तक नेता चाहे बदल गए हो अफसर वही है। इसलिए उक्त ठेकेदार की व्यवस्थाएं यथावत जारी है।
स्तर की नहीं कमाई की चिन्ता
कोई जमाना था जब कालिका माता मेले के मंच पर आना और यहां प्रस्तुति देना कलाकार अपनी प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक मानते थे। पूरे देशभर में कालिका माता मेले की धूम थी और रतलाम के दर्शक,श्रोताओं को एक अलग मुकाम हासिल था। लेकिन विगत एक-डेढ दशक से कालिका माता का मंच फूहड,अश्लील और बेकार कार्यक्रमों का स्थान बनकर रह गया है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के स्तर की किसी को कोई चिन्ता नहीं है,सभी को केवल कमाई की चिन्ता है।
दस दिवसीय मेले के नौ दिवसीय मंचीय कार्यक्रमों में कुछ कार्यक्रम अनिवार्य से बना दिए गए है। नौ दिनों में से एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन,एक स्थानीय कवि सम्मेलन,एक या दो स्थानीय कलाकारों के आर्केस्ट्रा और एक बडौदा या मुंबई का आर्केस्ट्रा इनमें शामिल होता है। इसके अलावा एक कार्यक्रम फिल्मी दुनिया से जुडे किसी बडे कलाकार का रख दिया जाता है। जानकार सूत्र बताते है कि आर्केस्ट्रा माफिया भी इतना दुस्साहसी हो चुका है कि जिस आर्केस्ट्रा को मुंबई या बडोदरा का बताया जाता है,वह भी नकली ही होता है।
बेकार कार्यक्रम-घटते दर्शक
नगर निगम के बेकार कार्यक्रमों के कारण जहां नेताओं और अफसरों की कमाई में निरन्तर इजाफा होता जा रहा है,वहीं दर्शकोंकी तादाद लगातार घटती जा रही है। दर्शकों की घटती संख्या को लेकर निगम के जिम्मेदार लोगों को चिन्तित होना चाहिए लेकिन इसके उलट वे खुश होते है। इसका कारण यह है कि दर्शकों की घटती संख्या का बहाना बताकर निगम के जिम्मेदार अच्छे कार्यक्रम पेश करने से बच जाते है और घटिया कार्यक्रमों के नाम पर दस-दस गुना के बिल पास कर लिए जाते है।
जानकार सूत्रों के मुताबिक निगम के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के ठेकेदार और मेले के प्रभारी नेता ने शहर के एक बेहद लोकप्रिय और प्रतिष्ठित गायक से सम्पर्क किया कि वह मेले में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर दें। जब उक्त गायक ने इसका पारिश्रमिक पूछा तो उससे कहा गया कि इस कार्यक्रम के लिए उसे पांच हजार रु.दिए जाएंगे और उसे पचास हजार रु.की प्राप्ति पर हस्ताक्षर करना होंगे। निगम के नेता की शर्त सुनकर उक्त कलाकार ने कार्यक्रम प्रस्तुत करने से साफ इंकार कर दिया और वह कलाकार आज तक कालिका माता के मंच पर नहीं आया।
सूचना के अधिकार की धज्जियां
नगर निगम के अफसर नवरात्रि मेले की जानकारियां छुपाने में पूरी ताकत लगा देते है। नवरात्रि मेले के सम्बन्ध में यदि कोई व्यक्ति सूचना के अधिकार का कोई आवेदन प्रस्तुत करता है,तो चाहे जो भी हो जाए,उसे जानकारी नहीं दी जाती। निगम के अफसरों को कानून के उल्लंघन का कोई डर नहीं है। वे जानते है कि यदि जानकारियां सार्वजनिक हो गई तो मेले की तमाम धांधलिया सामने आ जाएगी। वर्ष २०१३ के नवरात्रि मेले में कार्यक्रमों के लिए किए गए भुगतान की जानकारी लेने के लिए लगाए गए सूचना के अधिकार के एक आवेदन पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। आवेदक ने १८ दिसम्बर २०१३ को आवेदन प्रस्तुत किया था। एक साल गुजरने को आया लेकिन निगम के जिम्मेदार अधिकारी जानकारी देने को तैयार नहीं है। आवेदक अब अपील की तैयारी में जुटा हुआ है।
वर्तमान मेले में भ्रष्टाचार की तैयारियां शुरु
इस वर्ष का नवरात्रि मेला 25 सितम्बर से शुरु हो रहा है। निगम के नेता व अफसर भ्रष्टाचार की तैयारियों में अभी से जुट गए है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की जानकारियों को लेकर सूचना के अधिकार में आवेदन प्रस्तुत होने से निगम के अफसरों में थोडी घबराहट जरुर पैदा हुई। शायद इसी का नतीजा है कि नगर निगम ने पहली बार नवरात्रि मेले में सांस्कतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए समाचार पत्रों में निविदा प्रकाशित की है। मजेदार बात यह है कि उक्त निविदा निगम के अफसरों ने महज अपने हाथ बचाने के लिए प्रकाशित करवाई है। निगम की उक्त निविदा जानबूझ कर ऐसे समाचार पत्र में प्रकाशित की गई जिसकी प्रसार संख्या अपेक्षाकृत बेहद कम है। बडी प्रसार संख्या वाले अखबारों में यह निविदा नहीं दी गई। इतना ही नहीं,निविदा में प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अंतिम तिथी ७ सितम्बर रखी गई थी। सात सितम्बर को रविवार था। अंतिम तिथी रविवार रखने की वजह से कई कार्यक्रम प्रस्तोता अपने प्रस्ताव दे ही नहीं पाए। निगम के अफसरों ने आवेदन के साथ एक हजार रुपए का शुल्क भी जमा कराने की शर्त रखी थी। कुल मिलाकर निविदा सिर्फ इसलिए प्रकाशित की गई ताकि यदि भविष्य में कोई शिकवा शिकायत या जांच की नौबत आए तो निगम के अधिकारी अपनी गर्दन बचा लें।