November 25, 2024

दीपावली की धूमधाम खत्म, अब शुरु होगी शहर की चुनावी चकल्लस,दिलचस्प रहेगी पार्टियों की भीतरी खींचतान

-तुषार कोठारी

रतलाम। कोरोना के साये मेंं आया दीपावली का त्यौहार निपट गया है। लोगों के उत्साह को देखकर कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि कहीं कोरोना नाम की कोई चीज भी थी। लक्ष्मीपूजा के बाद आज एक दूसरे से मिलकर शुभकामनाएं दी जा रही है। दीपावली के गुजरते ही अब शहर में चुनावी चकल्लस शुरु होने का वक्त आ गया है। हांलाकि कई नेताओं ने दीवाली का फायदा चुनावी लिहाज से उठाने में भी कोई कसर नहीं छोडी।
दीपावली के पहले ही सूबे में मामा जी की कुर्सी पक्की हो गई थी और नाथ जी को जनता ने अनाथों की श्रेणी में पंहुचा दिया था। सूबे की सरकार मामजी के कब्जे में आते ही यह भी तय हो गया था कि अब शहर सरकारों की चुनावी चकल्लस शुरु हो जाएगी। दो पांच दिन दीवाली की व्यस्तता वाले है। बस इनके गुजरते ही राजधानी में शहर सरकारों के प्रथम नागरिकों का आरक्षण तय हो जाएगा और इसके साथ ही चुनावों का बिगुल भी बज जाएगा। फूल छाप पार्टी का अंदाजा यह है कि ताजे ताजे उपचुनाव जीते है तो इसका फायदा शहर सरकारों के चुनाव में भी मिलेगा. इसीलिए जितनी जल्दी हो सके चुनाव करवा लिए जाए।
बहरहाल,इधर शहर के नेताओं ने नए कुर्ते पायजामें बनवा लिए हैैं और आरक्षण का अंदाजा लगाकर अपनी अपनी तैयारी शुरु कर दी है। नेताओं को उम्मीद है कि गोटी पिछडे पुरुष के नाम पर खुलने वाली है। इसलिए इस वर्ग के जितने भी नेता है,वे आजकल आईने के सामने खडे होकर खुद को प्रथम नागरिक की तरह देखने लगे है। फूल छाप पार्टी की तरफ से पिछली शहर सरकार में नम्बर दो रहे नेताजी को सबसे ज्यादा उम्मीद है कि फूल छाप पार्टी उन्ही को अपना टिकट देगी। इसके लिए ये नेताजी स्टेशन रोड से इन्दौर तक के अपने आकाओं की चरण चंपी में लगे हुए है। फूल छाप के कुछ और नेता भी अपने अपने आकाओं के चक्कर लगाने लगे है। शहर सरकार की नौकरी से रिटायर्ड हुए एक नेताजी पहले पंजा पार्टी के नेता हुआ करते थे,लेकिन पिछले कुछ समय से वे खुद को फूल छाप काली टोपी वाला बताने लगे है। इनके पास लोकतंत्र सेनानी का सर्टिफिकेट भी है। ये रिटायर्ड नेताजी भी अब खुद को दावेदार की तरह न सिर्फ पेश कर रहे हैैं बल्कि अखबारों के जरिये दीपावली की शुभकामनाएं छपवा कर उन्होने अपने इरादों को साफ साफ जाहिर भी कर दिया है।
पंजा पार्टी के पास वैसे तो दावेदारों की कमी नहीं है,लेकिन पंजा पार्टी का दावेदार दमदार नहीं है। हाल ही में पंजा पार्टी ने सूबे की सरकार गंवाई है,इसलिए पंजा पार्टी के दावेदारों के हौंसले भी पस्त है। लेकिन इसके बावजूद दावेदारों को दावेदारी तो करना ही है। किसी जमाने में जिले की पंचायत के सिरमौर रहे नेताजी जहां खुद को प्रथम नागरिक की तरह देख रहे हैैं तो शहर सरकार में वार्ड का चुनाव जीत चुके नेताजी भी खुद का टिकट पक्का मान रहे हैैं।
कुल मिलाकर आने वाले दिनों में अब शहर में जोरदार चुनावी चकल्लस देखने को मिलेगी। सियासत पर नजर रखने वालों का मानना है कि पंजा पार्टी की खस्ता हालत के चलते फूल छाप पार्टी के लिए चुनाव सरल साबित हो सकते हैैं। लेकिन यह भी तय है कि दोनों ही पार्टियों में जमकर खींचतान देखने को मिलेगी और यकीन मानिए कि ये खीचतान बेहद दिलचस्प रहेगी।

कहां गया कोरोना का डर…

पिछले छ: महीनों से हर ओर कोरोना का डर छाया हुआ था,लेकिन दीवाली के आते आते कोरोना का डर पता नहींकहां गायब हो गया। ऐसा नही ंहै कि कोरोना का खतरा टल गया हो,लेकिन दीवाली के दौर में इसका डर जरुर नदारद हो गया। कोरोना के कारण उपजी मन्दी से परेशान व्यवसाईयों को दीवाली ने ऐसा बूस्टर डोज दिया कि उनकी अगली पिछली सारी शिकायतें दूर कर दी। दीवाली के दिनों में बाजारों में पैर धरने तक की जगह नहीं बची थी। वाहनों से लगाकर ज्वेलरी और कपडों से लगाकर घरेलु उपकरणों तक हर व्यवसाय में जमकर तेजी आई। सतर्कता और सावधानी पूरी तरह से गायब हो गई। अब तो मास्क वाले भी कम ही नजर आ रहे हैैं। दीपावली का त्यौहार अब समाप्त होने को है। उम्मीद की जाए कि लोग कोरोना से बचाव की सावधानी और सतर्कता फिर से बरतने लगेंं वरना बढती सर्दी में कोरोना के आंकडों के बढते जाने का डर है।

लक्खन नी बदले लाखा….

मालवी की कहावत है कि बारा कोसा बोली बदले पण लक्खन नी बदले लाखा। यानी मालवा में हर बारह कोस पर बोली बजल जाती है लेकिन लोगों के तौर तरीके नहीं बदलते। रतलाम के कुछ व्यवसाईयों पर ये कहावत पूरी तरह फिट बैठती है। चांदनी चौक में सोने चांदी का व्यवसाय करने वाली एक बडी दुकान अब न सिर्फ लिमिटेड कंपनी बनकर कारपोरेट हो गई है,बल्कि इसका शेयर भी शेयर मार्केट में आ गया है। इतना कुछ हो गया,लेकिन दुकान के मालिकों के तौरतरीके वहीं पुराने कस्बाई मानसिकता के है। कारपोरेट वल्र्ड में शामिल होने का बावजूद इस कंपनी के कारिन्दे नकली हालमार्क लगाकर गहने बेचते रहे और जब पकडाए तो इनपर कोर्ट ने भारी जुर्माना भी किया। जानकारों का कहना है कि ये कंपनी लम्बे समय से इस तरह की हरकतें करती रही है। लेकिन रतलाम के नाम की प्रतिष्ठा की आड में इनकी गडबडी उजागर नहीं हो पाती। जानकार बताते है कि रतलाम के सोने की शुद्धता का पूरे देश में नाम है। लेकिन कुछ बेईमान व्यापारी इसका बेजा फायदा उठाते है। वे अपने ग्र्राहकों को कम गुणवत्ता का सोना टिका देते है। रतलाम की परंपरा यह है कि सोने की वापसी पर पूरा पैसा दिया जाता है,लेकिन वापसी उसी दुकान पर होती है जहां से सोना खरीदा गया हो। आमतौर पर सोना खरीदने वालों में से बेहद कम एक या दो प्रतिशत लोग ही सोना वापस बेचते है,और जब वे सोना वापस बेचते है तो दुकानदार अपनी दुकान से बेचे गए सोने की पूरी कीमत लौटा देता है। लेकिन पेंच यह है कि बाकी के 98 प्रतिशत खरीददारों को तो पता ही नहीं चल पाता कि उनके द्वारा खरीदा गया सोना किस क्वालिटी का है। इस तरह बेईमान दुकानदार कम गुणवत्ता वाले सोने की अधिक कीमत वसूल कर मजे कर रहे है। दुकान से कारपोरेट कंपनी बनी दुकान में भी यही सब होता आया है।

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