आपदाओ का जिम्मेदार कौन ?
वैदेही कोठारी (स्वतंत्र पत्रकार)
बारिश के आते ही चारो तरफ का वातावरण सुंदर लगने लगता है। पेड़ पौधो में नइ कोपलें फूटने लगती है। साथ ही पेडों की पत्तियां धुल जाती है,जिससे हरा रंग और भी सुंदर लगने लगता है। बारिश के दिनो में पौधो में सुंदर सुंदर फूल खिलने लगते है,जिससे वातावरण और भी खुशनूमा बन जाता है। रिमझिम बारिश हर दिल को खुशगवार लगती है।
इन दिनों बिना किसी कारण के भी मन प्रसन्न रहता है। बादलों के गडग़ड़ाहट व बिजली की चमचमाहट के साथ तेज बारिश होना सभी को अच्छा लगता है। यदि आप हाई सोसाइटी के लोगो से पूछेेेगे तो वह यही कहेगे, हमें बारिश बहुत अच्छी लगती है। अगर पुछा जाए, आप क्या करते बारिश के दिनो में तो कहेगे, हम बारिश में बहुत भीगते है फिर ब्रेड पकोड़ा,या प्याज पकोड़ा खाते साथ ही गर्म गर्म चाय पीते है। इसी तरह फिल्म स्टार से पूछते है, तो अधिकतर स्टार को बारिश में लांग ड्राइव पर जाना पसंद है। कुछ स्र्टास को घर पर ही फ्रेंडस के साथ पार्टी करना पसंद आता है। इसी तरह अपर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास के लोगो के लिए भी बारिश के दिन बहुत अच्छे होते है।
किसानो के लिए बारिश भगवान का वरदान होती है। क्योंकि बिना बारिश के अनाज की तो हम कल्पना तक नही कर सकते है। फसलों के लिए बारिश होना बहुत जरूरी है। यहां तक तो बारिश बहुत अच्छी होती है, किंतु यही बारिश मुसीबत भी बन जाती है। उन लोगो के लिए जिनके पास रहने के लिए घर नही होते है। जो छोटी-छोटी झोपड़ी में रहते है, या कच्चे घर बना कर रहते है ऐसे घर जो सिर्फ मिट्टी व लकड़ी के बने होते है। हम कई जगह देखते है, कुछ लोग प्लास्टिक पोलिथीन बड़ी सी बरसाती या तिरपाल लोहे शीट की छत वाले घर बनाकर रहते है। इनके परिवार में छोटे-छोटे बच्चे और पालतु जानवर रहते है। कई बार जो एक तेज बारिश में बह जाते है। जिनकी शिनाख्त तक नही हो पाती है। जो कुछ लोग बहने से बच जाते है। इन लोगो को अपना रहना खाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
आजकल हर चैनल पर अति वर्षा के कारण हो रही तबाही का नजारा हम रोज देख रहे है। सेकड़ो घर डूब गए। लोगो को रहने खाने की कोई व्यवस्था नही,कई जगह तो पुरे के पुरे गांव जलमग्र हो चुके है। अति वर्षा के कारण सेकडों हादसे हो रहे ाकई नदि तालाब उफान पर है,कई पुलियाएं टूट चुकी है। जिससे समान्य जीवन अस्त-वयस्त हो गया है।
इन सबका जिम्मेदार कोन है? भगवान है। सरकार या हम स्वयं। यह सोचने वाली बात है। आज अत्यधिक औद्योगिरण और बड़ी बड़़ी इमारते बनाने के लिए हर जगह पेड़ो की कटाई जोर-शोर से चल रही है। अत्यधिक पेड़ो की कटाई से हमारा पर्यावरण पूरी तरह प्रभावित हो चुका है। प्रकृति का अत्यधिक दोहन का खामियाजा़ यह हुआ है, सुखा पड़ जाता है या अति वर्षा होने लगती है। अत्यधिक पेड़ो की कटाई के कारण आज हर ऋ तु प्रभावित हो रही है।
ग्रीष्म ऋ तु,शरद ऋ तु,वर्षा ऋ तु इन सभी ऋ तुओं के दो-दो माह होते है। अर्थात चार माह की एक ऋ तु होती है। आज सभी ऋ तुए अत्यधिक कटाई के कारण प्रभावित हो चुकी है। ग्रीष्म ऋ तु-पेड़ो की कटाई के कारण आज अत्यधिक गर्मी पडऩे लगी है। गर्मी ज्यादा होने से आज घर-घर में ए.सी आ चुका है। ए.सी से निकलने वाली गेस क्लोरो-फलोरो कार्बन जो की ओजोन परत के लिए अत्यधिक हानिकारक है। जो ग्लोबल वार्मिग के लिये जिम्मेदार है। इसी तरह हर गाड़ी आज ए.सी. गाड़ी बन चुकी है। साथ ही वाहनो से निकलने वाला धुंआ। कई इलेक्ट्रानिक सामान भी है जो की पर्यावरण को दूषित कर रहै।
वर्षा ऋ तु-इसी तरह पेड़ो की कटाई का ही नतीजा है, वर्षा पर कोई नियंत्रण नही है। अति वर्षा या सुखा दोनो ही हमारे लिए नुकसान देह है। शीत ऋ तु- कुछ सालो पहले तक ठंड का समय अक्टुबर और नवम्बर से हल्की हल्की शुरू होती थी और दिसम्बर से १५ जनवरी तक अपनी चरम सीमा पर होती थी। कहते है तिल संक्राती से तिल-तिल ठंड कम होती जाती है। किंतु अब दिसम्बर तक भी ठंड ज्यादा नही पड़ती है।
आज कोई भी स्थान ऐसा नही है जो प्रदूषित न हो जल,वायु,मिट्टी,सभी कुछ पूरी तरह प्रदूषित हो चुके है। क्योकिं हम लोगो ने प्रकृति का अत्यधिक दोहन कर लिया है। जिसका हरजाना हमे खुद चुकाना होगा। इन आपदाओं का सामना करना होगा। प्राकृतिक आपदाओं को रोकना चाहते हो तो अभी भी हमारे पास समय है। हम ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं । प्रकृति से छेडख़ानी न करे। पृकति का दोहन कम करे। हमारे नदी,नालों,कुओं को प्रदूषित न करे। मृदा को प्रदूषित न करे। प्रकृति को स्वच्छ बनाने के लिये अधिक से अधिक पोधे लगाएं। पोधे लगाने मात्र से हमारा दायित्व पूरा नही होगा ,उनका ध्यान रखते हुए बड़ा करना होगा।