November 24, 2024

किसानों से प्याज खरीदकर समुद्र में भी डालना पड़े तो करना चाहिए

भारतीय किसान संघ के उपाध्यक्ष प्रभाकर केलकर की राज्य सरकार को दो-टूक राय

इंदौर 1 जून (इ खबरटुडे) । कृषि एवं कृषकों के हित की लड़ाई हर मोर्चे पर लडऩे वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समविचारी संगठन भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभाकर केलकर से म.प्र. के किसानों की प्याज से जुड़ी prabhakarjiवर्तमान समस्या पर स्वदेश के स्थानीय संपादक-शक्तिसिंह परमार ने बिंदुवार चर्चा की.प्रस्तुत है इस चर्चा के कुछ अंश
– प्रदेश के किसान प्याज सड़कों पर फेंक रहे हैं, इसे किस रूप में देखते हैं?
केलकर – म.प्र. के किसान अब ज्यादा समय तक प्याज रख नहीं सकते, क्योंकि बारिश आने वाली है। अन्य राज्यों महाराष्ट्र आदि में प्याज की फसल अक्टूबर में आती है तो उनके पास प्याज रोकने का विकल्प रहता है। प्रदेश के किसानों को बोवनी करना और प्याज बिक नहीं रहा है। कैसे भी खेत खाली कर अगली बोवनी की तैयारी तो करना पड़ेगी ना। अच्छा होता, यहां फेंकने के बजाए किसान अपना प्याज प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में फेंक आते। वस्तुस्थिति तो पता चलती।
-शिवराज सरकार किसानों की प्याज समस्या पर कुछ बोल भी तो नहीं रही है?
केलकर – भारतीय किसान संघ का तो स्पष्ट मानना है कि राज्य सरकार को प्याज के मामले तुरंत पहल करना चाहिए। न्यूनतम भाव में सरकार स्वयं प्याज खरीदे, तो अच्छा होगा। सरकार को थर्ड पार्टी के रूप में मंडी में उपस्थित रहना चाहिए, तुरंत एक न्यूनतम समर्थन मूल्य प्याज का घोषित कर खरीदी कर दूसरे राज्यों में भेजना चाहिए। अगर ऐसा कुछ भी न हो तो तब भी भले ही किसानों से राज्य सरकार को प्याज खरीदकर समुद्र में डालना पड़े, करना चाहिए।
-प्याज के मामले में केंद्र सरकार की भूमिका भी क्या नहीं बनती है?
केलकर – केंद्र सरकार ने 20 हजार टन प्याज खरीदकर भंडारण किया है, ऐसा सुनने में आ रहा है, लेकिन यह भी ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है। पहल की यह अच्छी बात है। उपाय तो सिर्फ यही है कि लगभग सभी 24 फसलों का समर्थन मूल्य कर सूची बनाई जाए, जिसमें दलहन-तिलहन से लेकर प्याज तक के मूल्य घोषित होना चाहिए और उसी क्रम में राज्य सरकारों को भी इन फसलों को खरीदने के लिए निर्देशित करना चाहिए।
-व्यापारी भी तो इस बार प्याज खरीदी में रुचि नहीं ले रहे हैं?
केलकर – बड़े व्यापारी एवं कंपनियां 4 बाय 4 का जो बड़ा व मोटा प्याज 7-8 रु. में खरीदती हैं, जबकि उसका भाव भी 15-16 होना चाहिए। ऐसे में छोटे एवं कम गुणवत्ता वाले प्याज को वे नहीं खरीद रहे हैं। उन्हें मालूम है कि उत्पादन अच्छा है, किसान स्वयं औने-पौने दामों में देगा। यह मोनोपाली तोडऩा होगी और मंडी एक्ट के तहत व्यापारियों को भी कपास व अन्य फसलों की भांति प्याज समेत अन्य फसलों को किसानों का माल समर्थन मूल्य पर या उससे ऊपर खरीदने के लिए बाध्य करना पड़ेगा।
-किसानों की प्याज से जुड़ी वर्तमान समस्या का राज्य सरकार को कैसे समाधान करना चाहिए?
केलकर – हमारा तो स्पष्ट मानना है कि म.प्र. सरकार को बिना विलंब किए इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए, अभी तक क्यों नहीं किया? चिंता का विषय है। भले ही उन्हें (सरकार) प्याज खरीदकर समुद्र में ही क्यों ना फेंकना चाहिए, करना चाहिए। वरना सरकार को भविष्य में किसानों के इस आक्रोश का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

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