आखरी सांसे गिन रहा है सर्कस उद्योग
प्रोत्साहन मिले तो देश को गौरव दिला सकते है सर्कस के कलाकार
रतलाम,1 मई (इ खबरटुडे)। देश का सर्कस उद्योग आखरी सांसे गिन रहा है। सर्कस के कलाकार अपनी मेहनत के बल पर इसे जैसे तैसे जीवित रखे हुए हैं। सर्कस उद्योग और इसके कलाकारों को सरकार की ओर से किसी भी तरह की कोई मदद या प्रोत्साहन नहीं मिलता। यदि सर्कस के कलाकारों को शासकीय स्तर पर प्रोत्साहन मिले तो ये कलाकार ओलम्पिक और एशियाड जैसी स्पर्धाओं में देश के लिए सोना जीत सकते है। तीन पीढियों से सर्कस व्यवसाय से जुड़े मोहम्मद मोइनुद्दीन कुरैशी ने इस संवाददाता से विशेष चर्चा करते हुए सर्कस उद्योग से जुडी कई अहम बातें बताई। द ग्रेट इण्डिया सर्कस का संचालन करने वाले श्री कुरैशी,रतलाम में अपने सर्कस का प्रदर्शन करने के लिए यहां आए हैं। सर्कस उद्योग की जानकारी देते हुए श्री कुरैशी ने बताया कि इस वक्त देश में छोटे बडे मिलाकर लगभग तीन सौ सर्कस चल रहे हैं। सर्कस संचालन में इन दिनों कई दिक्कतों का सामना करना पड रहा है। श्री कुरैशी ने बताया कि दो दशक पहले तक सर्कसों में वन्यप्राणियों के खेलों का प्रदर्शन होता था। किसी भी शहर में सर्कस लगने से पहले ही वन्यप्राणी भेज दिए जाते थे। वन्यप्राणियों के शहर में पंहुचते ही सर्कस का प्रचार हो जाता था। लेकिन नब्बे के दशक में वन्यप्राणियों के प्रदर्शन पर रोक लगने लगी और वर्ष २००० तक वन्यप्राणी रखना भी प्रतिबन्धित हो गया। सर्कसों के तमाम वन्यप्राणी राज्य सरकारों ने अपने कब्जे में ले लिए। तभी से सर्कस व्यवसाय पर संकट के बादल मण्डराने लगे। श्री कुरैशी ने बताया कि सर्कस संचालक वन्यप्राणियों का प्रदर्शन तो करते थे,लेकिन साथ ही सर्कसों में वन्यप्राणियों की संख्या में वृध्दि भी होती थी। सर्कस संचालक वन्यप्राणियों का जोडा लेते थे और उनकी संख्या बढाते थे। जब से राज्य सरकारों ने इन वन्य प्राणियों को अपने कब्जे में लिया है उनकी दुर्दशा ही हुई है। श्री कुरैशी ने स्पष्ट किया कि सर्कसों में वन्यप्राणियों पर कतई कोई अत्याचार नहीं किया जाता था,बल्कि सर्कस में ये वन्यप्राणी परिवार के सदस्यों की तरह रहते थे। ऐसे कई उदाहरण है,जब वन्यप्राणी सर्कस से जाने को तैयार नहीं होते थे। उन्होने कहा कि वन्यप्राणियों की सुरक्षा में जुटे एनजीओ और समाजसेवियों ने समस्या का एक ही पहलू देखा था,जबकि दूसरा पहलू देखा ही नहीं। उन्होने कहा कि देश के चिडियाघरों में संरक्षित वन्य प्राणियों की स्थिति सर्कस में रहने वाले वन्यप्राणियों के मुकाबले अत्यन्त बदतर है। चिडियाघरों में वन्यप्राणियों को भरपेट भोजन तक नहीं मिल पाता है,जबकि सर्कस के वन्यप्राणियों का सर्कस के संचालक अपने बच्चों की तरह ध्यान रखते थे। इसका प्रमुख कारण यह भी था कि इन्ही प्राणियों की वजह से सर्कस चला करते थे। सर्कस संचालकों की एसोसिएशन ने इस मुद्दे को लेकर उच्चतम न्यायालय में याचिका भी दायर कर रखी है। उन्होने कहा कि यदि सरकार कुछ शर्तों के साथ सर्कस में वन्यप्राणियों को रखने की अनुमति देदे तो इस व्यवसाय से जुडे हजारों लोगों का भला होगा और साथ ही दुर्लभ वन्यप्राणियों की संख्या में वृध्दि भी हो सकेगी। सरकार चाहे तो वन्य प्राणियों के जोडों से होने वाले बच्चे सर्कस संचालकों से लेकर राष्ट्रीय उद्यानों में छोड सकती है। श्री कुरैशी ने कहा कि अब तो कुत्ते,घोडे और हाथी जैसे पालतू पशुओं के प्रदर्शन में भी बाधाएं खडी की जाने लगी है। जबकि कुत्ते,घोडे और हाथी आदि पशुओं का सेना और पुलिस जेसी संस्थाओं द्वारा भी भरपूर उपयोग किया जाता है। सर्कस के कलाकारों की स्थिति पर चर्चा करते हुए श्री कुरैशी ने बताया कि वन्यप्राणियों की गैरमौजूदगी में अब सर्कस के कलाकार अपनी मेहनत के बल पर सर्कस को जीवित रखे हुए हैं। लेकिन प्रोत्साहन के अभाव में धीरे धीरे कलाकारों की संख्या में भी कमी आती जा रही है। सर्कस में प्रदर्शित किए जाने वाले जिमनेस्टिक आदि के लिए नए कलाकार मिलना मुश्किल होता जा रहा है। नए बच्चों को सिखाने में बाल मजदूरी जैसे कानून आडे आ जाते है। अब केवल वे ही बच्चे इन कलाओं को सीख रहे है,जिनके माता पिता भी सर्कस से जुडे हुए है। इन कठिनाईयों को चलते सर्कस संचालकों को विदेशी कलाकारों को लाना पडता है और यह बहुत महंगा साबित होता है। श्री कुरैशी ने बताया कि सर्कस के एरिना में हैरतअंगेज प्रदर्शन करने वाले इन कलाकारों को यदि थोडा सा प्रशिक्षण दिया जाए,तो ये एशियाड और ओलम्पिक जैसी स्पर्धाओं में देश का नाम रोशन कर सकते है। रुस और चीन जैसे देशों में यह व्यवस्था है। सर्कस के कलाकारों का खेलों में भरपूर उपयोग किया जाता है। सर्कस संचालन में लगातार आ रही विभिन्न अडचनों के चलते अब यह कला विलुप्त होने की कगार पर जा पहुंची है। श्री कुरैशी ने बताया कि देश में सर्कस उद्योग से जुडे हजारों परिवारों के सामने जीवनयापन का संकड मण्डराने लगा है। वन्यप्राणियों के खेल दिखाने वाले ट्रेनर आदि तो पहले ही बेरोजगार हो चुके है। मुंह बाए खडे इस संकट से निपटने के लिए सर्कस संचालक अपने स्तर पर कई प्रयास कर रहे है। श्री कुरैशी ने अपने ग्रेट इण्डिया सर्कस की जानकारी देते हुए बताया कि उन्होने सर्कस को अधिक मनोरंजक बनाने के लिए मणिपुरी कलाकारों का कार्यक्रम इसमें जोडा है। लेकिन सरकार की मदद बेहद जरुरी है। सर्कस संचालकों को तो किसी नए शहर में मैदान लेने से बिजली का कनेक्शन लेने तक में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पडता है। सरकार या स्थानीय प्रशासन की ओर से यदि थोडा भी सहयोग मिले तो स्वस्थ मनोरंजन की इस कला और इस उद्योग को बचाया जा सकता है। देश में वर्तमान में सर्कस उद्योग की स्थिति की जानकारी देते हुए श्री कुरैशी ने बताया कि इस वक्त देश में लगभग तीन सौ सर्कस संचालित हैं। इनमें चार-चार सौ कलाकारों वाले बडे सर्कसों की संख्या लगभग 25 है,जबकि सौ से डेढ सौ कलाकारों वाले मझोले स्तर के करीब पचास सर्कस है। शेष सर्कस छोटे सर्कस है,जिनमें 20 से 25 कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन करते हैं।