November 5, 2024

1971 के युद्ध में भारत का सहयोगी बना एक पाकिस्तानी सैनिक और हुर्इ पाकिस्तान की करारी पराजय

– प्रो0 ब्रहमदीप अलुने

 

आज 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस मनाया जाता है, यह दिन विश्व इतिहास के युद्धों में महान विजय के लिए स्वर्णिम दिन के रूप में याद किया जाता है । 93 हजार सैनिकों को बंदी बनाकर पाकिस्तान के दो टुकड़े करने का कारनामा भारतीय सेना ने अंजाम दिया था । 16दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश नाम का एक नये राष्ट्र का विश्व पटल पर उदय हुआ । भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कूटनीतिक दृढ़ता और हमारी सेना के शौर्य ने 14 दिनो के भीषण युद्ध में पाकिस्तान को नाकों चने चबवा दिये । पाकिस्तानी भारत से हजारों वर्षो तक लड़ते रहने का अभिमान लिए युद्ध क्षेत्र में आए थे, उनके इस हश्र की शायद उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी । लेकिन भारत द्वारा इस ऐतिहासिक विजय को प्राप्त करने में सहयोगी बना पाकिस्तानी सेना का ही एक सिपाही अब्दुल कादिर सिददीकी । अपने ही सैनिकों द्वारा नागरिकों पर असहनीय एवं घिनोंने कृत्यों से संतप्त अब्दुल कादिर ने अपनी ही सेना को सबक सिखाने की ठान ली । भारतीय सेना और बंग्लादेश मुकित वाहिनी का यह बड़ा सहयोगी बना  और इसीलिए इस जाबांज को बंग्लादेश में पूजा जाता है । बांगला देश के विभिन्न भागों में पाकिस्तानी सेना से लडकर आजादी प्राप्त करने वाले छापामारों में शेर अब्दुल कादर सिददीकी का प्रमुख स्थान है । उन्होने बिना किसी बाहरी सहायता के तेरह हजार युवको को छापामार दस्ते बनाए थे और सभी हथियार पाकिस्तानी सेना और पुलिस से छीने थे । उनकी इस छापामार टुकड़ी का नाम कादर वाहिनी पड़ा । मध्य बांगला देश में मैमनसिंह ढाका तक कादर वाहिनी का राज रहा और पाकिस्तानी सेना रात के समय इस क्षेत्र में निकलने की हिम्मत नहीं करती थी । दिन में भी पाकिस्तानी सेना छोटे दलों में नहीं निकल पाती थी, ऐसा था दबदबा कादर वाहिनी का मध्य बांगला देश में ।

बांगलादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुरहमान के आदेश पर कादर वाहिनी ने 25 जनवरी को तंगेल नगर में अपने हथियारी शेख साहब को सौंप दिये । कादर वाहिनी के सेनापति शेर सिददीकी ने हथियार सौंपते हुए कहा -”किसी सेनार के सदस्य अपने नेता के आदेश की भी अवहेलना नही करते । हम राष्ट्रपिता मुजीब के आदेश पर अपने हथियार सौंप रहे है ।

सन 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तानी सेना में लांसनायक थे, लेकिन उस युद्ध के खिलाफ उनके मन में विद्रोह किया और वे पाक सेना से निकल आए । 25 मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने बांगलादेश की जनता पर बर्बर अत्याचार शुरू किये तब अब्दुल कादर सिददीकी तंगेल जिले के करातिया कस्बे के एक कालेज में इंटरमिडिएट के छात्र थे । वे बांगला देश छात्र लीग की तंगेल जिला शाखा के महासचिव भी थे । यह छात्र लीग आवामी लीग से सम्बद्ध थी ।

मार्च 1971 के अंतिम सप्ताह में ही उन्होंने तंगेल के खजाने पर हमला करके सात रायफलें प्राप्त कर लीं और इन्हीं सात रायफलों से कादर वाहिनी शुरू हुर्इ । 3 अप्रेल को सिददीकी के नेतृत्व में एक दर्जन छापामारों ने तंगेल ढाका मार्ग पर एक पाकिस्तानी दस्ते पर हमला किया, सभी 50 पाक सैनिकों को मार डाला और उनके हथियार ओर गोला बारूद छीन लिया । इसके बाद तंगेल मैमनसिंह मार्ग पर एक बड़े पाक सैनिक कारवां को घेर लिया । जमकर लड़ार्इ हुर्इ ओर पाकिस्तानी हथियार गोला बारूद ओर ट्रक तथा जीपें छोड़कर भाग खड़े हुए । इस हमले में कादर वाहिनी को बड़ी मात्रा में मशीनगनें प्राप्त हुर्इ और आजादी मिलने तक यही मशीनगनें कादर वाहिनी के प्रमुख हथियार रहे ।

शेर सिददीकी ने अपना छापामार दस्ता तीन हजार छापामारों तक बड़ा लिया। मैमनसिंह, तंगेल ढाका और पावना जिलों में उन्होनें ग्रामिण क्षेत्रों में छापामारों का संगठन किया, उन्हें ट्रेनिंग दी और पाकिस्तानी सेना का जगह-जगह मुकाबला किया । उनके छापामारों में छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा थी । उनका सख्त आदेश था कि किसी नागरिक को परेशान न किया जाए और न किसी नागरिक की सम्पतित को हाथ लगाया जाए । लेकिन पाकिस्तानी सेना का सभी माल छापामारों का था ।

इन छापामारों ने पुलिस थानों में पाकिस्तानियों द्वारा कैद बंगाली महिलाओं को आयोजित ढंग से आजाद किया तथा उन महिलाओं पर अत्याचार करने वालों को एक-एक करके मौत का रास्ता दिखाया । स्थानीय जनता में सिददीकी की भारी इज्जत है और सभी उन्हें शेर सिददीकी के नाम से पुकारते है ।

जब भारतीय सेना मैमनसिह से तंगेल और ढाका की ओर बड़ी तो कादर वाहिनी ने उनकी बड़ी सहायता की । शत्रु को भगाते समय पुल नहीं तोड़ने दिये, शत्रु सेना पूरी जानकारी भारतीय सेना को दी तथा शत्रु सेना के पीछे से हमले करके उसका हौसला पस्त किया । भारतीय सेना की सप्लार्इ कायम रखने में कादर वाहिनी भारी सहायता की – आयोजित ढंग से छापामार भारतीय जवानों के साथ कंधा-से-कंधा मिलाकर लड़े । अगर मैमनसिंह तंगेल ओर ढाका तक का कादर वाहिनी का प्रभाव न होता तो इस मार्ग से ढाका की ओर बढने वाली हमारी सेना का रास्ता इतना सुगम न होता ।

14 दिन के युद्ध में पाकिस्तान को पराजित करके ऐसी निर्णायक सफलता प्राप्त की गर्इ जिसका उदाहरण इतिहास में नहीं मिलेगा । पाकिस्तान की स्थापना दो राष्ट्र की नीति के आधार पर की गर्इ थी लेकिन इस युद्ध ने उसकी नीति की कमर तोड़ दी और यह सिद्ध कर दिया की धर्म के आधार पर बनाया राष्ट्र का असितत्व ज्यादा दिनो तक नहीं रह सकता । दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के जाबांज सैनिक अब्दुल कादर सिददीकी ने न्याय की लड़ार्इ में भारत का साथ देकर यह संदेश दिया कि मानवता की रक्षा सभी धर्मों से ऊपर है । 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की करारी पराजय ने यह सुनिशिचत कर दिया कि अपने बलबूते पर भारत से वह कभी युद्ध लड़ने का साहस नहीं कर पाएगा ।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds

Patel Motors

Demo Description


Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds