May 17, 2024

सोनोग्राफी के नियम से प्रशासन की नजरअंदाजी

जिम्मेदार प्रशासन आकस्मिक जाँच की एक भी कार्रवाई के लिये नहीं पहुंचा, सरकार की मंशा कैसे होगी साकार?
उज्जैन 18 सितम्बर। । सोनोग्राफी सेंटर संचालन के नियम से प्रशासन नजरअंदाजी किये हुए है। यही कारण है कि पिछले लम्बे समय से जिम्मेदार प्रशासन के एक भी अधिकारी ने आकस्मिक जाँच की जहमत नहीं उठाई है। इससे सरकार के लिंगानुपात कम किये जाने के तमाम प्रयास धूमिल होते नजर आ रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी पिछले एक-डेढ़ माह से पर्याप्त कार्य नहीं हो पाने की बात स्वीकारते हैं।
सोनोग्राफी सेंटर संचालन के अपने नियम हैं। सोनोग्राफी मशीन से भ्रूण का लिंग परीक्षण किया जा सकता है। इस पर प्रतिबंध है। कथित तौर पर कुछ सोनोग्राफी सेंटर संचालक इस तरह के कृत्यों में संलिप्त पाये गये। इसके बाद इस पूरे मसले पर ब्रेक के लिये पीसीपीएनडीटी अधिनियम लागू किया गया। इसके तहत सोनोग्राफी करवाने आने वाली तमाम गर्भवती महिलाओं की सम्पूर्ण जानकारी संचालक को रखना अनिवार्य है। इसके साथ ही सम्पूर्ण जानकारी से स्वास्थ्य विभाग को भी अवगत करवाना है। इसके लिये पूरी फार्म की प्रक्रिया रखी गई है।
विभाग की ढीलपोल, प्रशासन को जिम्मेदारी
पूर्व में पीसीएनडीटी एक्ट के तहत स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को इसके पालन के लिये जिम्मेदार बनाया गया था। विभागीय ढीलपोल की स्थिति देखते हुए बाद में इसमें संशोधन हुआ और प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जिम्मेदारियां दी गई।
मिली थी गड़बड़ियां
पूर्व कलेक्टर डॉ. एम. गीता के समय शहर और जिले के करीब 5 दर्जन सोनोग्राफी सेंटरों की जाँच की गई थी। जाँच में कई सारी गड़बड़ियां सामने आई थीं। हालत यह थी कि रिपोर्ट काफी देरी से सामने लाई गई थी। इस पर भी सख्ती के साथ कुछ सोनोग्राफी सेंटरों पर कार्रवाई की गई थी।
कोई नहीं पहुंचा इसके बाद
स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पूर्व कलेक्टर कार्यकाल में जो जाँच हुई थी, वही की गई थी, इसके बाद सिर्फ कागजी खानापूर्तियां की जाती रही हैं। प्रशासनिक स्तर पर उौन शहर में ही सिटी मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारी इन केन्द्रों पर जाँच के लिये नहीं पहुंचे। जाँच के लिये बनी समिति भी कागजों तक सिमट कर रह गई है। समिति के सिमट जाने के कारण यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि सोनोग्राफी सेंटरों पर 100 फीसदी ईमानदारी का काम चल रहा है।
सूचनाकर्ता के लिये इनाम
विभागीय सूत्र बताते हैं कि सोनोग्राफी सेंटर पर अवैध भ्रूण परीक्षण के मामले की सूचना देने वाले को 50 हजार रुपये का इनाम दिये जाने का प्रावधान है। नाम भी गुप्त रखा जाता है। सोनोग्राफी सेंटर संचालक के पकड़ाने पर सजा और दण्ड दोनों का प्रावधान इसके तहत है।
संवेदनहीनता की स्थिति
कतिपय सोनोग्राफी सेंटरों पर संवेदनहीनता की स्थिति के साथ अमानवीय दृष्टिकोण भी सामने आ रहा है। सोनोग्राफी की जाँच के दौरान पानी पिलाकर उसे पेट में रोका जाता है। इसका एक निर्धारित समय है। इसके बावजूद आर्थिक हवस में उससे कई गुना अधिक समय तक मरीज को बैठाये रखा जा रहा है। इस कारण से कई बार गर्भवती महिलाओं को दूसरी परेशानियां होना शुरु हो जाती है। यहां तक तो ठीक है कई सोनोग्राफी सेंटर दूसरे और तीसरे माले पर स्थित हैं। न तो इनमें लिफ्ट हैं और न ही रेम्प। ऐसी स्थिति में गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिये सुरक्षात्मक रुप से ठीक नहीं कहा जा सकता है।
नहीं हो सका स्टींग ऑपरेशन
पूर्व संयुक्त संचालक डॉ. पुष्पा गुप्ता के कार्यकाल के दौरान सोनोग्राफी सेंटर को लेकर संभाग के एक एनजीओ को स्टींग ऑपरेशन के लिये विभागीय तौर पर जिम्मेदारी देने की बात कही गई थी। लम्बे समय बाद भी एनजीओ स्टींग ऑपरेशन को अंजाम नहीं दे सका है और न ही विभागीय स्तर पर इसे लेकर कोई दूसरा तरीका ही अपराध पकड़ने के लिये इस्तेमाल किया गया। इस बात से यह स्पष्ट है कि विभाग काफी पीछे है और कतिपय सोनोग्राफी संचालक इस मामले में काफी आगे है। संयुक्त समिति के हाथ इन स्थितियों में बौने साबित हो रहे हैं।
पिछले एक-डेढ़ महीने से सीएमएचओ को लेकर अव्यवस्था की स्थिति बनी हुई थी। इस दौरान 4 सीएमएचओ बदल गए। इस दौरान हो सकता हो ढीलपोल रही हो। मामले पर फिर से ध्यान केन्द्रित कर जाँच रिपोर्ट और तमाम बिन्दु के तहत      कार्रवाई करेंगे।

डॉ. दिलीप नागर, प्रभारी संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं उज्जैन        संभाग उज्जैन

वैसे जाँच रिपोर्ट आ रही होंगी, मैंने हाल ही में वाईन किया है। उच्च न्यायालय के कुछ प्रकरणों में अभी व्यस्त रही। अगले दिनों में इस मुद्दे पर पूरा ध्यान देंगे।

डॉ. लक्ष्मी बघेल, सीएमएचओ,उज्जैन

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