सत्यापित नकल में चल रही ‘बड़ी अकल’
राजस्व एवं फर्म्स सोसायटी में आवेदक खा रहे हैं टल्ले
उज्जैन 20 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। प्रशासकीय कार्य में आम आदमी को टल्ले खाने पड़ते हैं। अफसरशाही के कारण ही अक्सर लालफीताशाही के आरोप लगते रहे हैं। वर्तमान में राजस्व विभाग और फर्म्स सोसायटी कार्यालय भरतपुरी में यही आलम देखने को मिल रहा है। सत्यापित नकल के एवज में आवेदकों को टल्ले दिये जा रहे हैं। चक्कर खाने के बावजूद आवेदकों का काम नहीं हो पा रहा है। सत्यापित नकल में टल्ले देने के पीछे भी ‘बड़ी अकल’ काम कर रही है।
राजस्व अभिलेखागार से नकल लेना टेड़ी खीर होता जा रहा है। आवेदन और नकल के लिये पूर्व से जमा की जाने वाली राशि के बावजूद आवेदक को दो-चार चक्कर खाये बगैर नकल नहीं मिल रही है। इस सबके पीछे उद्देश्यों की पूर्ति महत्वपूर्ण बन गई है। सत्यापित नकल का एक आवेदन 10 दिसंबर को पेश किया गया था। आवेदन लेने वाले बाबू ने इसमें 17 दिसंबर की नियत दिनांक को आवेदक को बुलाया था। उक्त दिनांक पर आवेदक को नकल उपलब्ध नहीं हुई। दो दिन बाद आने के लिये उसे कहा गया। गुरुवार को भी यही स्थिति निर्मित थी। कार्रवाई के मान से आवेदन जमा करने वाले की मांग अनुसार अभिलेखागार से दस्तावेज भेजे जाते हैं और सत्यापित प्रतियां समय पर उपलब्ध करवाना जिम्मेदारी बनती है। इसके बावजूद ‘बड़ी अकल’ का काम चल रहा है।
16 दिन बाद भी नकल नहीं दी
सहायक पंजीयक फर्म्स एवं सोसायटी कार्यालय भरतपुरी में रतलाम जिले से संबंधित एक सोसायटी के सदस्यों की सत्यापित सूची के लिये आवेदन किया गया था। इस जिले की कार्रवाई देखने वाले बाबू के निर्देश मुताबिक समस्त कार्रवाई करते हुए चालान जमा करते हुए आवेदक ने इसे भेजा था। तीन दिसंबर को यह चालान और समस्त दस्तावेज बाबू ने कार्यालय की पंजी में अंकित किये हैं। 19 दिसंबर तक संबंधित आवेदक को न तो सत्यापित सूची मिल सकी है और न ही कोई जवाब। गुरुवार को संबंधित कार्यालय में आवेदक के वाहक के जाने पर प्रथम तो बाबू का जवाब था कि ऐसा आवेदन नहीं आया। जब उसे दबाव देकर कहा गया कि देखिये तो सही, पंजी में आवेदन और चालान का इन्द्राज 3 दिसंबर की स्थिति में मिल गया। इस पर सत्यापित प्रति की मांग किये जाने पर बाबू का जवाब था, अभी तो काम नहीं हो पायेगा। मात्र 3 जवाब ही देने हैं। अगले सप्ताह आइये। बाबू से दिनांक पूछने पर उसका जवाब था, अगले गुरुवार तक देखेंगे।
क्या है राज
सूत्र बताते हैं कि फर्म्स एवं सोसायटी कार्यालय में वर्षों से पदस्थ बाबुओं के आलम निराले हैं। जिलों में इनके अपने खास लोग हैं। उनके माध्यम से ही कोई इन तक पहुंचता है तो काम तुरत-फुरत होता है। अगर कोई सीधा आवेदन आये तो उसके बाद आवेदक को इतने चक्कर लगवाये जाते हैं कि वह चौकड़ी भूल जाता है। यही कारण है कि कतिपय अशासकीय संस्थाओं पर खुफिया विभाग की नजर भी अब पड़ने लगी है। कतिपय संस्थाएं खुफिया दायरे में बनी हुई हैं। इन्हें मिल रहा अनुदान और तमाम प्रकार की सुविधाओं और इनसे संबंधित दस्तावेज दबे पड़े हैं।
नकल का भ्रष्टाचार
नकल की सत्यापित प्रति प्राप्त करने में भी आवेदक को भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ता है। नकल के लिये अग्रिम राशि आवेदक से जमा कराई जाती है। जितनी प्रति के लिये एक आम आवेदक आवेदन करता है उससे एक अग्रिम रकम जमा करवा ली जाती है। यह राशि आम आवेदक 20, 50 और 100 के रुप में जमा करता है जिसकी बकायदा रसीद दी जाती है जबकि कानूनी जानकार नकल के कागजों की गिनती कर उतने ही रुपये जमा करते हैं। आम आदमी को सत्यापित नकल प्रदान करते समय निर्धारित राशि काटकर शेष राशि वापस की जाना चाहिये। ऐसा होता नहीं है। अगर नकल के मान से आवेदक ने 20 जमा किये हैं और 8-10 रुपये की नकल हुई है तो शेष 10 रुपये वापसी नहीं होते। यही स्थिति 50 और 100 के अग्रिम में भी होती है। सीधे तौर पर यह कहा जाये कि प्रमाणित भ्रष्टाचार पर लोकायुक्त की तिरछी नजर की जरुरत है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।