लॉ ऐंड ऑर्डर प्रॉब्लम नहीं, साजिश है कश्मीर की पत्थरबाजी: NIA
नई दिल्ली,03 फरवरी (इ खबरटुडे)। जम्मू और कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं लॉ ऐंड ऑर्डर से जुड़ी समस्या नहीं हैं बल्कि यह पाकिस्तान के समर्थन और फंडिंग के जरिए सैयद अली शाह गिलानी जैसे हुर्रियत नेताओं और हाफिज सईद और सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकियों की एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा हैं। यह दावा किया है नैशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने।
NIA की चार्जशीट के मुताबिक, ‘कश्मीर में पत्थरबाजी एक उद्योग का रूप ले चुकी है, जहां हुर्रियत और उससे जुड़े समूहों के काडर जिला, तहसील, वॉर्ड और मोहल्ला स्तर पर इसे अंजाम देते हैं। विभिन्न स्तरों पर अलगाववादी नेताओं ने पत्थरबाजी के लिए हथियारबंद समूह बना रखे हैं जो खुद का चेहरा ढककर रखते हैं। इसमें मुख्य तौर पर कश्मीर घाटी के नौजवानों को शामिल किया गया है।’
अलगाववादियों को ‘कश्मीर में आतंकवाद का राजनीतिक चेहरा’ बताते हुए NIA ने कहा है कि ‘जम्मू और कश्मीर को भारत से अलग करने की अपनी बड़ी साजिश’ के हिस्से के तौर पर ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और आतंकियों ने पत्थरबाजी की रणनीति बनाई है।
पत्थरबाजी के इस ‘उद्योग’ में योजना बनाने वाले हैं तो रणनीति तैयार करने वाले, फंड इकट्ठा करने वाले, कैश कूरियर और इसे अंजाम देने वालों के नेटवर्क भी शामिल हैं। इसके अलावा इस ‘उद्योग’ में पब्लिसिटी मैनेजरों से लेकर राजनीतिक प्रॉपेगैंडा फैलाने वालों का तंत्र काम कर रहा है जो बंद, सड़कों पर जबरन जाम, सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने, आगजनी करने, स्कूलों को जलाने, बैंकों को लूटने और मुठभेड़स्थलों पर सुरक्षाबलों के ऊपर भीड़ के हमलों को अंजाम दिलाने के लिए लगातार काम कर रहा है।
हुर्रियत के काडर दुकानदारों, कारोबारियों और कश्मीर के बाशिंदों से फंड इकट्ठा करते हैं जिन्हें ‘रुकुन’ कहा जाता है। ये कभी-कभी तो सेब उत्पादकों को 5 से 10 लाख रुपये देने के लिए धमकाते हैं।
ये पेशेवर पत्थरबाज कश्मीर के तमाम शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों में निर्दोष व भोलेभाले लोगों को बरगलाकर सेना, सीआरपीएफ या जम्मू-कश्मीर पुलिस पर हिंसा की शुरुआत करते हैं। ये पेशेवर पत्थरबाज हिंसा के वक्त मासूम लोगों को अपनी ढाल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
एनआईए ने कहा कि अक्सर सुरक्षा बल हिंसा कर रहे पेशेवर पत्थरबाजों से निपटने के लिए बल प्रयोग के इस्तेमाल को मजबूर हो जाते हैं। एजेंसी ने आगे कहा है कि पत्थरबाजी के वक्त जो युवा पेलेट गन से घायल होते हैं उन्हें अलगाववादी अपने अजेंडे को हाइलाइट करने के लिए ‘ट्रोफी’ के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
पत्थरबाजी की घटनाएं इतनी सुनियोजित होती हैं कि अलगाववादियों ने इसके लिए एक विस्तृत कैलेंडर भी बना रखा है। कैलेंडर में विरोध-प्रदर्शन, हमले, सड़क जाम, सार्वजनिक परिवहन को बाधित करने, जुलूस या मार्च निकालने, बाजारों को बंद करने जैसी गतिविधियों को लेकर विस्तार से निर्देश दिए गए हैं।