राग-रतलामी/डाक्टर मैडम के राज में निगम ने बनाया जलसंकट और कमाई का नया रेकार्ड
-तुषार कोठारी
रतलाम। डाक्टर मैडम के राज में नगर सरकार ने जलसंकट का नया रेकार्ड बनाया है। रतलाम पहले से जलसंकट के लिए बदनाम था। बाहर के लोग अपनी लडकियां रतलाम में ब्याहना पसन्द नहीं करते थे। फिर ढोलावाड बान्ध बनने से स्थिति थोडी सी बदली थी,लेकिन निगम के नेताओं को दुख यह था कि रतलाम की पहचान बन चुका जलसंकट यदि समाप्त हो गया,तो पहचान खो जाएगी। नतीजा यह हुआ कि शहर में दो दिन में एकबार जल वितरण करने का नियम बना दिया गया। अब जब डाक्टर मैडम की बारी आई तो उन्होने शहर की जलसंकट वाली पहचान को और मजबूत करने की योजना बना डाली। पहले तो जलसंकट सिर्फ गर्मियों में होता था। गर्मी की छुट्टियों में रतलामवासी अपने बाहर के रिश्तेदारों को रतलाम आने से मना कर देते थे। डाक्टर मैडम के राज में अब रतलाम के लोग पूरे साल भर अपने रिश्तेदारों को रतलाम आने से मना करने लगे है। कोई मौसम ऐसा नहीं होता,जब शहर में पेयजल का संकट ना हो। नगर निगम ने बारिश और सर्दियों के मौसम में भी जलसंकट जारी रखने का रेकार्ड कायम कर लिया है। हांलाकि जानकारों का कहना है कि इस जलसंकट से कमाई भी की जा रही है। पिछले कुछ समय में शहर में पेयजल की टंकिया सप्लाय करने वालों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। अगर लोगों को नगर निगम के नलों से ही पानी मिल जाएगा,तो पानी की टंकिया कौन खरीदेगा? जलसंकट बरकरार रहेगा,तो पानी वालों का धन्धा फलेगा फूलेगा। उनका धन्धा चमकेगा तो निगम के जिम्मेदारों को भी इसका लाभ मिलेगा। जिस दिन,जिस इलाके में जल वितरण बाधित होता है,इस इलाके में पानी की टंकी वाले टंकिया उपलब्ध कराने पंहुच जाते है। उन्हे पहले ही यह जानकारी मिल जाती है कि आज फलाने इलाके में जल वितरण नहीं होगा। यही वो राज है,जिसकी वजह से शहर में जलसंकट का यह रेकार्ड बनाया गया है। पूरे हिन्दुस्तान में आय का ऐसा यूनिक तरीका कोई भी नहीं ढूंढ सका है। वैसे भी पांच साल खत्म होने को आए है,ऐसे में आय के नए साधन ढूंढना कौन सी गलत बात है।
मैडम को कोई फर्क नहीं पडता…
चुनावी सरगर्मियों के थमने के साथ ही अब नगर सरकार की उठापटक का दौर शुरु हो गया है। अब नगर सरकार को अपना साधारण सम्मेलन करना है। वैसे तो डाक्टर मैडम को सम्मेलन की कोई चिन्ता होती नहीं है,लेकिन मजबूरी है कि सम्मेलन करना है। सम्मेलन के लिए पहले पार्टी के पार्षदों की बैठक भी करना पडती है। बैठक में पार्षदों की नाराजगी सामने आती ही है। रुद्र पैलेस में कई पार्षदों ने अपना रौद्र्र रुप दिखाया। पार्षदों की दिक्कत ये है कि सत्ता पक्ष के होने के बावजूद उनके वार्डों में काम ही नहीं हो रहे है। पिछले दिनों तक तो आचार संहिता का बहाना था,लेकिन अब आचार संहिता खत्म हो गई है। वार्डो के मतदाता काम नहीं होने पर पार्षदों को पकडते है। पार्षद बेचारे क्या करें। बडे साहब काम करते नहीं है। डाक्टर मैडम सुनती नहीं है। पार्षदों के पास बैठकों में नाराजगी जताने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। शहर की पहली नागरिक डाक्टर मैडम को पता है कि अगली बार आरक्षण बदल जाएगा,इसलिए वे काम करें या ना करें,कोई फर्क नहीं पडने वाला। फर्क पडेगा तो पार्टी को पडेगा। नगर सरकार का वक्त भी अब ज्यादा बचा नहीं है। दो-तीन महीनों बाद फिर से आचार संहिता लगने वाली है। आम चुनाव की आचार संहिता निपटेगी तब तक नई नगर सरकार के चुनाव का वक्त आ जाएगा। विधायक महोदय तो अपने काम काज के भरोसे अपनी नैया पार कर गए,समस्या तो फूल छाप की है। नगर निगम के अगले चुनाव में पार्टी को अपने कामों का हिसाब देना पडेगा। डाक्टर मैडम के लिए तो राजनीति पार्टटाइम जाब है। वे तो आराम से अपने काम में लग जाएगी। आगे आने वाले नेता जनता को अपना मुंह कैसे दिखा पाएंगे,यह सवाल पार्टी वालों को परेशान कर रहा है।
पार्टियों की सिरफुटौव्वल
चुनाव के मिले जुले नतीजों ने दोनो ही पार्टियों में सिर फुटौव्वल मचा दी है। कहीं हार के कारण विवाद खडे हो रहे है,तो कहीं जीत के बावजूद विवाद है। रतलाम ग्रामीण सीट पर पंजे की हार के बाद अब पार्टी के नेताओं के पुतले जलाए जा रहे है। हांलाकि पंजे की हार का कारण भी यही था। पंजे वाले चुनाव के पहले से ही फूल छाप वालों से लडने की बजाय आपस में ही लड रहे थे। नतीजा हार के रुप में सामने आया। नतीजा आते ही अब पुतले जलाने का दौर शुरु हो गया है। फूल छाप वाले भी कहां पीछे रहने वाले थे। नवाबी शहर जावरा में फूल छाप की जीत के बावजूद आरोप प्रत्यारोप का दौर चला। दोनो पार्टियों में अब नजरे प्रदेश पर लगी हुई है,कि वहां से क्या कार्रवाई होती है…।
वीकली आफ-दिल बहलाने की कोशिश
प्रदेश के साथ साथ रतलाम के पुलिसिये भी इन दिनों खुश है। प्रदेश के मुखिया ने साप्ताहिक अवकाश देने की घोषणा की है। वीकली आफ मिलेगा या नहीं,कोई नहीं जानता,लेकिन इस घोषणा से कम से कम दिल तो बहल गया है। मुख्यालय से अब तक कोई आदेश नहीं जारी हुए है,लेकिन खबरचियों ने जब अफसरों से इसके बारे में पूछा तो बताया गया कि रोस्टर बनाने की तैयारी की जा रही है। हांलाकि आने वाले दिनों में इस बात की उम्मीद कम ही है कि वीकली आफ मिल जाए। दो-तीन महीनों के बाद फिर से चुनावी दौर आने वाला है। ऐसे में वीकली आफ तो दूर जरुरी कामों के लिए भी छुट्टियां नहीं मिलने वाली।