भारत का भाग्य जगाना है तो शबरी के जूठे बैर खाने होंगे
भंवरलाल भाटी स्मृति व्याख्यानमाला में समाजिक समरसता विषय पर प्रमोद झा ने कहा
रतलाम,१० अक्टूबर (इ खबरटुडे)। हजारों वर्षों से दीन दलित और पिछडे बंधुओं पर अत्याचार किया जा रहा है। भेदभाव और छुआछूत का यह पाप हमारा व हमारे देश का दुर्भाग्य है। यदि भारत का भाग्य जगाना है तो फिर से शबरी के जूठे बैर खाने होंगे। वैदिक काल से लेकर आज तक हमारे ऋ षि मुनियों,महपुरुषों ने निरन्तर भेदभाव को मिटकर सामाजिक समरसता के लिए निरन्तर प्रयास किए है। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से यह कार्य गति पकड रहा है।
उक्त उद्गार भंवरलाल भाटी स्मृति व्याख्यानमाला के प्रथम दिन सामाजिक समरसता विशेषज्ञ एवं रास्व संघ के सामाजिक सद्भाव प्रमुख प्रमोद झा ने मुख्य वक्ता के रुप में कहे। व्याख्यानमाला का आयोजन गुजराती स्कूल के पटेल सभागृह में किया गया थाा। श्री झा ने कहा कि हमारे किसी वेद पुराण या शा में जाति प्रथा का उल्लेख नहीं है। उन्होने वैदिक ऋ षियों का उदाहरण देते हुए बताया कि देवर्षि वशिष्ठ वैश्या के गर्भ से उत्पन्न हुए थे,जबकि देवर्षि नारद दासी पुत्र थे। अगस्त्य मुनि कुम्हार महिला के पुत्र थे। वैदिक युग में जााति व्यवस्था का कोई स्थान नहीं था।
श्री झा ने कहा कि वैदिक काल से लगाकर भगवान राम और कृष्ण तक और गौतम बुध्द महवीर स्वामीतक सभी महपुरुषों ने सामाजिक समरसता का संदेश दिया। भक्ति काल के तमाम महापुरुषों ने भी यही संदेश दिया। श्री झा ने उदाहरण देते हुए बताया कि राम ने शबरी के जूठे बैर खाए। आदिगुरु शंकराचार्य का उदाहरण देते हुए उन्होने बताया कि काशी में गंगास्नान के बाद एक चाण्डाल के शब्दों से उन्हे ब्रम्हज्ञान प्राप्त हुआ था।
श्री झा ने कहा कि हमारे महापुरुषों के पुण्यों का फल है कि हम आज सामाजिक समरसता के विषय पर चिन्तन करने के लिए एकत्र हुए हैं। उन्होने कहा कि अब समाज को यह तथ्य ध्यान में आने लगा है कि भेदभाव की दृष्टि रखकर भगवान को प्राप्त नहीं किया जा सकता। बाबा साहेब आम्बेडकर का उल्लेख करते हुए उन्होने कहा कि हिन्दू समाज के अत्याचारों को सहने के बावजूद उन्होने इस्लाम या इसाई धर्म नहीं अपनाया बल्कि बौध्द धर्म अपनाया। वे जानते थे कि यदि वे अपने अनुयायियों को सही दिशा नहीं दिखाएंगे तो यह समाज व देश के लिए घातक हो सकता है।
श्री झा ने कहा कि अब समय बदलने लगा है। समाज को अब समझ में आने लगा है कि भेदभाव को छोडना ही होगा। उन्होने कहा कि जिस काला राम के मन्दिर में बाबा साहब आम्बेडकर को पांच वर्ष तक प्रयास करने के बावजूद प्रवेश नहीं करने दिया गया,उस काला राम मन्दिर को वर्ष २००४ में सभी के लिए खोल दिया गया है। अब वहां किसी के भी प्रवेश पर प्रतिबन्ध नहीं है। उन्होने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणाा से सेवा भारती जैसी संस्थाएं और अनेक लोग अब सामाजिक समरसता का भाव लेकर काम में जुटे है। उन्होने सभागार में उपस्थित प्रबुध्द जनों से आव्हान किया कि वे अपने जीवन में सामाजिक समरसता का संकल्प लें।
प्रारंभ में भंवरलाल भाटी स्मृति व्याख्यानमाला समिति के अध्यक्ष डॉ डीएन पचौरी ने स्व. भंवरलाल भाटी के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि स्व.भाटी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और उनके जीवन से कई लोगों ने प्रेरणा प्राप्त की है। उनकी स्मृति आज भी लोगों के मन में जीवित है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कला एवं विज्ञान महाविद्यालय की प्राध्यापक डॉ.पूर्णिमा लोधवाल ने की। प्रारंभ में अतिथियों ने मां सरस्वती और स्व.भंवरलाल भाटी के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। अतिथी परिचय संस्था सचिव तुषार कोठारी व आभार प्रदर्शन हिमांशु जोशी ने किया। कार्यक्रम का समापन तोषी पुरोहित व प्राची पुरोहित के सुमधुर वन्दे मातरत गायन से हुआ।