जयराम ठाकुर बने हिमाचल के 14वें सीएम, दो मंत्रियों ने संस्कृत में शपथ ली, इनको मिली मंत्रिमंडल में जगह
शिमला,27 दिसंबर(इ खबर टुडे)। हिमाचल प्रदेश में नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सूबे के चौदहवें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. शपथग्रहण समारोह में पीएम मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, कई केंद्रीय मंत्री, पार्टी के बड़े नेताओं समेत बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद रहे.मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर समेत 10 मंत्रियों ने शपथ ली जिसमें से दो विधायकों ने मंत्री पद की शपथ संस्कृत में ली. शपथ लेने से पहले जयराम ठाकुर ने कहा, लोगों ने हम पर विश्वास दिखाया और हम उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे
ये पहली बार था जब कोई पीएम हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के शपथग्रहण में शिरकत की. गुजरात की तरह यहां भी बीजेपी की शक्ति प्रदर्शन किया. यहां पांच साल बाद बीजेपी ने 68 में से 44 सीटें जीतकर भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई है. हालांकि इसके सीएम उम्मीदावर प्रेम कुमार धूमल अपनी सीट नहीं बचा पाए, जिसके बाद जयराम ठाकुर के नाम पर मुहर लगी.
इन विधायकों ने ली मंत्री पद की शपथ
1.महेंद्र सिंह ठाकुर
महेंद्र सिंह ठाकुर मंडी की धर्मपुर विधानसा क्षेत्र से हैं. छह बार के विधायक हैं. पहले पांच चुनाव अलग-अलग सिंबल पर जीते. पहला चुनाव 1989 में आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़ा और जीता. 1993 में पंडित सुख राम कांग्रेस में लाए और वह चुनाव जीत गए. 1998 में जब पंडित सुखराम ने हिविकां बनाई तो महेंद्र सिंह ने तीसरा चुनाव हिविकां की ओर से लड़ा और जीता. इस दौरान सरकार में मंत्री बने. 2003 में महेंद्र सिंह ने हिम लोकतांत्रिक मोर्चा के बैनर तले चुनाव लड़ा और जीता. 2007 में भाजपा में आ गए. फिर से चुनाव लड़ा व जीता. तीन बार मंत्री रह चुके हैं.
2-राजीव सैजल
सोलन की कसौली सीट से जीते राजीव सैजल भी मंत्रीमंडल में शामिल किया है. उन्होंने इस सीट से लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की है. अनुसूचित जाति से आते हैं. जातीय समीकरण की वजह से भी इनके मंत्री बनने की प्रबल संभावना हैं.
3- सुरेश भारद्वाज ने संस्कृत में ली शपथ
शिमला शहरी सीट से 65 वर्षीय सुरेश भारद्धाज बीएससी व ला ग्रेजूयेट हैं. छात्र काल में एबीवीपी से जुड़े रहे. बाद में राजनिति का रुख किया. 1982 में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे. 2003 से लेकर 2006 तक फिर भाजपा की कमान संभाली. 1990 में पहली बार विधायक चुने गये. उसके बाद 2007 में फिर विधायक बने. 2012 में भी चुनाव जीता. राज्यसभा सासंद भी रहे हैं. इस बार भी जीते हैं. इनके स्पीकर बनाए जाने की भी चर्चा है.
4-अनिल शर्मा
अनिल शर्मा मंडी से हैं. पंडित सुखराम के बेटे हैं. मौजूदा कांग्रेस सरकार में मंत्री थे. लेकिन चुनाव से ठीक पहले, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए. तीन बार विधायक और एक बार राज्यसभा सांसद भी रहे. 1996 में पिता की गिरफ्तारी के बाद मंत्री छोड़ा था. पिता के साथ नई पार्टी बनाई. 2004 में पार्टी समेत कांग्रेस में गए. मौजूदा सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री थे. भाजपा में शामिल होने से पहले उन्होंने दावा किया था कि उन्हें मंत्री बनाने का आश्वासन मिला है.
5- गोविंद ठाकुर ने संस्कृत में शपथ ली
मनाली सीट से जीते गोविंद ठाकुर को भी जयराम ठाकुर के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. क्योंकि यहां से कुल्लू सीट से भाजपा के कद्दावर नेता महेश्वर सिंह हार गए हैं. गोविंद ठाकुर तीन बार लगातार विधायक बने चुने गए हैं.
6- रामलाल मार्कंडेय
लाहौल स्पीति से भाजपा के रामलाल मार्कंडेय ने कांग्रेस प्रत्याशी रवि ठाकुर को हराया. इस सीट पर दोनों पार्टियों ने पुराने चेहरों पर ही दांव खेला था। पहले लाहौल स्पिति से कांग्रेस के उम्मीदवार रवि ठाकुर विधायक थे। 2012 के आंकड़ों के अनुसार इस सीट के लिए करीब 21910 मतदाता थे. पिछले विधानसभा चुनाव में लाहौल स्पिति क्षेत्र से 7 उम्मीदवारों ने नामांकन भरा था.
7-विपिन परमार
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा के उम्मीदवार विपिन सिंह परमार ने कांग्रेस के प्रत्याशी जगजीवन पॉल को 10291 मतों के अंतर से हराया. उनके पिता का नाम कंचन सिंह परमार है. उन्होंने ग्रेजुएशन में बीए और एलएलबी भी किया है. सिंह एक एलआईसी एजेंट और गणपति एसोसिएट के बिजनस पार्टनर हैं. उनके ऊपर किसी भी प्रकार का आपराधिक मामला दर्ज नहीं है. इन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में ही ABVP का दामन थामा था. वे 1980 में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे हैं. वह 8 साल से हिमाचल प्रदेश ABVP के आयोजक सचिव रहे हैं. वह दो बार राज्य बीजेपी के जनरल सेक्रेटरी भी रहे हैं. वर्तमान में वे हिमाचल प्रदेश बीजेपी कांगड़ा चंबा युवा मोर्चा के अध्यक्ष हैं. वह 1999 से 2003 तक हिमाचल प्रदेश के खादी बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं.
8- वींरेंद्र कवंर
ऊना सदर से भाजपा अध्यक्ष सत्ती के हारे के बाद अब इसी जिले की कुटलेहड़ सीटे से जीते वींरेंद्र कवंर को भी मंत्री बनाया गया है. फार्मेसी में डिप्लोमा और लॉ करने वाले विधायक वीरेंद्र कंवर तेज तर्रार नेताओं में गिने जाते हैं. धूमल खेमे से हैं. इन्होंने तो हार के बाद धूमल के लिए अपनी सीट छोड़ने का ऐलान तक कर दिया था. 2012 के चुनाव में वीरेंद्र कंवर 26028 वोट मिले थे. 2003 से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं.