कोरोना एक अवसर है प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति को पुनर्जीवित करने का
– डॉ रत्नदीप निगम
आयुर्वेदाचार्य
मित्रों आज कोरोना के संकट काल में लगातार समाचार पत्रों में सभी आधुनिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों और विश्व भर के न्यूट्रिशनस के लेख और बयान छप रहे हैं । इन सभी के बयानों में एक ही समानता है वह है कोरोना ने इन सभी को सिर के बल खड़ा कर दिया है अर्थात इनके बयान इनकी मानसिकता और व्यवहार के विपरीत प्रतीत हो रहे हैं । इन बयानों में बार बार उल्लेखित हो रहा है ” रोग प्रतिरोधक शक्ति अर्थात इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाना ” । इसके लिये दुनिया भर के चिकित्सा वैज्ञानिक विटामिन c के सेवन पर जोर दे रहे हैं और सभी विश्वस्तरीय हॉस्पिटल में कोरोना के मरीजों को विटामिन c से ईलाज किया जा रहा है । अब इन विशेषज्ञों से और इन आधुनिक चिकित्सा के विशेषज्ञों से यदि पूछा जाए कि हजारों वर्ष पूर्व से आयुर्वेद ग्रंथों में वर्णित च्यवनप्राश विटामिन c के कौनसे बड़े स्त्रोत से बनता है ? तो भारत के प्रत्येक व्यक्ति यहाँ तक कि आयुर्वेद को कोसने वाले भी बता देंगे कि च्यवनप्राश विटामिन c के सबसे बड़े स्त्रोत आँवले से बनता हैं । और च्यवनप्राश में तो आंवले के अतिरिक्त इम्युनिटी पॉवर बढ़ाने की अन्य औषधि भी मिश्रित होती हैं । नींबू , मौसंबी , संतरा के गुणगान करने वाले न्यूट्रिशनस अपने अल्पज्ञान का प्रदर्शन करने की अपेक्षा व्यवस्थित , प्रमाणित , पूर्णतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित आयुर्वेद का उल्लेख करें और अध्ययन करें । वर्तमान परिदृश्य में पुलिस के डंडे खाये बगैर लोग लॉक डाउन का पालन नहीं कर रहे हैं वैसे ही कोरोना का डंडा पड़ने पर इन तथाकथित विशेषज्ञों को विटामिन c और रोग प्रतिरोधक क्षमता जैसे शब्द याद आ रहे हैं अन्यथा तो चिल्ला चिल्ला कर,पानी पी पीकर आयुर्वेद और उसके सिद्धान्त को कोसने रहते थे । अतः पुनः आग्रह है प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी गण , समाज के प्रबुद्ध जन , आधुनिक डिग्रियों से सुसज्जित और उनके अहंकार से युक्त समाज जन एक बार अपनी उच्चावस्था के शिखर से उतर कर कोरोना के इस भीषण काल में चिंतन मनन करें और अपनी जड़ों को टटोल लें । किस तरह हमने अपनी जड़ों पर प्रहार किया आज तक जिसके परिणामस्वरूप एक वाइरस ने हमारी हैसियत दिखा दी कि हमारे शरीर की जड़ें कितनी मजबूत है ? जो तुलसी घर के आँगन में चौकीदार की तरह रहकर किसी वाइरस को घर मे प्रवेश नही करने देती थी वह तुलसी खिलखिलाकर हँस रही है हम पर , चिड़ा रही है हमें हमारी असहाय स्तिथि पर , घर के कैदी बनने पर । 21 दिन के लॉक डाउन में घर बैठ कर सोचियेगा कौन जिम्मेदार है हमारे शरीर के प्रतिरोधक तंत्र को नष्ट करने का । चीन की आलोचना करने के साथ सोचना कि चीन ने वाइरस के साथ साथ अपनी प्राचीन चिकित्सा पद्धति के लिए भी कितना और क्या क्या कार्य किया ? अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब विश्व को संबोधित करते हुए मलेरिया की दवा से कोरोना को ठीक करने का दावा प्रस्तुत करते हैं तो हम आयुर्वेद चिकित्सकों को हँसी आती है कि आदरणीय ट्रम्प साहब आपको जानकारी होने में बहुत देर हो गई । लगभग दो हजार वर्ष पूर्व महासुदर्शन काढ़ा का उल्लेख आयुर्वेद की संहिताओ में वर्णित है और भारत का सामान्य जनमानस मलेरिया में सुदर्शन औषधि का बहुतायत में उपयोग करता है । चीन की ही एक महिला आयुर्वेदिक चिकित्सक ने चीन के पौधे आर्टीमीसिया से मलेरिया की आर्टिमिसिन औषधि बनाकर नोबल पुरस्कार प्राप्त कर लिया और हम क्वारेन्टीन शब्द का अर्थ गूगल पर सर्च करते फिर रहे हैं । कोरोना एक अवसर है हमारे लिए पुनः भारत को पुनर्जीवित करने के लिए अन्यथा प्रतीक्षा कीजिए फिर किसी देश के किसी वाइरस की आलोचना और अनेक लॉक डाउन का ।