कृषि विभाग में बडी गडबडी,किसानों को दिया जा रहा हैैं गेंहू का आउट डेटेड,अमानक बीज,सबसिडी में भी गडबडी
रतलाम,20 नवंबर (इ खबरटुडे)। भारत में वैज्ञानिक तरीकों से कृषि करने के लाख दावे किए जाते हो,लेकिन कृषि विभाग कमीशनखोरी के चक्कर में किसानों को अभी भी आउट डेटेड अमानक बीज उपलब्ध करवा रहा है। अमानक बीज बोने से किसानों को भारी नुकसान हो सकता है,लेकिन बीज पर दी जाने वाली सबसिडी में घोटाला करने के आदी हो चुके कृषि विभाग के जिम्मेदार अधिकारी आंखे मूंदे बैठे हुए हैं।
पुरानी क्वालिटी से नुकसान का खतरा
कृषि वैज्ञानिकों का साफ कहना है कि गेंहू की किसी भी नई वैरायटी को दस साल से अधिक समय तक नहीं बोना चाहिए। पुरानी वैरायटी के बीज बोने से उत्पादन कम होने के साथ साथ फसल में बीमारियों की आशंका भी बढ जाती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ.सर्वेश त्रिपाठी ने बताया कि किसानो को सदैव यह सलाह दी जाती है कि किसी भी क्वालिटी के बीज को सद वर्ष से अधिक समय के बाद उपयोग नहीं करना चाहिए। लोक वन क्वालिटी वर्ष 1970-71 की है और इसे विकसित हुए करीब करीब पचास साल हो चुके है। अब इस किस्म का गेंहू नहीं बोना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने गेंहू की कई नई किस्में जैसे पूसा,तेजस,पोषण आदि विकसित की है। लोकवन जैसी पुरानी क्वालिटी के बीज बोने से फसल को कण्डवा रोग लगने का खतरा रहता है,जिसमें गेंहू के दो काले पड जाते है। एक अन्य कृषि वैज्ञानिक एमके श्रीवास्तव के अनुसार, नई किस्मों के बीज बोने से किसान को अधिक उत्पादन मिलता है और बीमारियों का खतरा भी कम होता है। इसीलिए कृषि वैज्ञानिक किसानों को पुरानी क्वालिटी के बीज नहीं बोने की सलाह देते है।
वैज्ञानिक सलाह की अनदेखी
लेकिन इन दिनों कृषि वैज्ञानिकों की सलाह को पूरी तरह अनसुनी करके करीब पचास साल पुरानी गेंहू की लोक वन किस्म के बीज किसानों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में गेंहू की कई नई किस्मों को विकसित किया जा चुका है। इन नई किस्मों को बोने से जहां किसानों को अधिक उत्पादन मिलता है,वहीं फसल में कीट लगने का खतरा भी बहुत कम हो जाता है। लेकिन जिले के अधिकांश किसान पिछले करीब पैंतालिस सालों से लोक वन गेंहू पर ही अटके हुए हैं।
जिम्मेदारी से पल्ला झाडता कृषि विभाग
कृषि विभाग के आंकडों के मुताबिक जिले में एक लाख 74 हजार एकड में गेंहू बोया जाता है। अब तक एक लाख 29 हजार एकड के लगभग बोवनी हो चुकी है। किसानों का कहना है कि जिले की 126 सोसायटियों से किसानों को लोकवन क्वालिटी का ही बीज उपलब्ध करवाया जा रहा है। यह बिना कृषि विभाग के प्रोत्साहन के संभव नहीं है। खुद कृषि विभाग के प्रोत्साहन पर ही किसानों को यह आउट डेटेड और अमानक बीज उपलब्ध कराया जा रहा है। जबकि यह जिम्मेदारी कृषि विभाग की है कि वह किसानों को वैज्ञानिक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करें। कृषि विभाग के उपसंचालक ज्ञानसिंह मोहनिया का कहना है कि ज्यादातर किसान लोक वन ही बोना चाहते है,तो उन्हे वही बीज दिए जाते है। नई वैरायटियां भी उपलब्ध है और इसमें सबसिडी भी अधिक दी जाती है,लेकिन किसान नई वैरायटियों का अधिक उपयोग नहीं करते। श्री मोहनिया के मुताबिक किसान एकदम से वैरायटी नहीं बदलते,वे कुछ जमीन में नई वैरायटी लगाते है और कुछ में पुरानी वैरायटी लगाते है।
सबसिडी में भी घोटाला
किसानों को उपलब्ध कराए जा रहे इस अमानक बीज पर शासन द्वारा दी जा रही सबसिडी में भी लाखों का घोटाला होने की बात सामने आ रही है। लोक वन क्वालिटी का आउट डेटेड बीज का चालीस किलो का कट्टा किसान को चौदह सौ रु. में दिया जा रहा है,जबकि यही गेंहू कृषि विभाग द्वारा सोसायटी को मात्र नौ सौ रुपए में दिया जाता है। सोसायटियां नौ सौ रु. के गेंहू के कट्टे को किसानों को चौदह सौ रुपए में दे रही है। इस तरह प्रत्येक चालीस किलो के कट्टे पर सोसायटियां पांच सौ रुपए का घोटाला कर रही हैै।