May 3, 2024

… और करतल ध्वनि के साथ पाठको की हुई स्वर्णपात्र

सुधि श्रेष्ठीजन की मौजूदगी में हुआ आयोजन

रतलाम,25 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला की वैदिक कविता की पुस्तक स्वर्णपात्र आखिरकार आज पाठको  की हो गई। रविवार को प्रकाशक अर्यमा हाउस ऑफ क्रियेशन्स् के बैनर तले  हुए सादे किंतु गरिमामयी आयोजन  में नगर के सुधि पाठको  की करतल ध्वनि के बीच पुस्तक का विमोचन व सम्मान हुआ। मुख्य अतिथि साहित्यकार व भाषाशास्त्री डॉ. जयकुमार जलज थे । विशेष  अतिथि सिंधिया प्राच्य विद्या शोध  प्रतिष्ठान विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन के आचार्य एवं निदेशक डॉ. बालकृष्ण शर्मा थे । अध्यक्षता अतिरिक्त जिला एवं सत्र्ा न्यायाधीश रतलाम सत्येंद्र जोशी ने की। अतिथिय¨ं ने दीप प्रज्जवलित कर आयोजन की शुरुआत की।
आनंद कॉल¨नी स्थित डॉ. कैलासनाथ काटजू विधि महाविद्यालय के सभागार में मौजूद सुधि पाठक¨ं में साहित्यकार, समालोचक  कवि, रंगकर्मी, लेखक, टिप्पणीकार, संपादक थे । साहित्यकार डॉ. रतन चौहान ने पुस्तक स्वर्णपात्र से परिचय करवाते हुए समीक्षात्मक विचार व्यक्त किए। अतिथियो  ने पुस्तक के लेखक डॉ. चांदनीवाला का शाल श्रीफल से सम्मान किया। डॉ. चांदनीवाला ने पुस्तक स्वर्णपात्र से सस्वर रचनापाठ कर मंत्रमुग्ध कर दिया।  स्वागत उद्बोधन रितम उपाध्याय ने दिया। अतिथियो को  स्मृति चिन्ह विनय चांदनीवाला, अमित श्रीवास्तव ने भेंट किए। संचालन रंगकर्मी कैलाश व्यास ने किया। आभार रितम उपाध्याय ने माना।
वफादारी के साथ सुंदरता का समावेश
डॉ. जलज ने कहा कि रचना की सुंदरता के साथ मूल के साथ वफादारी करना बड़ा मुश्किल कार्य है। अनुवाद त¨ कठिन कार्य है ही अनुवाद के साथ पुनर्रचना और  भी कठिन है। ऐसा माना जाता है कि जहां रचना की सुंदरता की और  ध्यान देते हैं त¨ मूल के साथ वफादारी नहीं होती , और  वफादारी करते हैं तो ¨ रचना की सुंदरता प्रभावित होती । दोधारी तलवार पर चलने में डॉ. चांदनीवाला सफल हुए। पुस्तक स्वर्णपात्र्ा में रितम उपाध्याय का चित्रांकन  स्तुत्य है। रचना के भाव¨ं के साथ चित्र्ा¨ं का सामंजस्य है। प्रकाशत की भूमिका लेखक से कम नहीं होती। अमित श्रीवास्तव भी बधाई के पात्र्ा हैं।
जिज्ञासा, उमंग और ज्ञान है स्वर्णपात्र में
श्री जोशी ने अध्यक्षतावाली पीड़ा को  बयां करते हुए कहा कि अधिकांश अध्यक्षता करने वाले ¨ के भाव पहल्¨ वक्ता सुना देते है, सुनना भी बेहद कठिन कार्य है। ख्¨र, स्वर्णपात्र पुस्तक को पढ़ने और  समझने का अवसर मुझे रतलाम से इंदौर  जाते समय मिला। इसमें जिज्ञासा, ज्ञान और  उमंग है। पुस्तक ने वेद से परिचय कराया है। वेद से कविताएं निकल सकती है, यह पहलीबार पढ़ा है। डॉ. शर्मा ने कहा वेद क¨ मानते सभी हैं, आदर भी करते हैैं, ल्¨किन पढ़ते नहीं। वेद¨ं का रहस्यमय संसार है। इससे जुड़ाव जरूरी है।

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