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अब केंद्र सरकार के हाथ जम्मू कश्मीर की डोर,लद्दाख को केंद्र शासित दर्जे की उम्मीद बढ़ी

जम्मू,21 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के साथ ही राज्य में हालात सामान्य बनाने से लेकर सभी संबंधित पक्षों से बातचीत का माहौल तैयार करना, आतंकरोधी अभियान चलाना और राज्य के सभी वर्गों की उम्मीदों को पूरा करने की सीधी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो गई है।

अब केंद्र न राज्य प्रशासन पर असहयोग का आरोप लगा सकेगा और न राज्य के संतुलित राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक विकास पर अपने कदम पीछे हटा सकेगा। अलबत्ता, केंद्र के हर कदम से रियासत की सियासत में हलचल होना तय है और सभी की नजरें धारा 249 के प्रयोग पर भी रहेंगी।

लद्दाख को केंद्र शासित दर्जे की उम्मीद बढ़ी
राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य से जुड़े सभी प्रमुख नीतिगत फैसले अब संसद लेगी। इसलिए लद्दाखियों को अपने लिए केंद्र शासित दर्जे की मांग पूरी होने की उम्मीद है। केंद्र सरकार अब यह बहाना नहीं लगा सकेगी कि यह राज्य सरकार को करना है।

लद्दाख की उम्मीद को बेमानी इसलिए भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद भी राष्ट्रपति शासन के दौरान ही मिली थी। केंद्र शासित राज्य का दर्जा लद्दाख प्रांत का सबसे बड़ा मुद्दा है। इसी मांग के लिए हाल ही में भाजपा के सांसद थुपस्तान छवांग ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।

जम्मू डिवीजन का कश्मीर के बराबर विधानसभा क्षेत्र करने का होगा दबाव
विधानसभा क्षेत्रों का पुणर्निधारण भी अब केंद्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। हालांकि 1996 में सत्तासीन हुई नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार द्वारा पारित एक कानून के तहत वर्ष 2026 तक राज्य में नए विधानसभा क्षेत्र नहीं बन सकते और न मौजूदा विधानसभा क्षेत्रों की सीमा बदली जा सकती है।

 

आरक्षित सीटों में बदलाव भी नहीं हो सकता, लेकिन भाजपा जो हमेशा राज्य में राजनीतिक संतुलन का नारा देती रही है, अक्सर जम्मू संभाग में कश्मीर के बराबर विधानसभा क्षेत्र करने और आरक्षित सीटों के क्रम में बदलाव पर जोर देती रही है।

अब स्थानीय भाजपा नेताओं पर दबाव रहेगा कि वे केंद्र में सत्तासीन भाजपानीत राजग सरकार के जरिए जम्मू के साथ राजनीतिक भेदभाव को दूर करे।

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