December 24, 2024

अदम्य साहस और विलक्षण प्रतिभा के धनी :लोकमान्य तिलक

tilak

( तिलक जयंती 23 जुलाई पर विशेष )

डा. डी. एन. पचौरी

कुछ लोग तो जन्म सामान्य परिवार में लेते है,किन्तु वे जीवन में किए गए उनके उत्कृष्ठ कार्यो के कारण महान कहलाते है, ऐसे ही कुशाग्र बुद्धि, निडर, निर्भीक, अदम्य साहसी, स्वाभिमानी, समाज सुधारक, उच्च संस्कारित, अनूठी लगन और असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी थे बाल गंगाधर तिलक । माता श्री ने अठारह माह सतत सूर्योदय की उपासना कर 23 जुलाई 1856 को जिस बालक को जन्म दिया उसने आगे चलकर ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्यास्त करने की ठान ली । भारतीय सभ्यता संस्कृति एवं हिंदुत्व को महिमा मंडित करने वाले तिलक में बाल्यावस्था में ही सुसंस्कारित और क्रांतिकारी विचारो का बीजारोपण किया था दादा रामचंद्र तिलक ने | 1857 में वे वाराणसी में थे और उन्होंने ग़दर को अर्थात मेरठ से दिल्ली तक उठने वाली क्रांति को अपनी आँखों से देखा था । बाल तिलक को बचपन में अपने इन्ही दादा से नाना साहब, तात्या टोपे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के किस्से सुनने को मिले और इसी का परिणाम था की बाल गंगाधर तिलक ने 1857 की लड़ाई को “भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” घोषित किया। दस वर्ष की आयु में माता श्री और सोलह वर्ष की आयु में पिता श्री की छत्रछाया से वंचित हो गये । उसी समय हाई स्कूल उत्तीर्ण की और सत्यभामा से उनका विवाह हुआ।
बुद्धि इतनी कुशाग्र थी और इतने मेधावी थे कि गणित के जिन प्रश्नों को सहपाठी दो या तीन बार समझाने पर भी हल नहीं कर पाते थे तिलक चुटकियो में हल कर देते थे। एक बार प्राथमिक कक्षाओं में गणित के शिक्षक ने एक सवाल दिया की 5 भेड़े एक मैदान 28 दिन में चार लेती है तो उस मैदान की घास को 20 दिन में चरने के लिए कितनी भेड़ो की आवश्यकता होगी? प्रश्न समाप्त होने के पूर्व ही तिलक ने उत्तर दिया 7 भेड़े। शिक्षक ने देखना चाहा की प्रश्न कापी में कहाँ हल किया है तो बाल गंगाधर ने कहा मस्तिष्क में |
उनकी अनूठी लगन की घटना है कि जब तिलक ने कालेज के प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था तो उस समय वे दुबले पतले थे और शरीर कृशकाय था। देश की स्वतंत्रता की बात चलने पर एक साथी ने व्यंग किया कि ऐसे हाडमाँस के पुतले देश को क्या आज़ाद करायेगे तो तिलक ने ये बात दिल पर ले ली और एक वर्ष तक निरंतर योग व्यायाम प्राणायाम आदि करके शरीर को इतना बलिष्ठ और शक्तिशाली बना लिया कि खेलकूद में प्रथम आने लगे। इतना ही नहीं तॆराकी और दॊड़ आदि में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया।
स्वाभिमानी और देश भक्त बाल गंगाधर तिलक ने 1877 में बी. ए. एल. एल. बी. करने के बाद थोड़े समय शासन के अधीन शिक्षक की नौकरी की किन्तु त्यागपत्र देकर इन्होने साथी अगरकर और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर के साथ दक्षिण शिक्षा संस्था की स्थापना की। भारतीय लोग अंग्रेजी शिक्षा को वरदान समझने लगे थे इसका तिलक को दुख होता था अतः उन्होंने दोनों साथियों के साथ एक भारतीय सभ्यता और संस्कारो को बढ़ावा देने और अपनी भाषा को उन्नत करने के लिए स्कूल की स्थापना की। ये स्कूल रूपी पॊधा आज वटवृक्ष का रूप ले चूका है और इसकी अनेक शाखाये अर्थात अनेक कॉलेज चल रहे है। वाणिज्य महाविघालय पुणे, विलिंगटन कॉलेज सांगली, फोर्गुसन कॉलेज पुणे, बाम्बे कॉलेज बाम्बे आदि सब शिक्षा संस्थाएँ तिलक की ही देन है।
निडर एवं निर्भीक पत्रकारिता की शुरुआत करने वालो में तिलक का नाम अग्रणी है। भारत को स्वतंत्रता दिलाने और भारतीयों को अंग्रेजो के अत्याचारो से अवगत कराने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने दो समाचार पत्रों का प्रकाशन प्रारम्भ किया। मराठी भाषा में ‘केसरी’ और अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ दोनों साप्ताहिक पत्र थे। इन पत्रों की संपादकीय भाषा इतनी तीक्ष्ण और धारदार होती थी कि कायर और उदासीन भारतीय भी पढ़कर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उत्तेजित एवं उत्कंठित हो जाते थे। कोल्हापुर के महाराजा राजाराम की मृत्यु के उपरांत अंग्रेजो की हड़प निति के अंतर्गत उनके दत्तक पुत्र शिवाजी के साथ कटु और निर्दयी व्यवहार के कारण तिलक ने केसरी में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक उतेजक लेख लिखा जिसे पढ़कर कोल्हापुर और महाराष्ट्र के आधिकांश स्थानों पर आन्दोलन छिड गया फलस्वरूप तिलक जी को चार माह की जेल की कॆद की सजा हुई।
लोकमान्य तिलक की विलक्षण प्रतिभा सन 1890 से 1857 के मध्य 7 वर्षो में देखने को मिलती है जब उनकी अंतर्निहित उर्जा सभी दिशाओ में प्रस्फुटित हुई। सामान्य आदमी 70 वर्षो में जो काम नहीं कर सकता वह तिलक ने 7 वर्षो में करके दिखा दिया। इन सात वर्षो में उन्होंने दो समाचार पत्रों के प्रकाशन के अतिरिक्त लॉ ग्रेजुएट के लिए कोचिंग क्लास खोली कांग्रेस अधिवेशनो में भाग लिया, कई पुस्तके लिखी। इतना ही नहीं समाज सुधारो के लिए ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जंग छेढ़ दी । बालविवाह निषेध तथा विधवा विवाह संपन्न कराए । भारतीय संस्कृति तथा हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए गणपति उत्सव और शिवाजी जयंती जॆसे उत्सव प्रारंभ कराए। पुणे मुनिस्पिल कार्पोरेशन तथा बम्बई विधान सदन के सदस्य तथा बाम्बे विश्वविघालय के निर्वाचित सदस्य रहे।
बाल गंगाधर तिलक की कर्तव्य परायणता एवं देश और देशवासियों के प्रति निष्ठा 1896-97 में देखने को मिली जब 1896 में अकाल और 1897 में प्लेग फेलने पर तिलक ने जगह जगह अस्पताल खोले और स्वयं सेवकों के साथ रोगियों की सेवा करने लगे। केसरी और मराठा समाचार पत्रों में उन्होंने अंग्रेजो की कटु आलोचना की क्योंकि हजारो भारतीयों की मृत्यु पर भी अंग्रेजी शासन उदासीन था तथा महारानी विक्टोरिया के शासन की हीरक जयंती का उत्सव मनाने की तॆयरिया कर रहा था| आख़िरकार शासन ने एक प्लेग अधिकारी मिस्टर रॆड की नियुक्ति की जो प्लेग की बीमारी से अधिक विप्लवकारी और दुष्ट सिद्ध हुआ। प्लेग नियंत्रण के नाम पर उसने गाँव के गाँव खाली करा लिए और लोगो के घरो और सामान में आग लगवा दी। प्लेग न होने पर भी वह लोगो को कैंप में भेज देता और घर तथा सामान जला देता था अतः अत्याचार पीड़ित एक युवक ने रॆड की हत्या कर दी जिसका दोष तिलक के उग्र लेखो को दिया गया और उन्हें डेढ़ वर्ष कॆद हुई। 1898 दिवाली पर जेल से छूटने पर तिलक महाराष्ट्र के हीरो और नेता बन गए जगह जगह उनके जुलुस निकाले गए और सम्मान किया गया।
1906 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन चलाया जिसकी पुनरावृति गाँधी ने 1920 में की थी
लोकमान्य तिलक अदम्य साहसी व्यक्ति थे इसका पता इस घटना से चलता है की एक बाबा महाराज जो धनी व्यक्ति थे अपनी पूरी संपत्ति देश हित में लगाना चाहते थे अतः उन्होंने तिलक को इंचार्ज बनाया। उनकी मृत्यु के पश्चात् तिलक ने सम्पति अपने चार्ज में ली तो बाबा की पत्नी ने लोगो के बहकावे में आकर ब्रिटिश शासन को शिकायत कर दी । ब्रिटिश शासन तो तिलक को किसी न किसी केस में फ़साने की सोच ही रहा था| |अतः महिला की शिकायत पर तिलक पर चोरी 420 तथा बाबा महाराज के मर्डर का चार्ज लगा कर आरोपी बनाया और उन्हें हतकड़ी डाल कर घुमाया गया । जमानत के बाद तिलक ने 14 वर्ष तक विभिन कोर्टों में चक्कर लगाए केस लड़ा और अंत में इंग्लॅण्ड की प्रीवी कौंसिल से जीत हासिल की । प्रीवी कोंसिल ने भारत की कोर्टों को फटकार लगायी के अकारण तिलक को परेशान किया गया।
खुदीराम बोस की फासी और अरविन्द को जेल भेजने की सजा की तिलक ने अपने पेपरो में कटु आलोचना की और इसे दुर्भाग्य पूर्ण बताया उन्होंने ब्रिटिश शासन के अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई और अंग्रेजो को इसका जिम्मेदार ठहराया फलस्वरूप उन्हें 6 वर्ष की कॆद की सजा हुई और तिलक को बर्मा की माण्डलय या म्यांमार जेल भेज दिया गया। जेल में उन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक लिखी एवं फ्रेंच और जर्मन भाषा सीखी तथा अन्य 400 पुस्तको का अध्ययन किया। इस बीच उनकी धर्म पत्नी की मृत्यु हो गयी । 8 जून 1914 को जेल से रिहा होने पर देश में जगह जगह उनका सम्मान हुआ और वो इस देश के नेता बन गए उन्होंने लखनऊ कानपुर आदि नगरो की यात्रा की । उसी समय तिलक ने सिंह की तरह गर्जना की कि “स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और में इसे ले कर रहूँगा” ब्रिटिश शासन ने इस बात पर इन से अच्छे व्यवहार के लिए २० हज़ार रुपये की सुरक्षा निधि की मांग की | तिलक से ब्रिटिश शासन कितना भयभीत रहता था इसका पता बॉम्बे के गवर्नर द्वारा इंग्लैंड के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट टू इण्डिया को लिखे पत्र से चलता है उसमे लिखा था की भारत में बाल गंगाधर तिलक षड्यंत्रकारियों का मुखिया है इसने गणेश पूजा और शिवाजी जयंती जॆसे त्योहोरो को मानाने के लिए जनता को तॆयार किया है। और भारत से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने का षड्यंत्र कर रहा है |
अंत में मधुमेह और अन्य बीमारियों से पीड़ित तिलिक का जीवन दीप 1 अगस्त 1920 की प्रात काल बुझ गया। उनका जीवन एक खुली पुस्तक के समान था |अपनी लौह जेसी दृढ इच्छा शक्ति के बल पdnp5र उन्होंने आजीवन इस देश की सेवा की उन्हें भारत के भविष्य निर्माता के रूप में याद किया जाएगा। लोकमान्य तिलक ऐसे महा पुरुष थे जो देश के लिए जिए और देश के लिए मरे।
आज उनकी चौथी पीढी में उनके प्रपौत्र शेलेष तिलक उनकी याद के दीप प्रज्वलित कर रहे है

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