Simhasth Corruption : सिंहस्थ में वन विभाग के प्रभारी रेंजर ने बजट को चूना लगाया,करोड़ों का पौधारोपण स्थल पर गाजर घास, सिंहस्थ बजट के भवन निर्माण में घपला
उज्जैन,25 दिसम्बर (इ खबरटुडे/ब्रजेश परमार)। सिंहस्थ (Simhasth Corruption) में वन विभाग को करोड़ों रुपए का बजट आवंटित हुआ। इस बजट को प्रभारी रेंजर ने चूना लगाया। चूने की परतें अब खुलने लगी हैं। सिंहस्थ में करोड़ों का पौधारोपण किया गया, जहाँ पर आज गाजर घास की स्थिति है। सिंहस्थ के बजट से ही नागझिरी काष्टागार में करोड़ों का भवन निर्माण किया गया। इसमें भी घपला किया गया।
विभागीय सूत्रों के अनुसार सिंहस्थ में उज्जैन वन विभाग को करोड़ों का बजट आवंटित हुआ था। इससे पांच पड़ाव स्थल और पांच मार्गों पर करीब 4 करोड़ 94 लाख की लागत से 46 हजार 22 पौधारोपण का प्रस्ताव दिया गया था। प्रस्ताव के तहत आवंटित राशि का जमकर दुरुपयोग हुआ। बाले-बाले ही काम किए गए। इस काम के तहत राजस्व की जमीन पर वन विभाग ने डायवर्शन भी नहीं करवाया है। राजस्व की जमीन पर ही यह पौधारोपण कर दिया गया। खास बात तो यह है कि पौधारोपण ऐसे समय में किया गया, जब पौधों के पनपने की कोई आस ही नहीं रहती है। वर्तमान में दरगाह से पिंगलेश्वर मार्ग, जैथल टेक से सोड़ंग, भेरूगढ़ से सोड़ंग, साहिबखेड़ी तालाब से बदरखा, पिंगलेश्वर पड़ाव स्थल से मक्सी रोड, नलवा से करोहन पंचक्रोशी मार्ग, पंचक्रोशी पड़ाव स्थल करोहन, पंचक्रोशी पड़ाव स्थल नलवा, पंचक्रोशी पड़ाव स्थल पिंगलेश्वर, पंचक्रोशी पड़ाव स्थल उंडासा पर गिनती के पौधे ही जीवित हैं। यह भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सिंहस्थ से पूर्व न तो इनका रोपण हुआ और न ही इनकी वृद्धि इतने वर्षों की प्रतीत हो रही है।
(कहाँ, कितना पौधारोपण, टेबल देखें)
खास बात तो यह है कि चार पड़ाव स्थल पर मात्र 100-100 पौधे रोपण किए गए, जबकि पड़ाव स्थल पर ही श्रद्धालु छाँव देखते हैं और वृक्षों के नीचे ही श्रद्धालुओं का डेरा लगता है। वन विभाग के पूर्ण बताए कार्यों में 4.94 करोड़ से यह कार्य पूर्ण बताए गए हैं। इससे साफ है कि 46 हजार 22 पौधे रोपण किए गए। इनमें से वन विभाग के नियमों से ही आधे पौधे भी कहीं जीवित नहीं दिख रहे हैं, जो कि अब पेड़ के रूप में दिखाई देना चाहिए। मात्र कुछ क्षेत्रों में पौधों की रक्षा के लिए लगाई गई फेंसिंग दिखाई देती है। साफ है कि प्रभारी रेंजर ने इस पूरे काम में चूना लगा दिया है। पौधारोपण स्थल पर वर्तमान में जमकर गाजरघास तो है, लेकिन पौधों की संख्या देखने पर भी पूरी तरह दिखाई नहीं देती।
काष्ठागार स्थित भवन में लगाया चूना
वन विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि प्रभारी रेंजर ने जिस तरह से कारनामों को अंजाम दिया है, उसको तो आश्चर्य में अंकित किया जाना चाहिए। नागझिरी स्थित वन विभाग के काष्ठागार में करीब एक करोड़ से अधिक का भवन निर्माण किया गया। इस भवन निर्माण में निविदा विज्ञप्ति भी जारी नहीं की गई है। विभागीय तौर पर भवन निर्माण करवाया गया तो ऐसी स्थिति में सामग्री खरीदी के लिए तो टेंडर होना ही था। विभागीय सूत्रों के अनुसार भवन निर्माण में 12 एमएम का सरिया उपयोग किया जाना था। उसके स्थान पर 10 एमएम का सरिया ही उपयोग किया गया। सीमेंट खुले बाजार से तत्कालीन दर से भी अधिक दर पर खरीदी गई और सीधे तौर पर ऊपरी राशि डकार ली गई। ईंट खरीदी में भी यही किया गया। यही नहीं अन्य सामग्री के उपयोग में भी तत्कालीन दर से अधिक पर खरीदी बताई गई और निर्माण में सामग्री का उपयोग कम दर्जे का किया गया है। इस भवन निर्माण का सर्टिफिकेशन भी किसी स्वतंत्र संस्था से नहीं किया गया है, जबकि शासन नियमानुसार एक करोड़ से अधिक के निर्माण पर स्वतंत्र संस्था से प्रमाणीकरण करवाया जाना चाहिए था। यहाँ तक कि मटेरियल का भी समय-समय पर टेस्टिंग रिपोर्ट इंजीनियरिंग कॉलेज से ली जाना थी, वह भी नहीं ली गई।