राग रतलामी/रिश्वतखोर की गिरफ्तारी से नाराज पूरा सरकारी अमला,काम अटकाने में लगे नीचे से उपर तक के अफसर,अब तक नहीं मिली सोहेल को पावती
-तुषार कोठारी
रतलाम। शानदार नई नवेली इमारत,बडे बडे चैम्बर्स,शानदार गाडियां,पूरी इमारत में जगह जगह सीसीटीवी कैमरे। सबकुछ नया नया है,लेकिन तौर तरीके वहीं है। उसमें कोई फेरबदल नहीं। इमारत में सीसीटीवी कैमरे लगे थे,तो आम लोगों को लगा था कि इसका कुछ असर होगा,लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिला प्रशासन की नई नवेली शानदार इमारत में बैठने वाले सरकारी कारिन्दे अब भी वैसे ही है। सीसीटीवी कैमरे लगे होने के बावजूद उन्हे रिश्वत लेने से कोई परहेज नहीं है। कैमरों का डर सिर्फ आम आदमी के लिए है,सरकारी कारिन्दे तो जानते है कि वे जो कुछ कर रहे है,उनके उपर वालों के ही कहने पर कर रहे है। इसलिए डर कैसा?
यही वजह थी कि राजस्व महकमें की सबसे निचली पायदान वाले पटवारी ने महज एक पावती बनाने के लिए न सिर्फ बीस हजार जैसी बडी रिश्वत मांगी,बल्कि रिश्वत लेने के लिए जगह भी इसी नई नवेली सीसीटीवी कैमरे वाली इमारत को चुना। उसने बेहिचक फरियादी को जिला प्रशासन के मुख्यालय में बुलाया और बडी मैडम जी की नाक के नीचे,बिलकुल बगल वाले कमरे में ही नोट भी ले लिए। ये अलग बात है कि इन नोटों पर लोकायुक्त वालों ने केमिकल लगा रखा था,जिससे पटवारी के हाथ रंगीन हो गए।
मामला बेहद सीधा सा था। दादा जी की मौत के बाद जमीन का बंटवारा हुआ। बटवारे का आदेश भी डेढ साल पहले जनवरी 2019 में ही हो गया था। अब केवल पावती बनना बाकी थी। पावती बनाने जैसे मामूली काम के लिए पहले तो सीधे एक लाख रु,.रिश्वत मांगी गई। बाद में सौदा बीस हजार में तय हुआ। इसी प्रकरण के कुछ दूसरे लोगों ने तो रिश्वत देकर पावतियां ले ली,लेकिन सोहेल अकेला ऐसा था,जिसे लगा कि उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ करना चाहिए। बेचारा ये नहीं जानता था कि पटवारी सबसे निचली पायदान वाला है,जबकि रुपए उपर तक जाते है। यही कारण होता है कि किसी पटवारी को जिले के मुख्यालय में भी रिश्वत वसूलने में को हिचक नहीं होती। वो जानता है कि अफसरों को पूरी खबर होती है कि वो क्या करने वाला है।
बेचारा सोहेल ये भी नहीं जानता था कि एक पटवारी को रंगे हाथों पकडवा देने से पूरा सरकारी अमला ही नाराज हो जाएगा और उसका काम अटकाने के बहाने ढूंढने में लग जाएगा। जिस काम के लिए उससे रिश्वत मागी गई थी,वो काम करवाना अब पहले से भी ज्यादा कठिन हो जाएगा।
लोकायुक्त वाले तो उसे झूठा दिलासा देकर चलते बने कि उसका काम हो जाएगा,लेकिन पूरा हफ्ता गुजर गया है,उसका काम अब तक नहीं हुआ है। उधर महकमें वाले अब उसकी पावती नहीं बनाने के बहाने ढूंढने में जुटे है। आने वाले दिनों में उसे कई गैरजरुरी प्रक्रियाएं पूरी करने को कहा जाएगा। प्रक्रियाएं पूरी भी हो जाएगी तब भी उसकी पावती नहीं बनाने के लिए नए बहाने ढूंढ निकाले जाएंगे और आखिरकार जब तक वह रिश्वत की राशि और बढाकर नहीं दे देगा,तब तक उसकी पावती नहीं बनेगी।
सोहेल को पता नहीं है कि बडी इमारत के सबसे बडे चैम्बर में बैठने वाले सबसे बडे अफसर से लगाकर तहसील के बडे चैम्बर वाले अफसर तक हर कोई उसकी हरकत से नाराज है। दिखाने के लिए तो हर अफसर उसकी तारीफ करेगा,लेकिन उसका काम कोई नहीं होने देगा। यही वजह है कि पूरा हफ्ता गुजर गया है,उसे उसकी पावती नहीं मिली है।
हो ही गई दरबार की रवानगी
पुरानी कहावत है जाट मरा तब जानिए जब तेरहवीं हो जाए। नगर निगम को नरक निगम में तब्दील कर चुके निगम के दरबार की स्थिति कुछ ऐसी ही हो गई थी। तमाम नेता नगरी दरबार को हटाने की कोशिशें कर चुकी थी। प्रशासनिक तंत्र ने भी पुरजोर कोशिशें कर ली थी। दरबार तो आईएएस तक को झटका दे चुके थे। आईएएस को झटका देने के लिए उन्होने अदालत का सहारा ले लिया था। यही वजह थी कि जब इस बार दरबार की रवानगी के आदेश आए,कोई भरोसा ही नहीं कर पा रहा था कि सचमुच में ऐसा आदेश आ गया है। लोगों को तो यह भी लग रहा था कि भले ही आदेश आ गया हो दरबार फिर कोई जादूगरी दिखा देंगे। लेकिन इस बार दरबार की कोई जादूगरी नहीं चली और आखिरकार उन्हे यहां से रवाना होना ही पडा। सावन के महीने में अब शहर सोमनाथ के सहारे है। उम्मीद की जाए कि नरक की बजाय अब नगर निगम काम करेगा।
ये बेचारे बिना सहारे….
शहर में सबसे ज्यादा खतरे की जगह जिनकी तैनाती है,वे ही बेचारे सबसे ज्यादा उपेक्षित है। सबसे ज्यादा खतरे की जगह मेडीकल कालेज में कोरोना संक्रमितों के लिए बनाया गया आइसोलेशन वार्ड है,जहां कोरोना पाजिटिव मरीजों का इलाज किया जाता है। संक्रमण का सर्वाधिक खतरा यहीं है। इस वार्ड पर तैनात नगर सैनिक चौबीसों घण्टे यहां ड्यूटी देते है। बडी मैडम और वर्दी वालों के बडे साहब हफ्ते में दो तीन बार तो यहांं का चक्कर लगा ही लेते है,लेकिन ड्यूटी देने वाले नगर सैनिकों की हालत कोई नहीं पूछता। ये बेचारे पूरी तरह बिना सहारे है। इनके लिए ना पीने के पानी की व्यवस्था है,ना चाय की। बैठने के लिए कुर्सिया तक नहीं है।