राग रतलामी-महाराज के फूल छाप में आने से बदल रही है रतलाम की सियासत/निशाने पर है बडी मैडम जी
-तुषार कोठारी
रतलाम। जब से महाराज ने फूल छाप का दामन थामा है,सियासत विचित्र ढंग की हो गई है। महाराज को मानने वाले पंजा पार्टी छोडकर फूलछाप में आ गए है। जो नए नए फूल छाप में आए है,वे यहां के तौर तरीके देख कर हैरान है और वे भी हैरान है जो पुराने फूलछाप वाले है,लेकिन नए आए फूल छाप वाले उनके लिए परेशानी खडी करने लगे है। फूल छाप पर सबसे ज्यादा असर तो चम्बल इलाके में पड रहा हैं,जहां महाराज का जबर्दस्त असर है,लेकिन चम्बल इलाके से दूर यहां मालवा में भी महाराज का असर फूल छाप वालों को परेशान कर रहा है।
महाराज के फूलछाप में आने से सूबे की सत्ता तो फूल छाप के हाथ में आ गई लेकिन कई फूल छाप वालों को इसके लिए अपने अरमानों का गला दबाना पडा है। महाराज के आने से सत्ता आई,तो महाराज के लोगों को मंत्रीमण्डल में जगह भी देना पडी। इसका नतीजा यह हुआ कि असली फूल छाप वालों के लिए जगह ही कम बची। इसी का पहला नतीजा तो यह हुआ कि जिले के दो दावेदारों में से कोई भी मंत्रीमण्डल में शामिल नहीं हा पाया।
जावरा के भैय्या तो लम्बे समय से इंतजार में थे। पिछली सरकार में तो एक बार मंत्रीमण्डल में उनका शामिल होना तय हो ही गया था,लेकिन आखरी वक्त पर गडबड हुई और वे रह गए थे। रतलाम के भैय्या जी केबिनेट में नहीं पंहुच पाए थे,लेकिन दर्जा जरुर हासिल कर लाए थे। इस लिहाज से दोनो को ही इस बार पूरी उम्मीद थी। लेकिन आखरी वक्त पर दोनों की ही उम्मीदों पर पानी फिर गया।
केबिनेट में जगह नहीं मिली तो रतलाम वाले भैयाजी के नाम पर फूल छाप के दरबार और दूसरे दरबारी राजधानी जा पंहुचे,मामा को यह बताने के लिए कि रतलामी बेहद निराश है और जिले की पूरी फूल छाप पार्टी भैय्याजी को लालबत्ती दिलाना चाहती है। हांलाकि दरबार लुनेरा के साथ साथ पूरे जिले के दरबार है और जावरा भी उन्ही के प्रभार में आता है,इसलिए जब जावरा के नेता राजधानी पंहुचे,तो दरबार उनके भी साथ हो लिए। हांलाकि ये सबकुछ रस्मअदायगी से ज्यादा कुछ नहीं था।
महाराज के फूलछाप में आने से अब जिले की सियासत पर भी असर पड रहा है। जावरा में फूलछाप के सामने चुनाव हारे दरबार अब खुद भी फूलछाप वाले बन चुके है और आने वाले दिनों में वो भैय्या के लिए परेशानी का कारण बन सकते है। भैय्या की चुनौतियां बढ रही है।
निशाने पर बडी मैडम जी……..
पिछली बार सरकार बदली थी,तो अफसरों ने रातों रात पंजा पार्टी के नेताओं को अपना आका बना लिया था और फूल छाप के आकाओं से किनारा कर लिया था। उन्हे कतई उम्मीद नहीं थी कि सरकार बदल भी सकती है। लेकिन सरकार बदल गई। अब अफसरों के लिए बडी समस्या हो गई। जितनी तेजी से उन्होने पिछली बार आका बदले थे,इस बार नहीं बदले। उन्होने दोनो नावों की सवारी करने का फैसला कर लिया। पंजा पार्टी के आकाओं को भी निभाते रहे। यहीं गडबड हो गई। पंजा पार्टी को सम्मेलन की इजाजत दे दी गई। होम क्वारन्टीन नेत्री भी मंच पर जा पंहुची। जब इस मामलेे में हो हल्ला मचा और फूल छाप के नेताओं ने उपर तक शिकायतें कर दी तो बडी मैडम जी ने खुद तो पूरे मामले से पल्ला झाड लिया और सारा ठीकरा तीसरे नम्बर वाली मैडम के मत्थे फोड दिया। सम्मेलन की इजाजत उन्ही ने दी थी। शिकायतों से डर कर आखिरकार पंजा पार्टी के नेताओं पर केस दर्ज कर दिए और होम क्वारन्टीन का उल्लंघन करने वाली नेता पर भी जुर्माना थोप दिया गया। फिलहाल तो सब शांत दिख रहा है,लेकिन बडी मैडम अब फूल छाप वालों के निशाने पर आ गई है।
बाहरी बर्दाश्त नहीं……
झाबुआ वाले एमएलए साहब जब दिल्ली दरबार में हुआ करते थे,रतलाम उन्ही के क्षेत्र का हिस्सा था। रतलाम की पंजा पार्टी ने जो कुछ होता था उन्ही की मर्जी से होता था। भूरिया जी के जबर्दस्त जलवे हुआ करते थे,लेकिन समय किसी का नहीं होता। समय बदला तो वे दिल्ली की बजाय भोपाल से जुड गए। लेकिन आदतें जल्दी नहीं जाती। उन्हे अब भी लगता है कि उनका असर झाबुआ के साथ साथ रतलाम में भी है। सैलाना के गुड्डू भैय्या ने अपने पूज्य पिताजी की मूर्ति अनावरण के लिए पंजा पार्टी के राजा और नाथ को बुलवाया। झाबुआ वाले साहब भी कार्यक्रम में पंहुच गए थे। गुड्डू भैय्या ने अतिथियों के परंपरागत स्वागत के लिए तीन तीर कमान और तीन जैकेट मंगवाए थे। झाबुआ वाले साहब को पूरी उम्मीद थी कि तीसरा नम्बर उन्ही का रहेगा। लेकिन मंच पर जो हुआ वह उनकी उम्मीद से बिलकुल अलग था। गुड्डू भैय्या ने राजा और नाथ को जैकेट पहनाकर तीर कमान भेंट कर दिए लेकिन झाबुआ वाले साहब को देखा तक नहीं। झाबुआ वाले साहब ने तीसरा तीर कमान गुड्डू भैय्या के हाथ से छीनने तक की कोशिश कर ली,लेकिन छीन नहीं पाए। संदेश बिलकुल साफ है कि रतलाम के पंजा पार्टी वाले अब बाहरी नेताओं को बर्दाश्त नहीं करते।