बढती जा रही है भैय्याजी के प्रति नाराजगी
निगम चुनाव काउण्ट डाउन-08 दिन शेष
इ खबर टुडे / रतलाम 20 नवंबर
नगर सरकार को चुनने के लिए अब केवल आठ दिन बाकी बचे है। चुनाव प्रचार में फूल छाप पार्टी के भैय्याजी से लगाकर तमाम नेता नजर आ रहे है,लेकिन अब तक प्रथम नागरिक कहलाने वाले नेता जी प्रचार में बेहद कम नजर आ रहे है। फूल छाप पार्टी के लोगों का कहना है कि प्रथम नागरिक ने भले ही काफी काम किए हो लेकिन जनता उनसे नाराज भी बहुत है। उनके प्रति लोगों की नाराजगी कहीं फूल छाप पार्टी को नुकसान ना पंहुचा दें। शायद यही सोचकर पार्टी ने उन्हे पीछे कर दिया है। लेकिन समस्याएं है कि कम होने का नाम नहीं ले रही। भैय्या जी ने अपनी अलग झांकी जमाने के लिए नया फार्मूला यह तलाशा कि विभिन्न वार्डों के चुनाव कार्यालयों का शुभारंभ वे अकेले जाकर करने लगे। चुनाव कार्यालयों के शुभारंभ में उन्होने महापौर प्रत्याशी को दूर रख दिया। पार्टी वाले बताते है कि भैय्याजी मंगलवार को पुराने वाले प्रथम नागरिक को लेकर एक वार्ड कार्यालय का शुभारंभ करने पंहुचे थे। अभी तक तो लोग यह समझते थे कि लोगों की नाराजगी प्रथम नागरिक से है। लेकिन इस वार्ड के लोगों ने तो भैय्याजी को भी यहां से जाने को मजबूर कर दिया। अब ये सवाल पूछा जा रहा है कि भैय्याजी की नाराजगी पार्टी के लिए परेशानी ना खडी कर दें।
महापौर के साथ नहीं पार्षद ?
दोनो पार्टियों का चुनाव प्रचार अब जोर पकडता जा रहा है। शहर के हर कोने में किसी ना किसी प्रत्याशी के नारे गूज रहे है। पंजा छाप और फूल छाप पार्टी के वार्ड के प्रत्याशियों पर दोहरी जिम्मेदारी है। उन्हे खुद का प्रचार तो करना ही है,साथ में महापौर प्रत्याशी का भी प्रचार करना है। चुनावी जोड गणित करने वालों का मानना है कि महापौर चुनाव में फूल छाप पार्टी फिलहाल काफी मजबूत है। लेकिन फूल छाप पार्टी में समन्वय का पूरी तरह अभाव है। वार्ड का चुनाव लडने वाले महापौर का प्रचार नहीं कर रहे। पार्टी की प्रचार सामग्री में भी महापौर प्रत्याशी के फोटो नदारद है। पार्षद प्रत्याशी केवल तभी महापौर का प्रचार करते है,जब महापौर प्रत्याशी उनके वार्ड में पंहुचती है। फूल छाप पार्टी की ये अस्तव्यस्तता जीत के अन्तर को जरुर कम कर देगी।
बडे नेता नदारद
पंजा छाप पार्टी से चुनाव लड रहे नेताओं की बडी मुसीबत है। वे जानते है कि जो कुछ करना है,उन्ही को करना है। किसी जमाने के बडे नेता कहे जाने वाले तमाम हजरात पूरी तरह गायब है। महापौर प्रत्याशी अपने बलबूते चुनाव मैदान में जोर आजमाईश कर रही हैं,वहीं पार्षद अपने खुद के बलबूते भिडे हुए है। पार्टी के नाम पर केवल चुनाव चिन्ह एक है। बाकी तो पार्टी नदारद है। शहर के तमाम बडे नेता नदारद है और प्रदेश में पंजा छाप के पास कोई नेता बचे नहीं है। ऐसे में पंजा छाप के प्रत्याशियों का क्या होगा? भगवान जाने…..।
झुमरु की याद
पिछले करीब डेढ दशक में हुए तमाम चुनावों में झुमरू की मौजूदगी थी। ये पहला चुनाव है,जिसमें झुमरू नदारद है। हांलाकि उन्होने एक फार्म लिया जरुर था,लेकिन उसे भरा नहीं। झुमरू की याद कई लोगों को आ रही है। सोशल मीडीया पर बाकायदा पोस्ट डाली गई है कि झुमरू दादा तुम्हारी बहुत याद आ रही है। उनके ना रहने से चुनाव की रोचकता ही जैसे ली गई हो। हांलाकि उनके दिल की वे ही जानते है। उन्हे जरा भी उम्मीद होती तो वे कक्षा पढाने की बजाय वोटरों को पढा रहे होते। लेकिन शहर के लोगों ने उन्हे ऐसा सबक सिखाया है जो उन्हे अब तक याद है।