चुनावी चख-चख-3
ये तो झूठा कमाल है……
(तीसरा दिन-13 नवंबर)
मंगलवार से शहर में एक गाना गूंज रहा था,ये तो चाईना का माल है। पहले तो लोग समझे कि झुमरु दादा ने ये खुद के लिए चुना है। इसकी वजह भी थी। शुरुआत में जब गाडियां घुम रही थी,तब उन पर मै हूं झुम झुम झुमरू और कहता है जोकर सारा जमाना ये दो गाने बज रहे थे। झुमरु दादा ने लोगों से कहा भी था कि उन्हे लोग झुमरु और जोकर कहने लगे है,इसलिए उन्होने भी इन नामों को स्वीकार करते हुए गाने बजाना शुरु कर दिया है। इसी आधार पर जब ये तो चाईना का माल है गाना बजा तो लोगों ने सीधे सीधे नतीजा निकाल लिया कि ये भी दादा के ही लिए है। इस गाने में कही गई सारी बातें दादा पर फिट भी बैठती है। कोई गारंटी नहीं,वारंटीनहीं,कच्चा पक्का बिल भी नहीं। लेकिन जब धानमण्डी में झुमरु दादा ने यह गाना भैयाजी को समर्पित किया,तब जाकर गाने का राज समझ में आया। सभा में सेठ जी की तारीफें झुमरु दादा के मुंह से सुनकर एक मनचले ने चाईना के माल की पैरोडी बना दी। ये तो झूठा कमाल है,कोई शर्म भी नहीं,कोई लाज ही नहीं। अब लगता है झुमरु दादा के लिए यही गाना ज्यादा फिट है।
नींद क्यों रात भर आती नहीं?
धानमण्डी की भीड में भले ही सिर्फ सुनने गई हो,देखने वालों को तो भीड ही दिख रही थी। भाषण के आरोप भी तीखे तीखे थे। एसी की ठण्डक और लक्जरी गाडियों का आराम छोड कर गली गली खाक छान रहे भैयाजी के चेहरे पर थकान,दूर खडे आम वोटर को भी नजर आ जाती है। आमतौर पर ज्यादा थके हुए इंसान को नींद जल्दी आ जाती है। लेकिन धानमण्डी की भीडभाड ने नींद उडाने का काम भी किया है। इधर मण्डल की बैठक में सेठ जी की फटकार और उधर भारी भीड भाड। अब इस सवाल का क्या मतलब है कि नींद क्यो रात भर आती नहीं? भैया जी के आजू बाजू चल रहे और खुद को बडा कत्र्तव्यनिष्ठ बता रहे लोगों पर सेठ जी उंगली उठा चुके है। अजीब रस्साकशी है। भैया जी बेचारे क्या करें? इनका साथ ले तो वो नाराज,उन्हे मनाए तो ये खफा। अब तो सब कुछ भगवान भरोसे ही है।
बहन जी किसके भरोसे
बहन जी पंजा छापा का टिकट लाकर पहले तो बडी खुश थी। लेकिन पंजा छाप वालों के राग रंग देखकर अब उनकी खुशी काफूर हुई जाती है। पंजा छाप का भी वही रोना है। बेंक कालोनी वाले साहब का भरोसा करें तो राम भवन वाले चाचा नाराज हो जाए और रामभवन वाले चाचा की चिन्ता करें तो बैंक कालोनी वाले साबह रुठ जाए। शुरुआत में तो दोनो ही बहन जी का साथ देने आए थे। बहन जी को भी लगा था कि शायद सबकुछ ठीक हो गया है। लेकिन थोडा सा वक्त गुजरा,हर कोई अपने असली रंग में आने लगा। अब सूरते हाल ये है कि बैंक कालोनी वाले साहब बहन जी से पल्ला झाडते दिख रहे है और रामभवन वाले चाचा खेल पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे है। समस्या ये है कि राम भवन वाले चाचा खुद तो आ नहीं सकते लिहाजा उनके प्रतिनिधि कमान सम्हाल रहे है। असल में चाचा बीते वक्त की कहानी हो गए है। उनकी छत्रछाया कितना फायदा कराएगी या नुकसान होगा? इसका अंदाजा लगाना कोई बहुत कठिन काम नहीं है।