कहीं बेवजह तो नहीं है ये सख्ती
पूरा शहर कफ्र्यू की चपेट में,जबकि विवाद सिर्फ एक थाना क्षेत्र में
-तुषार कोठारी –
रतलाम,28 सितम्बर। चार साल पहले भी सितम्बर के ही महीने में दंगा हुआ था। उस समय तो दोनो समुदायों के लोग आमने सामने आ गए थे। पुलिस बल पर फायरिंग तक की गई थी। धर्मस्थल जला दिए गए थे। इतना सबकुछ हुआ था,लेकिन पूरे शहर को इसकी सजा नहीं दी गई थी। केवल उपद्रवग्रस्त क्षेत्र में कफ्र्यू लगाया गया था,बाकी पूरा शहर सामान्य गति से चल रहा था। लेकिन इस बार पूरा शहर सजा भुगत रहा है। शनिवार को कहा गया था कि कफ्र्यू केवल 24 घण्टों का है। मृत कपिल राठौड की अंतिम यात्रा को शांतिपूर्ण ढंग से पूरा कराने की दृष्टि से इसे उचित भी माना जा सकता था। लेकिन प्रशासन ने रविवार शाम को फिर से कफ्र्यू को निरन्तर रखने की घोषणा कर दी। अब इस निर्णय का औचित्य समझ से परे है। अंतिमयात्रा निपट चुकी है। हो सकता है कि शहर के कुछेक इलाकों में स्थिति तनावपूर्ण हो,लेकिन शहर के अधिकांश इलाके इन सारे विवादों से परे है। शहर के तमाम दूरस्थ इलाकों में इन स्थितियों का कोई असर नहीं है। लेकिन कफ्र्यू को पूरे शहर में लागू किया गया है। पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों के निर्णय तनाव कम करने की बजाय तनाव बढाने वाले साबित हो रहे है। कफ्र्यू को निरन्तर रखने का निर्णय भी इसी तरह का है। होना तो यह चाहिए था कि शहर के दूरस्थ इलाकों को कफ्र्यू से मुक्त किया जाना था। इतना भी नहीं किया जाता तो कम से कम महिलाओं के लिए कुछ घण्टों की ढील दी जाती। प्रशासन के ये निर्णय तनाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकते थे। लेकिन प्रशासन इसके बजाय कफ्र्यू को बढाने का निर्णय ले रहा है। इन दिनों नवरात्रि का पर्व चल रहा है। मां दुर्गा की आराधना करने वाले भक्तों के लिए मां कालिका का दर्शन करना तक दूभर कर दिया गया है। यदि प्रशासन चाहता तो उपद्रवकारी तत्वों के क्षेत्रों को शहर से अलग कर पूरे शहर को सामान्य जीवन जीने का अधिकार दे सकता था,लेकिन निर्णय इसके उलट हो रहे है। कफ्र्यू की सख्ती बेवजह ही प्रतीत हो रही है। जनता स्थितियों को सामान्य करना चाहती है,लेकिन प्रशासन के मन का डर स्थितियों को तेजी से सामान्य होने से रोक रहा है। बजरंग दल नेता की हत्या और कांग्रेस नेत्री की हत्या के प्रयास की घटनाओं को २४ घण्टे गुजर जाने के बावजूद पुलिस जनता को यह नहीं बता पा रही है कि आरोपियों की गिरफ्तारी की दिशा में क्या प्रगति हुई है। वरिष्ठ अधिकारियों को नियमित अन्तराल पर प्रेस ब्रीफींग करना चाहिए ताकि अफवाहें ना फैल सके। लेकिन प्रशासन जनता तक सही तथ्य नहीं पंहुचा पा रहा है। नतीजा यह है कि अफवाहें लगातार फैल रही है और बेवजह की सख्ती बेवजह के तनाव को जन्म दे रही है।
गलती शासन की भी है। सत्तारुढ पार्टी के जनप्रतिनिधि प्रशासन के जिम्मेदार लोगों को इतना तक नहीं कह पा रहे है कि पूरे शहर में कफ्र्यू का कोई औचित्य नहीं है। शहर के अप्रभावित इलाकों को कफ्र्यू से मुक्त रख कर जनसामान्य को भरोसा दिलाया जा सकता है कि स्थितियां तेजी से सामान्य हो रही है और जल्दी ही सबकुछ सामान्य हो जाएगा। लेकिन न तो शासन और ना प्रशासन कोई भी ये साहस नहीं कर पा रहा है कि स्थितियों को जल्दी सामान्य किया जाए।