December 25, 2024

सत्ता से दूरी का भागवत का दावा लेकिन देश के शीर्ष 3 पदों पर बैठे हैं स्वयंसेवक

pm president

नई दिल्ली,19 सितम्बर (इ खबरटुडे)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मोहन भागवत ने कहा कि संघ अपना प्रभुत्व नहीं चाहता है और उसे इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि सत्ता में कौन आता है. वे ये भी कहते हैं कि उनका संगठन बीजेपी की राजनीति या उसकी सरकार की नीतियों को निर्देशित नहीं करता है. उन्होंने कहा कि यह धारणा बिल्कुल गलत है कि संघ मुख्यालय नागपुर से कॉल किया जाता है.

संघ प्रत्यक्ष तौर पर राजनीति में हिस्सा नहीं लेता है और न ही चुनाव लड़ता है. लेकिन पर्दे के पीछे की सियासत जगजाहिर है. भारत के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में संघ एक बड़ी ताकत और धुरी बना हुआ है.

ये पहली बार है जब देश के तीनों सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आरएसएस के स्वयंसेवक काबिज हैं. देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ के आंगन से ही निकले स्वयंसेवक हैं. इतना ही नहीं, आजादी के बाद से पहली बार देश के आधे से ज्यादा राज्यों में आरएसएस से जुड़ी शख्सियतें ही मुख्यमंत्री हैं.

देश के बीस राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं. इनमें से ज्यादातर राज्यों के मुख्यमंत्री संघ से सीधे जुड़े रहे हैं. यूपी के योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के त्रिवेंद्र सिंह रावत, हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर, महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस, झारखंड के रघुवर दास जैसे नाम इनमें शामिल हैं. वहीं, केंद्र की मोदी सरकार में भी स्वयंसेवक मंत्रियों की लंबी फेहरिश्त है.

आरएसएस बीजेपी सरकारों के कामकाज पर पर्याप्त नजर रखता है. संघ इसके लिए बाकायदा समन्वय बैठक भी करता है. इस बैठक के जरिए संघ पदाधिकारी बीजेपी सरकार के कामकाज की समीक्षा करते हैं. संघ जरूरी होने पर सरकार की दशा और दिशा भी तय करता है.

संघ सरकार पर ही नहीं बल्कि बीजेपी पर भी खासा नियंत्रण रखता है. बीजेपी और संघ के बीच समन्वय के तौर पर काम करने के लिए आरएसएस अपने एक पदाधिकारी को पार्टी में बतौर संगठन मंत्री नियुक्त करता है. राष्ट्रीय संगठन से लेकर जिला स्तर तक पर बीजेपी में संगठन मंत्री की अहम भूमिका होती है.

बीजेपी में संगठन मंत्री संसदीय बोर्ड की बैठकों में जाता है और आरएसएस की सभी बड़ी बैठकों में आमंत्रित किया जाता है. इसलिए उसे हर ज्वलंत मुद्दे पर उस राजनैतिक संगठन और उसके वैचारिक संचालक की सोच मालूम होती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने तीन दर्जन से अधिक सहयोगी संगठनों में से हरेक के लिए कम से कम एक प्रचारक को संगठन मंत्री बनाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद संगठन मंत्री के रूप में संघ से बीजेपी में आए थे.

अटल-आडवाणी के दौर में बीजेपी में संगठन मंत्री के लिए संघ ने गोविंदाचार्य को नियुक्त किया था. इसी तरह मौजूदा समय में रामलाल संगठन मंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं. हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी एमपी में बीजेपी के संगठन मंत्री रह चुके हैं. आज राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार पार्टी महासचिव राम माधव भी कुछ साल पहले तक आरएसएस के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख थे.

भागवत भले ही कहता हो कि सत्ता में कौन आता है इससे उसे कोई मतलब नहीं है, लेकिन बीजेपी के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने का काम भी संघ के स्वयंसेवक ही करते हैं.

यही वजह है कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने होते हैं वहां स्वयंसेवक पार्टी उम्मीदवार के लिए घर-घर जाकर वोट मांगते साफ देखा जा सकता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में संघ ने पूरी ताकत के साथ नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने में अहम भूमिका अदा की थी. इतना ही नहीं यूपी के 2017 विधानसभा चुनाव में भी गांव-गांव में स्वयंसेवक सक्रिय थे.

संघ की राजनीति में दखल की शुरुआत जनसंघ से होती है. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में संघ के कार्यकर्ताओं को लेकर जनसंघ की स्थापना की. 1952 में हुए आम चुनाव में जनसंघ ने राजनीतिक दल के रूप में भाग लिया, उसे इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली.

जनसंघ को मजबूत करने में संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख, बलराज मधोक, भाई महावीर, सुंदरसिंह भंडारी, जगन्नाथराव जोशी, लालकृष्ण आडवाणी, कुशाभाऊ ठाकरे, रामभाऊ गोडबोले, गोपालराव ठाकुर और अटल बिहारी वाजपेयी ने अहम भूमिका निभाई.

1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था. संघ ने इसका पुरजोर तरीके से विरोध किया था. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में संघ की प्रमुख भागीदारी रही.1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ तो जनसंघ का उसमें विलय हो गया. इसके बाद देश की सत्ता में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो संघ से आए हुए नेता मंत्री बने.

जनता पार्टी की सरकार में पहली बार रहा कि संघ के लोग मंत्री बने. लेकिन बाद में ऐसी परिस्थितियां आईं कि जनसंघ के नेताओं को जनता पार्टी से बाहर आना पड़ा. इसके बाद 1980 में बीजेपी की स्थापना हुई. बीजेपी ने अपने आधार को मजबूत करने के लिए राममंदिर मुद्दे को उठाया.

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी. इसके बाद 13 महीने के बाद फिर 1999 में हुए चुनाव में बीजेपी ने दोबारा से सत्ता में वापसी की. लेकिन पांच  साल के बाद 2004 में हुए चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा. इसके बाद 10 साल के बाद बीजेपी एक मजबूत ताकत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता में वापसी करने में सफल रही. बीजेपी के साथ-साथ संघ की ताकत भी बढ़ती जा रही है और ये भी कहा जा सकता है कि संघ की ताकत बढ़ने के साथ-साथ बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों की ताकत भी बढ़ रही है.

कांग्रेस का भाजपा पर आरोप
कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार इसे मुस्लिम महिलाओं के लिए न्याय का मुद्दा नहीं बना रही है, बल्कि सरकार इसे राजनीतिक मुद्दा बना रही है।

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