November 18, 2024

राष्ट्रीय स्वदेशी सुरक्षा अभियान द्वारा आमसभा एवं मानव श्रृखला का आयोजन

रतलाम,14 अगस्त (इ खबर टुडे ). राष्ट्रीय स्वदेशी सुरक्षा अभियान के अंतर्गत जनजागृति उत्पन्न करने के लिए जनसभा का आयोजन शासकीय महाविद्यालय के विवेकानंद सभागृह में किया गया। बड़ी संख्या में उपस्थित नागरिको को वक्ताओं ने चीनी वस्तुओ के बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओ के उपयोग के लिए प्रेरित किया।

सभा को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं समाज चिंतक तेजराम मांगरोदा ने कहा कि सन् 1905 में जब अंग्रेजो ने बंग-भंग का षड़यंत्र रचा तो स्वदेशी आंदोलन के निमित्त विदेशी वस्तु की होली जलाकर जन समूह को संगठित कर षड़यंत्र को विफल किया गया, कहा जाता है कि यदि किसी राष्ट्र को पराधीन करना हो तो उसकी भाषा बदल दों एवं उन्हें देश की संस्कृति से दूर कर दों । सन् 1935 में मैकाले भारत आया, और उसने इसी सिद्धान्त पर कार्य प्रारम्भ कर दिया, हिन्दी एवं संस्कृत के स्थान पर उसने हमें अपनी भाषा अंग्रेजी से जोड़ दिया, व भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के उद्धेश्य से हमारे शास्त्रों का विकृतिकरण किया, और वह इस उद्धेश्य में शीघ्र ही सफल भी हुआ । यही कारण है कि सोने की चिडि़या कहलाने वाले देश भारत को विश्व में सपेरो का देश बता दिया गया ।

श्री मंगरोदा ने कहा कि भारत गाॅव में निवास करता है सन् 1935 तक भारत के गाॅवो में नमक के अतिरिक्त बाहर से कुछ भी नही लाया जाता था, 3000 तरह के उत्पाद व 180 तरह की विद्याओं के कारीगर हमारे गाॅव में निवास करते थे । यही कारण है कि इतिहास कार बताते है कि 18वी शताब्दी तक हमारे देश में भिखारी नहंी पाये जाते थे । भारत पूर्ण रूप से स्वालम्बी था । मुद्रा के रूप में सोने के सिक्कों का चलन था । आज भी सम्पूर्ण भारत मे जितनी पाठशाला है, उससे कई अधिक पाठशाला मात्र कर्नाटक राज्य में हुआ करती थी, उत्कृष्ठ कोटी के उद्योग धंधे थे । छत्तीसगढ में ही 2500 से 3000 के लोहे के उद्योग थे । अंग्रेजो को पता था कि इनके नष्ट हुए बिना वे सफल नहीं होगे । तो उन्होने बंगाल के मधुबनी के सैकड़ो मलमल बुनने वाले बुनकरों के अगूठे काटकर उन्हें बेरोजगार बना दिया और इस तरह भारत को विदेशी वस्तुओं का उपभोक्ता बना दिया ।

उन्होंने कहा कि आज विस्तारवादी चीन डोकलाम पर घात लगाया हुआ बैठा है, उसका सामना करने भारत माता के वीर सैनिक सीने ताने खड़े है, हमें भी देश के भीतर अपने मोर्चे पर डटे रहकर घातक चीनी वस्तुओं का लगातार बहिष्कार करके उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़नी हैं । 1947 से पहले राष्ट्र प्रेम के लिये लोगो को गोली-डंडे खाने पड़ते थे फांसी पर चढना होता था । आज के परिप्रेक्ष्य में हमारे लिये सस्ते विदेशी माल का लालच छोडना ही राष्ट्र प्रेम हैं । दुश्मन देश के सामान को खरीदकर हम स्वयं को धोखा दे रहे है, ‘स्वावलाम्बी भारत’ देश की जनता ही बना सकती हैं । कार्यक्रम का संचालन अशोक पाटीदार ने किया । सभा के पश्चात् उपस्थित समाज जनों ने मानव श्रृखला बनाकर स्वदेशी अपनाने का संदेश दिया । उपरोक्त जानकारी समिति के सुरेन्द्रसिंह भामरा ने दी ।

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