December 25, 2024

राग रतलामी- जनता को यातनाएं देकर ही पूरा होता है नगर निगम से नरक निगम बनने का सफर,इसी में जुटे है निगम के अफसर

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-तुषार कोठारी

रतलाम। इधर कोरोना का लाकडाउन खुला और उधर शहर की सरकार ने लाक डाउन की वजह से बन्द हुए तमाम काम भी चालू कर दिए। लोगों को बडी खुशी भी हुई कि चलो विकास के काम शुरु हो रहे हैैं,लेकिन नरक निगम की हरकतों ने जल्दी ही शहर केबाशिन्दों को निराश कर दिया। निगम वालों ने जितनी तेजी काम शुरु करने में दिखाई थी,उससे कहीं ज्यादा सुस्ती काम करने में की जाने लगी और अब लोग परेशान है कि कछुए की चाल से हो रहे काम कब पूरे होंगे और कब समस्याओं से निजात मिलेगी?

नगर निगम से नरक निगम बनने का सफर कुछ कुछ इसी तरह पूरा हुआ है। अगर सब कुछ सही ढंग से ही होने लगे तो फिर कौन इसे नरक निगम कहेगा। जब तक शहरवासियों को नारकीय यातनाओं का एहसास नहीं होगा,नरक निगम का नाम सार्थक कैसे हो सकता है?

लाक डाउन खत्म होने के साथ ही फौरन सिटी फोरलेन और रेलवे ओव्हर ब्रिज जैसे काम शुरु कर दिए गए। यहीं नहीं न्यू रोड और शास्त्री नगर जैसे इलाकों में भी कई तरह के काम चालू किए गए। कहीं सड़क किनारे नाली बनाने के लिए खुदाई कर दी गई,तो कहीं सडक चौडी करने के लिए खुदाई की गई। निगम के अफसर इंजीनियरों की चिंता काम शुरु कराने तक ही रहती है। एक बार काम शुरु हो गया कि उनकी जिम्मेदारी खत्म। फिर ठेकेदार जाने और वहां के लोग,जहां खुदाई हो रही है।

ठेकेदार भी काम शुरु होने तक ही काम की चिन्ता करते है। उन्हे भी पता है कि साहब मौजूद है,तभी तक स्पीड दिखाना है। एक बार साहब रवाना हुए कि बस फिर कोई चिन्ता नहीं। काम तो होते होते,हो ही जाएगा। इस सब का नतीजा आखिर में लोगों को भुगतना पडता है। जो परेशानी दो चार दिनों में दूर हो सकती है,उसे महीनों तक झेलना पडता है।

सैलाना बस स्टैण्ड से पावर हाउस रोड को फोरलेन बनाने से लेकर न्यूरोड और शास्त्रीनगर में सड़क किनारे नालियां बनाने तक हर कहीं एक ही कहानी है। खुदाई हो गई है। आगे का काम कब होगा,कोई बताने को तैयार नहीं। पावर हाउस रोड पर सीवरेज के चैम्बर का काम अधूरा रह गया था,इसलिए काम आगे नहीं बढ रहा है। न्यू रोड और शास्त्रीनगर में किसी और वजह से काम अटका पडा है। सुभाष नगर में रेलवे ओव्हर ब्रिज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

कुल मिलाकर निगम के बडे दरबार से लगाकर तमाम इंजीनियरों और अफसरों तक सभी लोग नरक निगम वाला तमगा बरकरार रखने के लिए प्रयासरत है। लोगों को नारकीय यातनाएं होंगी तभी तो इसे नरक निगम कहा जाएगा।

भरपूर पानी के बावजूद पेयजल संकट

पेयजल व्यवस्था भी एक बडा कारण है,नरक निगम के दर्जे को बरकरार रखने का। कोई जमाना था,जब रतलाम पेयजल संकट के लिए दूर दूर तक पहचाना जाता था। लोग अपनी कन्याओं का विवाह करने तक में हिचकिचाते थे। बाद में जब से धोलावाड बान्ध बना,पेयजल संकट खत्म होने की व्यवस्था हो गई। लेकिन नरक निगम के जिम्मेदार ऐसा कैसे होने देते। अगर पेयजल का संकट ही खत्म हो जाएगा,तो कौन निगम को नरक निगम कहेगा। अब धोलावाड में भरपूर पानी है। बारिश भी हो चुकी है। लेकिन मजाल है कि वितरण व्यवस्था सुधर जाए। ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता,जब पेयजल ठीक ढंग से घरों तक पंहुच जाए। पूछने वाला भी कोई नहीं है। आम लोग चाहे जितना परेशान हो जाए,नरक निगम के किसी अफसर को इसकी जिम्मेदारी नहीं लेना पडती है। यही वजह है कि रतलाम की शहर सरकार नरक निगम कहलाने लगी है।

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