October 5, 2024

यह कहानियां गले नहीं उतरती…..मंदसौर हत्याकांड

प्रकाश भटनागर

प्रहलाद बंधवार अब हमारे बीच नहीं है लेकिन किसी हल्के फुल्के कारणों से कोई सिरफिरा उनकी जान ले लेगा, यह मंदसौर में तो कम से कम संभव नहीं है। प्रहलाद मंदसौर में उतने ही सुरक्षित और असुरक्षित थे, जितना मंदसौर का कोई भी आम नागरिक। प्रहलाद जी की जान लेना किसी के लिए भी कठिन नहीं था। और मैं प्रहलाद जी को क्योंकि बचपन से जानता हूं इसलिए कह सकता हूं कि उनके लिए शहर में कोई अछूत नहीं था। मेरे हिसाब से बस इतना ही प्रहलाद जी और उनके हत्यारे मनीष बैरागी का आपसी संबंध हो सकता है।प्रहलाद एक राजनेता से बढ़कर जनता के बीच के जमीनी आदमी थे, यह उनके अंतिम संस्कार में सभी ने देख ही लिया होगा।गजब के सक्रिय थे, प्रहलादजी। पूरे शहर में अकेले ही पैदल घूमते हुए हर कहीं वे दिखते थे। बाद में तो राजनीति में वे बहुत आगे बढ़े, आखिर सामान्य वर्ग के लिए तय नगर पालिका अध्यक्ष की सीट पर पिछड़े वर्ग के प्रहलाद बंधवार को दूसरी बार चुनाव लड़ाना वैसे ही तो भाजपा के लिए मजबूरी नहीं बना होगा। बावजूद इसके दादा की फितरत नहीं बदली। नगर पालिका की स्कार्पियों में मंदसौर के लोग शायद ही उन्हें कभी देख पाते होंगे। अभी भी वे शहर में मोटर सायकिल या पैदल ही नजर आते थे। और दो बार का नगर पालिका अध्यक्ष, घर परिवार से सम्पन्न, साढ़े तीन दशक से ज्यादा का सक्रिय राजनीतिक जीवन,क्या संभव है कि उसे कोई लेनदेन के मामूली विवाद में गोली मार देगा?

इसमें शक शुबहे की गुंजाइश नहीं है कि उन्हें मारने वाला हत्यारा मनीष बैैरागी ही है। लेकिन जो कारण वो बता रहा है, पुलिस का अपना पाप काटने के लिए ठीक हो सकते है पर यह किसी भी समझदार के गले नहीं उतरेंगे। पुलिस ने इस कहानी में जितने पात्र तय किए हैं, उनमें से एक हत्यारे को छोड़कर बाकी सभी से मैं परिचित हूं। हत्यारा कह रहा है कि नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव के दौरान उसने प्रचार के लिए डेढ़ लाख रूपए दिए थे। अब जाहिर है प्रहलाद जी को तो इसकी जरूरत नहीं थी। एक तो वे खुद सक्षम और दूसरे प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के उम्मीदवार। यह पैसा उनके समर्थक गोलू शाह ने लिया था और गोलू क्योंकि अभी युवा है तो उत्साही हो सकता है, इसलिए ब्याज पर उसने मनीष के माध्यम से पैसे लिए थे। इनमें से सवा लाख रूपए लौटा भी दिए थे। खुद दादा ने पचहत्तर हजार रूपए मनीष को दिए, विनोद सम्राट ने पचास हजार रूपए अपने हाथ से दिए। बचे थे पच्चीस हजार। अब यह इतनी बड़ी राशि नहीं है कि इसके लिए कोई अपनी जान गवांए या कोई किसी की जान लें।

अब दूसरा कारण कि दादा ने अपने समर्थकों को तो नगर पालिका में काम दिलाया लेकिन मनीष की उपेक्षा कर दी। कायदे से तो फिर गोलू शाह को दादा की हत्या कर देना थी। नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद प्रहलाद जी के मौखिक आश्वासन पर ही उसने मंदसौर के स्विमिंगपुल पर डिस्टम्पर से पुताई सहित करीब चार लाख रूपए के काम कर दिए। जाहिर है इसका टेंडर नहीं हुआ था तो नगर पालिका ने बिल ही पेमेंट नहीं किया। फिर नगर पालिका के मापदंडों में डिस्टम्पर का कोई प्रावधान ही नहीं था। वहां चूने से ही पुताई होना थी। इसलिए गोलू को बस इतना पैसा मिला जितने में उसने उधारी में जो डिस्टम्पर लिया था,उसका बिल चुका सके। इसके अलावा दादा से उपेक्षित तो उनके अपने ही बहुत सारे थे। सम्राट का बेटा गज्जू सम्राट तो दिनरात दादा के साथ था लेकिन उसने नगर पालिका का कभी एक भी काम नहीं किया। और भी बहुतेरे दादा के ऐसे समर्थक होंगे। फिर हत्यारा मनीष कोई भाजपा का कर्मठ कार्यकर्ता नहीं था, वो मिस्ड काल का प्राथमिक सदस्य था।

उसकी तीसरी बात की कायदे से जांच होना चाहिए। अंकुर काम्पलेक्स की जिन दुकानों पर उसने कब्जा कर रखा था, वो उनका नामांतरण कराना चाहता था। इसका नामांतरण होना विधि सम्मत था या नहीं? या नगर पालिका अध्यक्ष इसमें क्या भूमिका निभा सकता था। मनीष क्योंकि आदतन अपराधी था इसलिए उसका कोई और भी इस्तेमाल कर सकता था। मेरा इशारा ‘कांट्रेक्ट किलिंग’ की तरफ है। प्रहलाद जी की हत्या के पीछे भूमाफिया की क्या भूमिका हो सकती है? मंदसौर अब कोई सुकड़ा सिमटा शहर तो रह नहीं गया है, उसका निरंतर विस्तार हो रहा है। जाहिर है भू माफिया भी पनपा और ताकतवर हुआ है। इसलिए कायदे से पुलिस को नगर पालिका में पिछले पांच साल में हुए सभी तरह के नामातंरणों की जांच करना चाहिए। इसके लिए बाकायदा विधिक सहायता भी लेना चाहिए और पता करना चाहिए कि पिछले पांच साल में नगर पालिका में कितने वैध और अवैध नामांतरण हुए हैं? और शहर की ऐसी कौन सी संपत्तिया हैं जिनका नामांतरण पेंडिंग पड़ा है? अगर इस एंगल को पुलिस खंगालती है तो कई ऐसे संदिग्ध लोगों के चेहरे सामने आ सकते हैं जो प्रहलाद की जान के दुश्मन नजर आएंगे। यह इसलिए भी गंभीर मसला है क्योंकि सुपारी देकर गोली चलवाना और लोगों की हत्या करवाना अब मंदसौर के लिए नई बात नहीं रह गई है।

इस खेल में पुलिस की अपराधियों से मिलीभगत को भी इस शहर ने देखा है। अजय सोनी की हत्या की कोशिश के ऐसे ही मामले में तब नीमच के तत्कालीन एसपी और अभी-अभी मंदसौर से रूखसत हुए आईपीएस अफसर की भूमिका संदिग्ध थी। हद तो तब हो गई थी जब अजय के भाई अनिल को इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के कारण जिला बदर कर दिया गया था। हालांकि वो अपराधी नहीं व्यापारी था। तुषारकांत विद्यार्थी की पहचान एक मेहनती और ईमानदार अफसर की है। इसलिए उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे गहराई में जाने का फैसला कर सकते हैं। और अगर इतनी मशक्कत मंदसौर पुलिस के बस की बात नहीं हो तो हत्यारे के पकड़े जाने के बाद भी इस मामले की सीआईडी जांच तो जरूर करवाना चाहिए।

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