भूमि अधिग्रहण अध्यादेश स्वागतयोग्य लेकिन कुछ सुधार जरुरी
भारतीय किसान संघ ने उठाए किसानों के हित के सवाल
नई दिल्ली,1 जनवरी(इ खबरटुडे)। भारत सरकार द्वारा अध्यादेश लाकर भूमि अधिग्रहण कानून में किए गए संशोधनों का भारतीय किसान संघ ने स्वागत किया है,लेकिन साथ ही कुछ प्रावधानों को लेकर आपत्ति जताते हुए किसान हित में कुछ सुझाव प्रस्तुत किए है। भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री प्रभाकर केलकर ने एक बयान जारी कर उक्त अध्यादेश पर भारतीय किसान संघ का रुख स्पष्ट किया है।
यहां जारी बयान में किसान संघ महामंत्री प्रभाकर केलकर ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को स्वागतयोग्य बताते हुए कहा है कि मीडीया में आई रिपोर्ट्स से लगता है कि इस संधोशन में किसानों के हित के सभी तेरह प्रावधानों को शामिल किया गया है,जिनमें कि किसानो को उनकी भूमि का पूरा मुआवजा और पुनर्वास का पैकेज है। यह भी प्रावधान रखा गया है कि जिस व्यावसायिक प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिगृहित की जाएगी,उस प्रोजेक्ट में किसान के परिवार के कम से कम एक सदस्य को रोजगार दिया जाएगा।
श्री केलकर ने इन प्रावधानों से रक्षा,राष्ट्रीय सुरक्षा,ग्रामीण अधोसंरचना विकास,ग्रामीण आवासीय परियोजनाएं शिक्षा एवं चिकित्सा सम्बन्धी परियोजनाओं को मुक्त रखा गया है। यह भी उचित है। उक्त श्रेणी की परियोजनाओं में किसानों सम्बन्धी प्रावधानों से छूट दी जा सकेगी। लेकिन भारत सरकार ने इण्डस्ट्रीयल कारिडोर को किस श्रेणी में रखा है,यह मीडीया रिपोर्ट्स से स्पष्ट नहीं हो रहा है। इण्डस्ट्रीयल कारिडोर को किसानों के हित सम्बन्धी प्रावधानों से छूट दी गई है। इण्डस्ट्रीयल कारिडोर के लिए बिना किसानों की सहमति के भी भूमि अधिगृहित की जा सकेगी। इस पर किसान संघ को आपत्ति है।
श्री केलकर ने कहा कि यह स्थापित तथ्य है कि औद्योगिक समूह उद्योगों के लिए आवश्यकता से अधिक भूमि की मांग करते है,जबकि उद्योग मांगी गई भूमि से कम भूमि में स्थापित किया जा सकता है। इस तरह कृषि भूमि बेकार हो जाती है। किसान संघ की मांग है कि भारत सरकार अध्यादेश के इन बिन्दुओं पर पुनर्विचार करे। इसमें यह प्रावधान किया जाए कि व्यावसायिक प्रोजेक्ट के मामले में ५१ प्रतिशत किसानों की सहमति अनिवार्य किया जाए। किसानों की भूमि का वास्तविक बाजार मूल्य का आकलन कर मुआवजा राशि तय की जाए। यदि भूमि की वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध हो तो कृषि भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाए। किसान संघ की मांग है कि औद्योगिक कारिडोर को किसानों सम्बन्धी प्रावधानों से छूट नहीं दी जाए।
श्री केलकर ने कहा कि भारत सरकार उद्योगों को किसानों की जमीन लीज पर लेेने का दबाव क्यो नहीं बनाती? श्री केलकर ने प्रश्न खडा करते हुए कहा कि उद्योग अधोसंरचना विकास चाहते है या जमीन पर स्वामित्व?श्री केलकर ने लैण्डबैंक बनाने का सुझाव देते हुए कहा है कि लैण्डबैंक से किसी भी प्रोजेक्ट के लिए भूमि उपलब्ध कराई जाए। इसके साथ ही एक ऐसी एजेंसी निर्मित की जाना चाहिए जो विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए कितनी भूमि की आवश्यकता होगी इसका आकलन करें और उतनी ही भूमि उद्योग को दी जाए। वर्तमान में सोश्यल इम्पेक्ट असेसमेन्ट का प्रावधान रखा गया है जो कि कारगर नहीं है। यदि उद्योग या अन्य किसी निर्माण के लिए जमीन की आवश्यकता हो,तो वे इसे लीज पर ले सकते है। इससे जहां उद्योग स्थापना का शुरुआती निवेश कम लगेगा। इससे कानूनी उलझने कम होगीं और कानून व्यवस्था की स्थिति भी खराब नहीं होगी। लीज पर भूमि दिए जाने से किसान भी गांव में सम्मान के साथ रह सकेगा और किसानों की आत्महत्या जैसे मामलों में कमी आएगी।