November 22, 2024

प्रधानमंत्री श्री मोदी भूमि पूजन के बाद,जयश्री राम की जगह जय जय सियाराम क्यूँ?

– पंडित मुस्तफा आरिफ

पिछले सप्ताह राम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन सम्पन्न हो गया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व छाया रहा, राम जन्मभूमि न्यास की स्थापना से लेकर भूमि पूजन तक निर्विवाद रूप से उनके प्रयासों का प्रभाव रहा। भूमि पूजन के बाद देश में एक नया अध्याय शुरू हो गया। प्रधानमंत्री ने अपने उदबोधन में जयश्री राम की जगह जय जय सियाराम और सियापति रामचन्द्र की जय का उदघोष कर इस नयें युग का सूत्रपात कर दिया। दूसरे शब्दों में ये कहना उचित होगा कि पुरूष प्रधान समाज में स्त्री के स्थान को अनदेखा करना यानी सर्वागीण विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न करना है। सियाराम यानि पहले सीता फिर राम। फिर सीता और राम यानी सीता और राम संयुक्त हैं तभी संपूर्ण हैं। राष्ट्र के प्रगति और विकास के लिए ये संयुक्तिकरण ही कल्याणकारी है। पक्ष हो या विपक्ष हो दोनो ही राम मय हो गयें। मोदी जी का व्यक्तित्व भूमि पूजन की घटना के बाद जिस प्रकार सामने आया है, उसे देखते हुए फिलहाल तो यही कहना उचित होगा कि नरेंद्र मोदी ही पक्ष है और नरेंद्र मोदी ही विपक्ष हैं।।।

जय सियाराम के महिला सशक्तिकरण के संकेत के साथ देश के राजनीतिक स्वरूप और मोदी जी छबी को लेकर बहस चल पङी है। इसकी शुरुआत आरएसएस के पूर्व प्रचारक गोविंदाचार्य ने करते हुए कहा है कि भूमि पूजन के बाद ये स्थापित हो जाएगा कि भारत में सिर्फ एक ही विचारधारा रहेगी और वो है हिंदूवाद। सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी प्रधानमंत्री के भूमि पूजन को संवेधानिक शपथ की अवहेलना बताते हुए आरोप लगाया है कि भाजपा भारत में आरएसएस का हिंदुत्व का एजेंडा लागू करने की दिशा में बढ़ रही है। भूमि पूजन को लेकर कांग्रेस की भूमिका भी शरणम् गच्छामि की रहीं हैं, उसने भूमि पूजन और राम मंदिर निर्माण का पार्टी स्तर पर तो नहीं परंतु अपने नेताओं के पृथक पृथक मंदिर निर्माण समर्थक बयानों के माध्यम से खुला समर्थन किया है। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी का स्पष्ट वक्तव्य 5 अगस्त को एक महत्वपूर्ण दिन बताते हुए आया है। केरल के मुख्यमंत्री विजयन ने भी दबे शब्दों में कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदू समर्थक बताते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की है।।।

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है “सियाराम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी” भावार्थ है कि संपूर्ण संसार पर राम का प्रभाव है। परंतु राम के आगे सीता न हो तो, बात नहीं बनती है। जयश्री राम कहने और सियाराम में कहने में अंतर है, जयश्री राम जहां पुरूष प्रधान समाज का द्योतक हैं और कठोरता का संदेश देता है, वहीं सियाराम समन्वय और ममत्व का प्रतीक है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सियाराम का उदघोष कहीं न कहीं महिला सशक्तिकरण का समर्थन हैं। उनके सत्ता संभालने के बाद मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने की दृष्टि से त्रिपल तलाक़ का बिल उनकी इस भावना की पुष्टि करता है, 1400 साल पूर्व कुरान के अवतरण के साथ इस्लाम में महिलाओं को अधिकार देने और सशक्त बनाने की जो प्रक्रिया शुरू हुई थी, ये बिल उस भावना का विस्तार हैं। हाल ही में पोप फ्रांसीस ने वेटिकन के इतिहास में पहली बार वेटिकन काउंसिल में 15 सदस्यों में 6 महिलाओं को शामिल कर महिलाओं की समान भागीदारी की आवश्यकता प्रतिपादित की है। जयश्री राम की जगह सियाराम का उदघोष कर प्रधानमंत्री ने संकेत दिया है कि बिना समंवय के प्रगति और विकास का रास्ता तय करना कठिन है, चाहे वो सांप्रदायिक समन्वय ही क्यों न हो। ईश्वर से प्रार्थना करें कि प्रधानमंत्री जी का संकेत भक्तों के समझ में आ जाये, सांप्रदायिकता की भाषा छोङकर मोदी जी की भावना अनुसार आचरण करें ।।।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भूमि पूजन को लेकर पक्ष में या विपक्ष में जो भी प्रतिक्रिया हुई हो, लेकिन भारत का संपूर्ण जनमानस उनके इस कार्य से प्रसन्न है और खुद को गौरवान्वित मानता है। जनता के इस अपार और निर्विवाद समर्थन के चलते सभी राजनीतिक दल रामजी के आगे नतमस्तक हैं। हाल ही में आजतक द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में 70 प्रतिशत लोगों ने कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए भी मोदी सरकार की प्रशंसा की है। कुल मिलाकर मोदी जी के प्रति देश में फिलहाल एक पक्षीय पोजिटिव वातावरण हैं। जिनका अभी तो कोई तोड़ नहीं हैं। और तब तक नहीं रहेगा जब तक देश में जमीन पर आंदोलन खङा करनें की प्रवृत्ति वापस न लौट आएं। कमोबेश सभी राजनीतिक दल सत्ता का स्वाद चख चुके हैं, ऐसे में सङक पर उतर कर लाठी गोली खाना अब उनके बस में नहीं रहा। इसलिए राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि मोदी ही पक्ष हैं मोदी ही विपक्ष हैं, मोदी ही खुद अपने समर्थक हैं और मोदी ही खुद अपने विरोधी हैं।।।

अपने उदबोधन में सियापति रामचन्द्र की जय बोलकर जहां उन्होंने भारत की प्रगति के लिए समंवय क़ायम करने पर बल दिया वहीं भय बिन होय न प्रीति कहकर ये चेतावनी भी दी विघटन, अलगाव, आतंक और अराजकता पर उनका दृष्टिकोण कठोर है। कुल मिलाकर पांच वर्षों के संघर्ष के बाद भाग्यशाली प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ भूमि पूजन कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री नही की अपितु राष्ट्र के विकास और समंवय की राह का श्रीगणेश भी किया। मैं उनकी इस बात से सहमत हूँ कि इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम बाहुल्य देश में यदि अपनी प्राचीन संस्कृति का सम्मान बरकरार है तो भारत में क्यूँ नहीं। राम का शाब्दिक अर्थ होता है महान, तद्नुसार रामचंद्र का अर्थ हुआ उसी महान का चांद जिन्हें हम ईश्वर कहते हैं। भूमि पूजन के बाद हमें अनादिकाल से चली आ रही संस्कृति के वृक्षारोपण की जरूरत है, इसके लिए नयी शिक्षा नीति में रामजी के व्यक्तित्व का ऐसा स्वरूप पेश करना होगा जो सर्वमान्य हो। तभी हम अयोध्या स्थित जन्मभूमि को सर्वमान्य और सर्वग्राह्य बनाने में कामयाब होंगे। तब प्रसिद्ध ऊर्दू शायर इकबाल की ये बात सिद्ध होगी कि “है राम के वूजूद पर हिंदोस्तां को नाज़, एहले नज़र समझते हैं उनको इमामे हिंद।”
जय सियाराम, सियापति रामचन्द्र की जय।

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