November 15, 2024

दादा-दादी को स्वर्णसीढी चढाया पडपोती ने

बेटियों को बढावा देने के लिए अनुकरणीय उत्सव,दान की अनेक परंपराओं का हुआ निर्वाह

रतलाम,16 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। पडपोती की अपने पडदादा और पडदादी के प्रति अपार स्नेह की अद्भूत और अनुकरणीय मिसाल का उत्सव रविवार को संपन्न हुआ। बेटियों को बढावा देने की अभिनव पहल के साक्षी बने लोगों ने आयोजन की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। इस उत्सव ने भारतीय संस्कार और परंपरा में एक नया अध्याय जोडा।
अभिभूत करने वाले उत्सव के मूल में पौत्री श्रीमती पूर्णेन्दु भाविक जोशी। परम भाग्यशाली पडदादा है प्रज्ञानन्द मेहता ७५ और पडदादी श्रीमती निर्मला देवी ७०। श्रीमती पूर्णेन्दु जोशी को एक बेटी है कृशिका। बेटी कृशिका के हाथों श्रीमती जोशी की भावना ने मूर्त रुप लिया तो उत्सव स्थल करतल ध्वनि से गूंज उठा।समारोह में उपस्थितजन सेल्फी के साथ आयोजन को चिरस्थाई बनाते रहे।आयोजन में श्री त्रिवेदी मेवाडा समाज विकास परिषद के पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष कैलाश व्यास, एडवोकेट नन्दकिशोर एम शर्मा,समाज के वरिष्ठ जयंतीलाल मेहता,दाममोदर जोशी,सहित अन्य समाजजनों की मौजूदगी श्रीमती पूर्णेन्दु जोशी के नानाजी पं.रघंनन्दन त्रिवेदी ने स्वर्णसीढी के अलावा वैतरणी गोदान,स्वर्ण,रजत,कांस्य,व,दसधान,दीप आदि दान श्री एवं श्रीमती मेहता के हाथों करवाया।

बेटी की भावना का मान

श्रीमती पुर्णेन्दु जोशी के पिता अक्षयवट प्रसाद मेहता एवं माता साधना मेहता ने बताया कि बेटी की भावना और दादा दादी के प्रति अपार स्नेह को देखते हुए वे भी आयोजन के लिए राजी हो गए। वैसे भी वर्तमान में बेटा बेटी दोनो समान है। श्रीमती पूर्णेन्दु के काका ब्रजेन्द्रनन्दन व संजय मेहता ने कहा कि यह समाज के लिए एक अनुकरणीय पहल है।
अभिनव उत्सव
पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष कैलाश व्यास एवं नन्दकिशोर शर्मा ने कहा कि यह एक अभिनव पहल है. ऐसा पहले कहीं नहीं देखा। पूर्णेन्दु की भावना को सलाम। इस आयोजन से भारतीय संस्कार और परंपरा में एक नया अध्याय जुडा है। चौथी पीढी को देखना भी दुर्लभ होता है। यदा कदा ही ऐसे उदाहरण मिलते है।

इनका कहना है-
पितरों को तारने वाला प्रपौत्र जब आता है तो स्वर्णसीढी उत्सव मनाया जाता है। इससे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।प्रभु की कृपा बरसती है। भगवान तो भाव के भूखे है। सच्ची श्रध्दा और आस्था है तो क्या बेटी और क्या बेटा। दोनो समान। पडनाना और पडनानी भी हकदार है स्वर्णसीढी के।

– पं.दुर्गाशंकर ओझा,ज्योतिषाचार्य

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