December 25, 2024

तीन तलाक का बिल पास होने के बाद अब जरुरत जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की

population

-तुषार कोठारी

आखिरकार तीन तलाक का बिल संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अब यह कानून भी बन चुका है। इसी के साथ देश में पिछले करीब साढे तीन दशकों से फैलाए गए झूठ का भी पर्दाफाश हो गया कि मुस्लिम अल्पसंख्यको के धार्मिक कानूनों से छेडछाड करने पर देश में अराजकता फैल सकती है। इस पर्दाफाश के साथ ही अब यह भी तय हो गया है कि देश की तरक्की के लिए चार विवाह और जनसंख्या वृध्दि रोकने जैसे विषयों पर भी कानून बनाए जा सकते है।
देश की राजनीति पिछले कई दशकों से अल्पसंख्यक वाद की बंधक बनी हुई थी और अस्सी के दशक में शाहबानो प्रकरण में तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा सांप्रदायिक शक्तियों के सामने घुटने टेक दिए जाने के बाद से यह मान लिया गया था कि देश में प्रगतिवादी कडे कदम नहीं उठाए जा सकते। देश की सबसे बडी समस्या जनसंख्या वृध्दि पर रोक लगाने के लिए कठोर कानून की जरुरत हर समझदार व्यक्ति महसूस करता रहा है,लेकिन इसमें बडी दिक्कत यही थी। अल्पसंखयक समुदाय की कथित धार्मिक भावनाएं इसके आडे आ जाती थी। रुढिवादी मुल्ला मौलवी परिवार नियंत्रण के उपायों को धर्म के खिलाफ बताने लगते थे।
पिछले साढे तीन दशकों से वोटबैंक की राजनीति के सहारे सत्ता में काबिज दलों और उनके समर्थकों द्वारा यह डर फैलाया जाता रहा था कि यदि सरकार ने धार्मिक कानूनों में बदलाव की कोशिश की,तो देश में अराजकता फैल सकती है। डराया तो यहां तक जाता था कि देश में गृहयुध्द जैसे हालात भी पैदा हो सकते है। लेकिन तीन तलाक कानून के बन जाने के बाद यह साबित हो चुका है कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला। बल्कि साबित तो यह भी हो चुका है कि आम मुसलमान नागरिक प्रगतिशीलता के साथ है,जबकि उनमें से बहुत थोडे नाममात्र के लोग ऐसे है जो अपने निहित राजनैतिक स्वार्थों के चलते एक मिथ्या भय फैलाते है। तीन तलाक कानून के अस्तित्व में आने के बाद अधिकांश अल्पसंख्यको ने इसका स्वागत ही किया और विरोध के स्वर कहीं भी सुनाई नहीं दिए। विरोध के जो स्वर उठे थे,वे सभी या तो राजनीति से प्रेरित थे या धर्म के कथित ठेकेदारों के थे।
वैसे भी तीन तलाक कानून को रोकने के लिए विरोध किए जाने के पीछे मूल भावना भी यही थी,कि यदि एक बार ऐसा कानून बन गया तो नाराजगी की सारी सच्चाई सामने आ जाएगी। यह साबित हो जाएगा कि आम मुसलमान को इससे कोई नाराजगी नहीं होती। और जब यह स्पष्ट हो जाएगा,तब बडे और महतवपूर्न विषयों पर कानून बनाना आसान हो जाएगा।
समान नागरिक संहिता भाजपा की पुरानी मांग रही है। हांलाकि यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है,जितना कि चार विवाह और जनसंख्या नियंत्रण का कानून बनाना। देश की सबसे बडी और भयावह समस्या तेजी से बढती जनसंख्या है। यही समस्या चीन के सामने भी थी,लेकिन चीन ने कठोर कानून बनाकर इस समस्या का पूरी तरह समाधान कर लिया। भारत के सामने भी आजादी के बाद से सबसे बडी समस्या यही है। नागरिकों के हित में बनाई जाने वाली हरएक योजना जनसंख्या वृध्दि के कारण बेअसर हो जाती है। कोई भी जनकल्यानकारी योजना जब बनाई जाती है,तब वह वर्तमान स्थिति के मद्देनजर बनाई जाती है,लेकिन योजना के लागू होते होते जनसंख्या इतनी बढ जाती है कि योजना पूरी तरह बेअसर हो जाती है।
सरकारें परिवार नियंत्रण के लिए जागरुकता उत्पन्न करने के लिए अरबों रु.के विज्ञापन जारी करती है। लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल पाता,क्योंकि धार्मिक तौर पर चार विवाह करने के लिए स्वतंत्र अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति चार विवाह करके चौदह संताने पैदा कर लेता है और परिवार नियंत्रण के तमाम प्रयासों को अंगूठा दिखाता है। चार शादियां ना भी हो तो एक ही विवाह से चार-चार पांच-पांच संताने उपरवाले की मर्जी मानकर पैदा करता है और परिवार नियंत्रण के उपाय को धर्मविरुध्द मानता है।
इस पर नियंत्रण सिर्फ कानून से ही संभव है। पहले के माहौल में ऐसी सलाह भी देने वाले को पागल करार दिया जाता था। परिवार नियंत्रण के लिए कानून बनाने की बात करने वाले को डराया जाता था कि ऐसी कोई भी कोशिश देश को अराजकता की आग में झोंक देगी। लेकिन आज माहौल बदल चुका है। देश देख चुका है कि धार्मिक कुरीतियों को कानून से ठीक किया जा सकता है और ऐसे प्रयासों से किसी प्रकार की अराजकता नहीं होती।
यह भी देश का दुर्भाग्य ही था कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज की बाल विवाह ,सती प्रथा जैसी धार्मिक कुरीतियों को तो कानून बनाकर रोक दिया जाता था,लेकिन अल्पसंख्यक समाज की धार्मिक कुरीतियों पर कानूनी रोक लगाने में भय महसूस किया जाता था। लेकिन मोदी सरकार के साहसिक कदम ने अब यह बंद दरवाजा खोल दिया है।
आज जरुरत इस बात की है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण पर तेजी से कडे कदम उठाए जाएं,ताकि तरक्की की राह पर देश तेज गति से आगे बढ सके।
इसका सीधा सा उपाय यही है कि दो से अधिक संतान उत्पन्न करने पर कानूनी रोक लगाई जाए। कानून बनने के बाद जिस किसी व्यक्ति द्वारा इसका उल्लंघन किया जाए,उसे समस्त शासकीय योजनाओं के लाभों से वंचित कर दिया जाए। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाला कोई व्यक्ति यदि कानून बनने के बाद दो से अधिक संतान उत्पन्न करें तो उसे मिलने वाले समस्त लाभ रोक दिए जाए।
यह समस्या सिर्फ अल्पसंख्यको में है ऐसा भी नहीं है। बहुसंख्यक समाज में अनेक वर्गो के लोग भी इसमें पीछे नहीं है। कोई लडके की चाहत में परिवार बढा रहा है,तो कोई अज्ञानतावश जनसंख्या नियंत्रण के उपायों पर अमल नहीं कर रहा है।
ऐसा नहीं है कि इस दिशा में अब तक कोई काम नहीं हुआ है। कानून भी बने है,लेकिन वे स्वैच्छिक स्वरुप के है। पंचायती राज अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि दो से अधिक संतान वाला व्यक्ति चुनाव नहीं लड सकता। लेकिन अब जरुरत प्रत्येक व्यक्ति के लिए कडा कानून बनाए जाने की है। बहुविवाह पर रोक और जनसंखया वृध्दि रोकने के लिए कडा कानून इस समय की सबसे पहली आवश्यकता है।
उम्मीद की जाए कि तीन तलाक कानून लागू करने के बाद सामने आई सकारात्मक प्रतिक्रियाओं को देखते हुए सरकार इस दिशा में भी जल्दी पहल करेगी। समान नागरिक संहिता भले ही ना बने,लेकिन ये दो उपाय ही देश को विकास के पथ पर तेजी से आगे ले जाने में सक्षम है।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds