जेवीएल फिर बिकी,बाजपेयी बने नए डायरेक्टर
न्यायालयीन विवादों के हल होने और श्रमिकों के भुगतान की उम्मीदें जगी
रतलाम,२७ फरवरी(इ खबरटुडे)। लम्बे समय से बन्द पडे विटामिन सी उत्पादक उद्योग जयन्त विटामिन्स लिमिटेड को स्थानीय व्यवसायी राजेन्द्र बाजपेयी ने खरीद लिया है। कंपनी में बाजपेयी को नए डायरेक्टर के रुप में शामिल किया गया है। जेवीएल के इस सौदे से उद्योग के विवादों और श्रमिकों के भुगतान की समस्या हल होने की उम्मीदें जताई जा रही हैं।
उल्लेखनीय है कि जेवीएल के बिकने की चर्चाएं लम्बे समय से चल रही थी। आज इन चर्चाओं का पटाक्षेप,जेवीएल के शेयर होल्डर्स की विशेष साधारण सभा में हो गया जब कंपनी के चेयर पर्सन हितेन मांगे ने राजेन्द्र बाजपेयी को कंपनी के अतिरिक्त निदेशक के रुप में मनोनीत किया। अधिकारिक तौर पर बाजपेयी को कंपनी के श्रमिक,कार्मिक और वित्तीय संस्थानों से जुडे न्यायालयीन विवादों का निपटारा समजौते के माध्यम से करने तथा इस माध्यम से उद्योग को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है।
जेवीएल के शेयर होल्डर्स की बैठक सोमवार को लायंस हाल में आयोजित की गई थी। बैठक में लगभग दो सौ शेयर होल्डर्स मौजूद थे। इस बैठक में जेवीएल के अनेक श्रमिक भी मौजूद थे। इनमें वे श्रमिक भी शामिल थे जिन्होने पूर्व में हुए श्रमिक-प्रबन्धन समझौते की खिलाफत करते हुए जेवीएल के खिलाफ प्रकरण दर्ज किए थे। इन श्रमिकों की मौजूदगी से इस बात के संकेत भी मिले है कि नगर विधायक पारस सकलेचा की अगुवाई में न्यायालयीन लडाई लड रहे जेवीएल के १०८ श्रमिकों में अब फूट पड गई है।
बहरहाल अधिकारिक तौर पर अभी इस बात का खुलासा नहीं हुआ है कि जेवीएल का सौदा कितनी राशि में हुआ है।
सवा सौ करोड की देनदारियां
जेवीएल सूत्रों के मुताबिक जेवीएल पर फिलहाल करीब सवा सौ करोड रुपए की देनदारियां बाकी है। इनमें से ८० करोड रु.बैंकों की देनदारियां है जबकि १० करोड अन्य वित्तीय संस्थानों की देनदारियां है। श्रमिकों के वेतन और अन्य भुगतान की देनदारी करीब सत्ताईस करोड रुपए है। इस प्रकार करीब सवा सौ करोड की देनदारियां उद्योग पर है।
पांच सौ ज्यादा कोर्ट केस
जेवीएल का मसला बेहद पेचीदा और उलझा हुआ है। जेवीएल के खिलाफ विभिन्न न्यायालयों में पांच सौ से ज्यादा न्यायालयीन प्रकरण लम्बित है। इनमें जहां श्रमिकों द्वारा दायर प्रकरण है वहीं सेबी व बैंकों द्वारा दायर मामले भी है।
कैसे सुलझेगी समस्या
जानकार सूत्रों के मुताबिक जेवीएल की समस्या का निराकरण करने के लिए उद्योग की देनदारियां निपटाना जरुरी है। इसके लिए निवेशक द्वारा वित्तीय संस्थानों में वन टाईम सैटलमेन्ट की योजना के तहत ब्याज राशि कम करवाई जाएगी और देनदारियों का निपटारा किया जाएगा। निवेशक की योजना यह है कि सारे निपटारे न्यायालय के माध्यम से ही किए जाए। इसी तरह श्रमिकों की बकाया राशि के भुगतान भी न्यायालय में ही किए जाने की योजना है।
अब क्या करेंगे सकलेचा
उल्लेखनीय है कि करीब एक दशक पूर्व कोलकाता के एक उद्योगपति ओपी मल्ल ने जेवीएल को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव रखा था और इस प्रस्ताव के तहत श्रमिकों से अलग-अलग समझौते किए थे। उस समय जेवीएल की अग्रणी यूनियन के माध्यम से ३७४ श्रमिकों ने प्रबन्धन से समझौता कर लिया था लेकिन पारस सकलेचा के कहने पर १०८ श्रमिकों ने इस समझौते का विरोध करते हुए प्रबन्धन के खिलाफ प्रकरण दायर कर दिया था। इसका नतीजा यह हुआ था कि जेवीएल को फिर से जीवित करने की योजना धरी रह गई और कोलकाता निवासी उद्योगपति ने अपना हाथ खींच लिया था। विधायक पारस सकलेचा के नेतृत्व में कानूनी लडाई लड रहे १०८ श्रमिक तभी से कोर्ट दर कोर्ट प्रकरणों में जाते रहे लेकिन उनके भुगतान का मामला आज तक नहीं सुलझ पाया। न्यायालय वेतन के लिए आरआरसी जारी करते रहे लेकिन इन आरआरसी का भुगतान कभी नहीं हो पाया। लम्बी कानूनी लडाई में अब ये श्रमिक अब पूरी तरह टूट चुके है। उनमें से कई अब किसी भी तरह का समझौता करने को राजी है। ऐसी स्थिति में बडा सवाल यह है कि विधायक पारस सकलेचा इस पूरी कहानी में क्या रोल निभाएंगे। यदि उनकी सहमति के बगैर श्रमिक समझौते के लिए राजी हो गए तो यह सकलेचा का महत्व नगण्य हो जाने जैसा होगा। साथ ही इस घटनाक्रम से सकलेचा के नेतृत्व पर भी प्रश्नचिन्ह खडे हो जाएगें।
सौदा जमीनों के लिए
जेवीएल के इस सौदे के पीछे जमीनों की कहानी भी देखी जा रही है। जेवीएल उद्योग बरसों से बन्द पडा है और उसकी मशीनरी कबाडे में बदल चुकी है। ऐसी स्थिति में कोई भी निवेशक करोडों रुपए क्यो खर्च करेगा। इस सवाल का जवाब जमीनों में छुपा है। जेवीएल उद्योग के साथ करीब आठ सो बीघा जमीन भी जुडी है। सूत्रों का कहना है कि यदि सारे न्यायालयीन प्रकरणों का निराकरण हो जाता है तो यह जमीन बेहद महंगी हो जाएगी और निवेशक की नजर इसी जमीन पर है।