November 15, 2024

जमीन में गाड़ दो इन आंकड़ों को

प्रकाश भटनागर

जब जयंत मलैया अब तक संभालते आ रहे हैं तो आगे भी संभाल ही लेंगे। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार का खजाना खाली हुआ जा रहा है तो इसमें चिंता की कोई बात नहीं। चुनाव के बाद सरकार में लौटे तो देखेंगे कि खजाने का क्या करना है? नहीं लौटे तो जो सत्ता में आएगा, वो जाने और उसका काम। मानव सभ्यता के उद्गम से यही हो रहा है। विकास की आगे बढ़ती टांगों को तोड़ने की कभी सफल तो कभी असफल कोशिशें। इसके अस्त्र समयानुसार अलग-अलग होते जाते हैं। इसे प्रदेश के ताजा घटनाक्रम से समझ सकते हैं।

हर ओर विकास के नयनाभिराम दृश्य दिखाने का पूरा बंदोबस्त है यहां। माहौल उस रामराज का, जो इससे पहले अयोध्या में श्रीराम के समय भी शायद ही देखने मिलता हो। यह सहन नहीं हुआ तो ढीठ विघ्नसंतोषी आंकड़ों का अस्त्र लेकर सामने आ गए हैं। बता रहे हैं कि राज्य का खजाना लगभग खाली हो चुका है। वेतन देने के भी लाले पड़ सकते हैं। बेशर्मी और बदतमीजी की हद यह कि इसके साथ ही यह भी गिनाया जा रहा है कि सरकार ने अब तक कितने बार कर्ज लिया है और उसे किस-किस तरह निरुद्देश्य खर्च किया गया।

मुझे तो शुरू से ही आंकड़ों से चिढ़ रही है। कोई तहजीब नहीं। लिहाज नहीं। मुंह उठाया और उगलने लगे सच। ऐसा भी कोई करता है भला! ये निर्लज्ज पूर्व में राज्य को बलात्कार की घटनाओं में अव्वल दर्जे पर बताने का पाप भी कर चुके हैं। इन आंकड़ों को घसीटते हुए किसी जन आशीर्वाद यात्रा में ले जाना चाहिए। वे पाएंगे कि किस तरह राज्य में हर ओर खुशहाली तैर रही है। प्रजा कितनी संतुष्ट है और राजा किस कदर परम संतुष्ट। इन यात्राओं पर करोड़ों रुपए आखिर क्यों खर्च किए जा रहे हैं। इसीलिए ना ताकि राज्य की जनता को निरंतर खुश होने का मौका दिया जा सके। रोज नए सपने दिखाए जा रहे हैं। रथ या मंच से आने वाले कल की जो तस्वीर दिखाई जाती है, उनके आगे इन खराब आंकड़ों की भला क्या बिसात है!

इंदिराजी तो केवल कहकर रह गईं कि हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन मध्यप्रदेश वाकई ऐसे कल की ओर अग्रसर है। वह कल जब खजाना पूरी तरह खाली होगा। कर्जदार आंखें दिखाने लगेंगे। वेतन तो दूर, जनता की बुनियादी सुविधाओं वाले काम के लिए भी धेला भर रकम तक नहीं बचेगी। लेकिन यकीन मानिए जनता तब भी नहीं मरेगी। उसने कभी नागनाथ तो कभी सांपनाथ का जहर जो चख रखा है। दिग्विजय सिंह के कार्यकाल से अब तक उसने सड़क के नाम पर गड्ढे, बिजली के तौर पर अंधेरा, कानून-व्यवस्था की जगह अपराधों का बोलबाला, हुकूमत से नैतिकता की बजाय अनैतिकता आदि का डटकर सामना किया है। उसी तरह, जैसे चीन युद्ध के समय भारतीय सेना के लिए कहा जाता था कि हमारे सिपाही मुकाबला करते हुए पीछे हट रहे हैं। वैसे ही राज्य की जनता ऐसे हालात को झेलते हुए सुविधाओं, व्यवस्थाओं और सच से पीछे हट रही है। पूरी बहादुरी के साथ। वह निराश होती है तो जन आशीर्वाद यात्रा के नगाड़े सुनकर गम भुला देती है। शंकराचार्य की प्रतिमा या भगवान राम के रास्ते के कभी न कभी मिलने की आशा में दर्द बिसरा देती है। ऐसी सहनशील जनता न कभी आंकड़ों के बहकावे में आई थी और न अब आएगी। यही सोचकर हुक्मरान भी बेखौफ हैं और विघ्नसंतोषी हैरान।

आशावाद प्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया से सीखिए। कह रहे हैं कि हालात खराब हैं, लेकिन यह भी फरमाते हैं कि सब ठीक कर लेंगे। बस यही सुनकर फिर चैन की नींद सो जाइए। यह मत पूछिए कि सब इतना बिगड़ने के बाद भी कैसे ठीक होगा। क्योंकि जवाब तो यह कहने वालों के पास भी नहीं है। हो सकता है कि शंकराचार्य की मूर्ति के लिए जमीन खोदते समय वहां से अरबों-खरबों रुपए का खजाना प्रकट हो जाए। उम्मीद पर दुनिया कायम है तो यह उम्मीद भी कर लें कि भगवान राम जिस पथ से वनवास के लिए गए थे, उसी पथ पर कहीं हीरे से लकदक खदानें मिल जाएं। मलैया इतने यकीन से कह रहे हैं तो निश्चित ही ऐसी ही कोई उम्मीद उनके दिमाग में भी होगी।

पंचतंत्र में एक कहानी है। किसी साधु की कुटिया पर दूसरा साधु मिलने गया। मेजबान बातचीत के दौरान रह-रहकर चिमटा जमीन पर पटकता। मेहमान कुपित हो गया। तब उसे बताया गया कि कुटिया में काफी चूहे हैं, जो वहां का भोजन चट कर जाते हैं। मेहमान ने कहा, लेकिन भोजन तो काफी ऊपर छींके में रखा हुआ है। मेजबान ने कहा कि चूहे इतने शक्तिशाली हैं कि इस ऊंचाई पर भी पहुंच जाते हैं, इसीलिए उन्हें चिमटे के शोर से भगाना पड़ता है। आगंतुक ने अनुभव के आधार पर कहा कि चूहे इतने शक्तिशाली केवल तब हो सकते हैं, जब जमीन के भीतर से उन्हें धन की ऊर्जा मिल रही हो। कुटिया की जमीन खोदी गई तो नीचे अपार खजाना मिला। मध्यप्रदेश किसी साधु की कुटिया की तरह ही खस्ताहाल है। लेकिन यहां भी कई चूहे भारी छलांग लगाते दिखते हैं।

निश्चित ही इस कुटिया की भूमि भी रत्नगर्भा है। इसीलिए मुख्यमंत्री खजाने की चिंता की बजाय उसे खत्म करने में व्यस्त हैं। वित्त मंत्री मस्त हैं। जनता पूरी तरह आश्वस्त है। मौजूदा से और भी अधिक खराब हालात उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तो आइए, जमीन खोदें, खजाना मिलेगा। उसे निकालें और आंकड़ों सहित आंकड़ेबाजों को उसी जमीन में हमेशा के लिए दफना दें। सब बेकार की बाते हैं। बातों का क्या। असली मजा तो वादों का है। रोज यहां से वहां, वहां से यहां आशीर्वाद लेते कर ही रहे हैं। अब और क्या-क्या करें?

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