December 25, 2024

चुनावी चकल्लस-14/युवा मतदाताओं को है शाम ढलने का इंतजार,पांचों सीटों पर आते रहे चढाव-उतार

chunavi chakallas

-तुषार कोठारी

रतलाम,27 नवंबर। मतदान की उलटी गिनती शुरु हो चुकी है। लेकिन अभी रात बाकी है और बात भी बाकी है। गली मोहल्लों में रहने वाले युवा मतदाता शाम ढलने के इंतजार में है,ताकि लोकतंत्र के उत्सव का आनन्द उठा सके और लोकतंत्र के नाम पर झूम सकें। दो ही पार्टियां है,इसलिए शौकीन मतदाताओं को डबल बोनस की आस है। हांलाकि मतदान प्रतिशत बढाने में लगे सरकारी महकमें,मतदाताओं को मिलने वाले मजे को रोकने की जद्दोजहद में जुटे है। शौकीन मतदाता बेचारे पूछ रहे है कि एक तरफ खुद सरकार मतदान प्रतिशत बढाने की कोशिशें करती है,तो फिर मतदाताओं को मजे लूटने से क्यो रोकती है। बेचारे पार्टीवाले तो मतदान कराने के लिए ही सारी मेहनत करते है,लेकिन सरकार है कि मानती नहीं। उन्हे रोकने की कोशिशें करती है।
पिछले चौदह दिनों के चुनावी युध्द की आज आखरी रात है। बुधवार का दिन दोनों ही पार्टियों के लिए पिछले चौदह दिनों में की गई तैयारियों की असलियत सामने लाने का दिन है। इन चौदह दिनों में पंजा पार्टी,फूल छाप और बिना पार्टी वाले बागियों ने तरह तरह की कोशिशें की। कभी कोई भारी दिखा तो कभी कोई। चौदह दिनों की इस महाभारत में हर दिन नई चकल्लस चलती रही।

नहीं चल पाया जय परशुराम का समीकरण

शहर का चुनाव जिले में सबसे नीरस चुनाव बना रहा। झूमरु दादा का टिकट काटने के बाद पंजा पार्टी ने बहुरानी को मैदान में उतारकर शहर में जय परशुराम का नारा बुलन्द करने की कोशिश की थी। पंजा पार्टी के गणितज्ञों को लगा था कि जय परशुराम का नारा जोर पकड लेगा,लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। मैदान मारने के लिए नया दांव, दादा को लाकर खेलने की कोशिश की भी गई। दिग्गी ने दादा को समझाया तब जाकर दादा मैदान में उतरने को राजी हुए। लेकिन अब रतलामी बन्दों के लिए दादा महज मनोरंजन की चीज बन चुके है। डिनर करने के बाद पान खाने के लिए घर से निकले लोग मनोरंजन की तलाश में दादा की नौटंकी सुनने को पंहुचे तो सही,लेकिन सिर्फ मनोरंजन करके लौट आए। पंजा पार्टी ने सबसे शर्मनाक हार दिलाने वाले फ्लाप फिल्मी हीरो से लेकर छुटभैय्यों तक को प्रदेश के पद बांटे कि कहीं कोई गर्मी पैदा हो सके,लेकिन बुझे हुए अंगारों से आग नहीं निकलना थी,तो नहीं निकली।
दूसरी तरफ भैयाजी का मैनेजमेन्ट तो चला,लेकिन उनकी गाडी भी एकाध बार पटरी से उतरती दिखाई दी। मैनेजमेन्ट के माहिर खिलाडियों ने वक्त रहते गाडी को फिर से पटरी पकडा दी।

फूल छाप को भारी पडे मामा भांजे

ग्रामीण सीट पर फूल छाप पार्टी को मामा भांजे की जोडी जोर कराती रही। इधर पंजा पार्टी ने प्रत्याशी बदला और जमीन से जुडे बन्दे को टिकट थमा कर फूल छाप को तगडा झटका दे दिया। मामा भांजे की जोडी के चक्कर में फूल छाप की स्थिति बिगडती सम्हलती रही। लेकिन शाखा वालों ने मैदान में कूद कर फूल छाप को तगडा सहारा दे दिया। शहर में पक्का मैनेजमेन्ट करने वाली फूल छाप का मैनेजमेन्ट ग्रामीण से नदारद ही दिखा। फूल छाप के एक भी बडे नेता की सभा तक नहीं करवाई गई।

बागियों के हाथ में हार जीत

नवाबी शहर जावरा की लडाई में पंजा पार्टी और फूल छाप दोनो की ही सांसे बागियों ने फूला रखी है। दोनो पार्टियों के लोग भगवान से प्रार्थना कर रहे है कि सामने वाली पार्टी का बागी दम भर जाए,ताकि उनकी नैया आसानी से पार हो सके। शुरुआती दौर में दोनो ही बागी दमदार नजर आ रहे थे,लेकिन वक्त गुजरते गुजरते उनकी स्थिति कमजोर होने लगी और आखिरकार मुकाबला पंजे और फूल का ही रह गया। अब गणित लगाने वालों का कहना है कि जिसका बागी दमदार होगा,उसका विरोधी मैदान मार जाएगा।

जय-वीरु की जोडी ने दिखाया दम

आलोट की सीट पर शुरुआत से भारी उलटफेर हुए। पंजा पार्टी के कद्दावर नेता गुड्डू को जय वीरु की जोडी ने इतना तबाह किया कि गुड्डू को पंजा छोडकर फूल का दामन थामना पड गया। गुड्डू के जाते ही लोगों को लगा कि बस अब आलोट में फूल छाप की बल्ले बल्ले हो गई। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। एससीएसटी एक्ट वाले मंत्री जी को एक्ट की नाराजगी से निपटने में तगडा पसीना बहाना पडा। दिल्ली वाले मंत्री जी ने मैदान में कई स्टार उतार दिए। मामा खुद भी आ गए. उधर पंजा पार्टी ने आलोट को अनाथ छोड दिया। ले देकर एक चुके हुए फिल्मी हीरो को भेजा। पंजा पार्टी नराजगी के सहारे है,तो फूल छाप कामों के भरोसे।

मामांचल में भी उलझी हुई कहानी

मामांचल सैलाना में शुरुआती दौर में पंजा पार्टी ने काफी दम भरा। फूल छाप वालों ने दूसरी पार्टी से लाए हुए मईडा जी को उतार कर मैदान में ताल ठोंकी। फूल छाप वाले झाबुआ वाले मामा जी के वोटों को खींचने की जुगाड में लगे है। फूल छाप की जोड बाकी लगाने वालों का कहना है कि मामा जी वाले वोट फूल छाप के पास आ गए,तो नैया पार हो जाएगी। उधर पंजा पार्टी के गुड्डू भैया अपने स्वर्गीय पिता जी के नाम और अपनी जमावट के सहारे टिके है। मैदान में मौजूद एक निर्दलीय ने भी अच्छा दम दिखाया है। यहां की कहानी भी उलझी हुई है,जोड बाकी करने वालों का हिसाब लगातार गडबडा रहा है।

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