एक साल में ही गुम हो गई लोकप्रियता
निगम चुनाव काउण्ट डाउन – 04 दिन शेष
इ खबरटुडे / 24 नवंबर
निर्वाचन जीत कर आए जनप्रतिनिधियों को लोकप्रिय माना जाता है। लोकप्रियता की वजह से ही वे चुनाव जीत पाते है। लेकिन लोकप्रियता कब तक टिकती है यह जनप्रतिनिधि के कृतित्व और व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। मीडीया वाले भी लोकप्रिय जनप्रतिनिधियों को जमकर प्रचार देते है। लोकप्रिय प्रतिनिधियों के फोटो इत्यादि छपने से अखबारों को भी फायदा मिलता है। इसके विपरित जब कोई नेता अलोकप्रिय हो जाता है तो उसके फोटो आदि छापने से अखबार को नुकसान होने का डर होता है। इसीलिए अखबार वाले अलोकप्रिय नेताओं के फोटो छापने से बचते है। अगर किसी नेता के फोटो अखबार वाले ना छापे और नेताजी अपना फोटो छपवाने की बीमारी से बुरी तरह ग्रस्त हो तो वे क्या करेंगे? वे अपने फोटो विज्ञापन के रुप में छपवा लेंगे। इस शहर का दर्द यह है कि उनका चयन शायद ठीक नहीं रहा। शहर के जनप्रतिनिधि ने एक साल से भी कम समय में अपनी लोकप्रियता गंवा दी है। शहर के जनप्रतिनिधि को धनराशि देकर अपने फोटो छपवाने पड रहे है। किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को पैसे देकर अपने फोटो छपवाने पडे हो,ऐसा शायद ये देशभर का पहला वाकया होगा। किसी चुनाव अभियान के दौरान पार्टियों द्वारा अपने प्रत्याशी के पक्ष में विज्ञापन देती है। लेकिन समाचारों के फोटो विज्ञापन के रुप में छापने जाने का यह पहला उदाहरण है। अखबार वालों ने भी फोटो पर बाकायदा एडीवीटी लिख कर यह साबित किया है कि यह विज्ञापन है। मजेदार तथ्य यह है कि चुनाव महापौर का है,लेकिन नेताजी अपने खुद के फोटो छपवाने में ही व्यस्त है।
बैनर पोस्टर वार
पहले के चुनावों में बैनर पोस्टर वार होता था,लेकिन यह वार (युध्द) कांग्रेस और भाजपा यानी कि प्रतिद्वंदी पार्टियों के बीच होता था। ये शायद पहला मौका है कि भाजपा के भीतर ही बैनर पोस्टर वार देखने को मिल रहा है। चुनाव के समन्वय की कोशिश करने वाले भाई साहब भी थक गए,लेकिन पोस्टर बैनर वार समाप्त नहीं हुआ। वार कितना तगडा है इसका अंदाजा तो भाजपा चुनाव कार्यालय के सामने ही लग जाता है। शहर के कई इलाकों में इस वार का असर नजर आता है।