mosque loud speaker: अदालतों के सुस्पष्ट आदेशों के बावजूद क्यों नहीं हटाए जाते मस्जिदों के लाउड स्पीकर…?
-तुषार कोठारी
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव द्वारा मस्जिदों में सुबह की अजान के लिए लाउड स्पीकर के उपयोग से होने वाली परेशानी का मामला उठाए जाने के बाद से मस्जिदों के लाउड स्पीकर फिर से चर्चाओं में है। इससे पहले भी कई लोग इस मुद्दे को उठाते रहे है। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि यह समस्या देश के प्रत्येक शहर में है और उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट आदेश के बावजूद मस्जिदों के लाउड स्पीकर हटाए क्यों नहीं जा रहे? सरकारों को किस बात का डर है? क्या वजह है कि सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना पिछले सौलह वर्षो से लगातार जारी है।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2005 में ही एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ध्वनि प्रदूषण के लिए विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए थे। उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश मेें निर्धारित मापदण्ड से अधिक स्तर के ध्वनि प्रदूषण को संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना है। संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन जीने के अधिकार से सम्बन्धित है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि तेज ध्वनि प्रदूषण व्यक्ति के जीवन जीने के अधिकार को बाधित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इसी आदेश में रात दस बजे से सुबह छ: बजे तक किसी भी स्थान पर और किसी भी स्थिति में लाउड स्पीकर के उपयोग को पूर्णत: प्रतिबन्धित किया है। रात दस बजे से सुबह छ: बजे तक के समय के अलावा भी लाउड स्पीकर या एम्प्लिफायर का उपयोग निर्धारित स्तर के भीतर ही किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि उक्त आदेश मस्जिदों पर लाउड स्पीकर के द्वारा की जाने वाली अजान पर भी लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इसी आदेश के द्वारा समस्त राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि इस आदेश का पालन किया जाए और यदि कोई इस आदेश का उल्लंघन करता है तो ऐसे लाउड स्पीकर इत्यादि को जब्त कर लिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को सौलह वर्ष गुजर चुके है। लेकिन देश की किसी भी राज्य सरकार ने इसका पालन नहीं किया। राजनीति परिप्रेक्ष्य में देखें तो कांग्र्रेस शासित राज्यों को तो इसका पालन करना ही नहीं था, लेकिन भाजपा शासित राज्य सरकारें भी इस आदेश को लागू करने से डरती रही। मध्यप्रदेश,गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों तक ने इस आदेश का पालन नहीं किया।
यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि केवल सुप्रीम कोर्ट ही नहीं अलग अलग राज्यों के उच्च न्यायालयों ने भी इसी तरह के कई फैसले किए है। ताजे उदाहरण इलाहाबाद उच्च न्यायालय और कर्नाटक उच्च न्यायालय के है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले ही वर्ष सन 2020 में एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए मस्जिदों से लाउड स्पीकर हटाने केआदेश दिए थे। कर्नाटक हाईकोर्ट ने जनवरी 2021 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह राज्य की पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस सम्बन्ध में कार्यवाही करने के आदेश प्रदान करें और जहां कहीं इस आदेश का उल्लंघन होता पाया जाए वहां लाउड स्पीकर इत्यादि को जब्त करने की कार्यवाही की जाए।
इतना ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक मामले में यह भी स्पष्ट किया जा चुका है कि अजान इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है,और वैसे भी इस्लाम के प्रारंभ से मस्जिदों से अजान तो दी जाती थी,लेकिन इस जमाने में ना तो बिजली थी और ना ही लाउड स्पीकर,इसलिए अजान इनके बगैर ही दी जाती थी। इसलिए लाउड स्पीकर से अजान देना ना तो अनिवार्य है और ना उचित।
अब प्रश्न यही है कि उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के सुस्पष्ट निर्णयों के बावजूद सरकारों को यह फैसला लागू करने में डर किस बात का है। दूसरी ओर यह एक कडवी सच्चाई है कि देश के हर शहर का हर गैर मुस्लिम सुबह सवेरे अजान की तेज आवाज सुनने के लिए बाध्य है। मस्जिदों से होने वाली सुबह की अजान मुस्लिम धर्मावलम्बियों के लिए उपयोगी हो सकती है,लेकिन उनके अलावा गहरी नींंद में सो रहे हजारों लाखों लोगों के लिए यह किसी अभिशाप की तरह है। कहने को तो अजान महज कुछ मिनटों की होती है लेकिन शहर की तमाम मस्जिदें एक के बाद एक करके अजान देती है,जिससे इसका समय बहुत बढ जाता है और चारों ओर से गूंजती ये तेज आवाजें हर किसी की सुबह खराब करने में सक्षम है।
इलाहाबाद विवि की कुलपति द्वारा प्रयागराज के जिलाधीश को लिखे पत्र ने इस मामले को फिर से चर्चाओं में ला दिया है। उम्मीद की जाए कि देश के विभिन्न राज्यों का सरकारें अपना अपना डर छोड कर उच्चतम न्यायालय के आदेशों का पालन करेगी ताकि लाखों लाख भारतीयों को सुबह सवेरे चैन की नींद हासिल हो सके। राज्य सरकारों को अपने इस डर से अब उबर जाना चाहिए कि मस्जिदों के लाउड स्पीकर हटा दिए जाने से वोट बैैंक को नुकसान पंहुचेगा या मुस्लिम समुदाय नाराज हो जाएगा।
इस बात को समझना भी जरुरी है कि अदालतों के आदेश का पालन करवाने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। सर्वोच्च न्यायालय के सुस्पष्ट आदेश होने के बावजूद सरकारों की इच्छा शक्ति नहीं होने के कारण ही आदेश का पालन नहीं हो पा रहा है। ऐसे कई उदाहरण मौजूद है,जिनमें किसी व्यक्ति ने अपने शहर के स्थानीय प्रशासन के सामने अदालती आदेश का हवाला देते हुए मस्जिदों के लाउड स्पीकर हटाने की मांग की,लेकिन स्थानीय स्तर पर कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक ऐसे आवेदनों पर कार्यवाही करने की बजाय सिर्फ टालमटोल करते रहते है। जब तक राज्य सरकार की ओर से प्रशासनिक अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश नहीं दिए जाते,सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की अïवमानना होती रहेगी।