May 17, 2024

Election Round-up : रतलाम जिला -पांच विधानसभा सीटों में चार पर बागियों की वजह से कांग्रेस को खतरा,जानिए पिछले दो चुनावो में कैसे थे परिणाम और इस बार का परिदृश्य

रतलाम,16 नवंबर (इ खबरटुडे )। जिले की कुल पांच विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रचार थम चूका है और अब मतदान में कुछ ही घंटे बाकी है। आखरी समय में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों के प्रत्याशी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैैं। हांलाकि जिले की पांच में से चार सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबलें की तस्वीर उभर कर सामने आई है और इन चारों ही सीटों पर तीसरे यानी बागी प्रत्याशी की मौजूदगी कांग्रेस के लिए खतरा बनती नजर आ रही है। जिले की पांच विधानसभा सीटों में से रतलाम और जावरा दो सामान्य सीटें है,जबकि सैलाना और रतलाम ग्रामीण सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैैं,वहीं आलोट विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।

जिले के कुल पांच विधानसभा सीटों पर वैसे तो कुल चालीस प्रत्याशी मैदान में भाग्य आजमाने के लिए उतरे है,लेकिन इनमें से भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के अलावा इक्के दुक्के ही ऐसे है जो अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सक्षम है। अन्य पार्टियों की बात की जाए तो बहुजन समाजपार्टी ने पांंचों सीटों पर प्रत्याशी उतारे है,लेकिन उनका यहां कोई असर नहीं है। इसी तरह समाजवादी पार्टी ने भी रतलाम सिटी में अपनी प्रत्याशी को उतारा है,लेकिन वह भी महत्वहीन है। जिले में कुल 11 लाख एक हजार सात सौ इकतालिस मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमें महिला मतदाताओं की संख्या 550894 है,जबकि पुरुष मतदाता550811 है। जिले में सर्वाधिक मतदाता जावरा सीट पर है। जबकि रतलाम सिटी,सैलाना और जावरा ऐसी विधानसभा सीटें है जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है।

रतलाम सिटी में कुल 217073 मतदाता है। इनमें महिला मतदाताओं की संख्या 109254 है,जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 107814 है। रतलाम सिटी विधानसभा सीट पर यूं तो कुल 8 प्रत्याशी मैदान में है और इनमें सपा और बसपा के प्रत्याशी भी शामिल है। लेकिन यहां मुख्य मुकाबला भाजपा के वर्तमान विधायक चैतन्य काश्यप और कांग्रेस के पारस सकलेचा के बीच है। रतलाम सिटी को आमतौर पर भाजपा का गढ माना जाता रहा है। पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी यहां से कई बार विधायक का चुनाव जीते है। पिछले दो कार्यकाल से चैतन्य काश्यप यहां जीत रहे है। रतलाम सिटी सीट को भाजपा की सबसे मजबूत सीटों में से एक माना जा रहा है,जहां भाजपा की जीत को तय माना जा रहा है।

पिछले दो विधानसभा चुनावों के आंकडों पर नजर डाली जाए तो चैतन्य काश्यप ने पहली बार 2013 में अपनी निकटतम कांग्र्रेस प्रत्याशी अदिती दवेसर को 40 हजार से अधिक मतों से हराया था और चुनाव में खडे अन्य 12 निर्दलीय प्रत्याशियों के साथ कांग्रेस प्रत्याशी की भी जमानत जब्त हो गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2018 में चैतन्य काश्यप ने अपनी स्थिति को और मजबूत करते हुए कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमलता दवे को 43 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। इस बार कांग्रेस ने पारस सकलेचा को प्रत्याशी बनाया है।

पारस सकलेचा ने वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव मेें निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में तत्कालीन गृहमंत्री हिम्मत कोठारी को करीब तीस हजार मतों से पराजित किया था और इसी वजह से वे चर्चाओं में आ गए थे। लेकिन बाद में हिम्मत कोठारी की चुनाव याचिका पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने सकलेचा का चुनाव निरस्त कर दिया था। पारस सकलेचा पर आरोप था कि उन्होने आधारहीन झूठे आरोप लगाकर चुनाव में जीत हासिल की थी। उच्च न्यायालय ने इन आरोपों को सही माना और पारस सकलेचा की विधायकी चली गई थी। यही वजह है कि रतलाम में पारस सकलेचा की छबि एक झूठे राजनेता की है,जो आधारहीन मनगढन्त आरोपों की राजनीति करते है।

दूसरी तरफ विधायक चैतन्य काश्यप की छबि विकास पुरुष की है। उनके पिछले दो कार्यकाल में रतलाम में कई विकास कार्य हुए। जिनमें मेडीकल कालेज,नमकीन क्लस्टर जैसी कई उपलब्धियां शामिल है। यहां चुनाव का मुख्य मुद्दा विकास का ही है।

जिले की दूसरी सामान्य सीट जावरा में रोचक मुकाबला हो रहा है। यहां से वर्तमान विधायक डा. राजेन्द्र पाण्डेय फिर से भाजपा प्रत्याशी है,जबकि कांग्रेस ने आलोट निवासी वीरेन्द्र सिंह सोलंकी को अपना प्रत्याशी बनाया है। जावरा में पिछले तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा के डा. राजेन्द्र पाण्डेय ही जीतते रहे है और इस बार वे चौथी बार मैदान में उतरे हैैं। दूसरी ओर कांग्रेस ने पहले हिम्मत सिंह श्रीमाल को अपना प्रत्याशी घोषित किया था और बाद में बदलकर वीरेन्द्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया।

कांग्रेस में घोषणा के बाद टिकट परिवर्तन किए जाने से असंतोष फैला हुआ है। दूसरी ओर करणी सेना के नेता जीवनसिंह शेरपुर भी निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मैदान में है। जीवन सिंह ने भी कांग्रेस से टिकट की मांग की थी,लेकिन टिकट नहीं मिलने पर वे निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में आ गए। कांग्रेस प्रत्याशी के बाहरी होने का मुद्दा भी कांग्रेस के लिए परेशानी पैदा करने वाला है,साथ ही कांग्रेस के स्थानीय संगठन में वीरेन्द्र सिंह की स्वीकार्यता नहीं होने से कांग्रेस के लिए दिक्कतें बढ सकती है।

जावरा विधानसभा सीट पर पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास महेन्द्र सिंह कालूखेडा विधायक चुने जाते रहे है। जावरा विधानसभा क्षेत्र को सिंधिया समर्थकों का गढ माना जाता रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोडकर भाजपा में चले जाने से जावरा कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण नेता अब भाजपा में जा चुके है। इस वजह से भी यहां कांग्रेस कमजोर हो रही है। करणी सेना के जीवन सिंह शेरपुर के मैदान में होने से क्षेत्र में खासा असर रखने वाले राजपूत वोटों में विभाजन की स्थिति बन रही है। इससे भी कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो सकती है।

चुनाव में विकास का मुद्दा होने के साथ साथ कांग्रेस में बाहरी उम्मीदवार होने का मुद्दा भी उठाया जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी डा. पाण्डेय अपने कार्यकाल के विकास कार्यो की गिनती करवा कर प्रचार में जुटे है। पिछले चुनाव में भाजपा के एक बागी प्रत्याशी की उपस्थिति ने डा. पाण्डेय की जीत के अंतर को बेहद कम कर दिया था,लेकिन इस बार भाजपा में कोई बागी नहीं है। इसका फायदा भी भाजपा को मिलता हुआ दिख रहा है।

पिछले दो चुनावों के आंकडें देखें तो 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के डा. राजेन्द्र पाण्डेय ने कांग्रेस के मो.युसूफ कडपा पर 29 हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज की थी,लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2018 में उन्होने कांग्रेस के प्रत्याशी केके सिंह कालूखेडा को मात्र 511 मतों से पराजित किया था। उस चुनाव में भाजपा के एक बागी श्यामबिहारी ने लगभग 23 हजार मत हासिल किए थे। लेकिन इस बार केके सिंह कालूखेडा कांग्रेस छोडकर भाजपा में आ चुके है और भाजपा का कोई बागी मैदान में नहीं है।

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रतलाम ग्रामीण सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा की ओर से पूर्व विधायक मथुरालाल डामर प्रत्याशी है,तो कांग्रेस ने जनपद पंचायत के पूर्व सीईओ लक्ष्मण सिंह डिण्डौर को अपना प्रत्याशी बनाया है। जयस की ओर से डा. अभय ओहरी निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मैदान में है। इस सीट पर कुल पांच प्रत्याशी है लेकिन मुख्य मुकाबला त्रिकोणीय है।

रतलाम ग्रामीण में कुल मतदाता 213753 है जिनमें 106954 पुरुष और 106786 महिला मतदाता है। रतलाम ग्रामीण सीट पर कांग्रेस द्वारा पूर्व जनपद पंचायत सीईओ को प्रत्याशी बनाए जाने से स्थानीय नेता बेहद नाराज है और प्रत्याशी की घोषणा होने के बाद नाराज नेताओं ने प्रत्याशी के पुतले भी जलाए थे। कांग्रेस में टिकट वितरण से उपजा असंतोष अबी भी शान्त नहीं हुआ है। इसके अलावा जयस प्रत्याशी की मौजूदगी भी कांग्रेस के लिए परेशानियां खडी कर रही है।

भाजपा ने पिछले विधायक दिलीप मकवाना का टिकट काटकर पूर्व विधायक मथुरालाल को टिकट दिया है,इस वजह से दिलीप मकवाना के प्रति उपजी नाराजगी या एन्टी इंकंबंसी को थाम लिया है। रतलाम ग्रामीण सीट पर भाजपा का संगठन मजबूत है जबकि कांग्रेस में बिखराव की स्थिति बनी हुई है।

पिछले दो विधानसभा चुनाव के आंकडें देखें तो वर्ष 2013 में इस सीट पर कुल चार प्रत्याशी मैदान में थे और भाजपा के मथुरालाल डामर ने कांग्रेस की लक्ष्मीदेवी खराडी को 26926 वोटों से हराया था। वर्ष 2018 में भाजपा ने मथुरालाल का टिकट काट कर दिलीप मकवाना को टिकट दिया था और दिलीप मकवाना ने कांग्रेस के थावर लाल भूरिया को 5605 वोटों से हराया था।

सैलाना जिले की दूसरी सीट है जो कि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यहां कांग्रेस के हर्षविजय गेहलोत विधायक है। भाजपा ने उनके सामने पूर्व विधायक संगीता चारेल को टिकट दिया है। सैलाना सीट ऐसी सीट है जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। यहां कुल 210430 मतदाता है जिनमें पुरुषों की संख्या 104115 है,जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 106315 है। यहां भाजपा कांग्रेस के अलावा 8 प्रत्याशी और मैदान में है। इस प्रकार कुल दस प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैैं। इनमें जदयू बसपा जैसी पार्टियों के प्रत्याशी भी है,लेकिन मुकाबले को त्रिकोणीय मुकाबला जयस संस्थापक कमलेश्वर डोडीयार ने बनाया है।

सैलाना क्षेत्र में जयस का खासा प्रभाव है। पिछले जिला पंचायत चुनाव में सैलाना विधानसभा क्षेत्र के चार वार्डोँ में जयस के प्रत्याशियों ने भाजपा और कांग्रेस दोनो को बुरी तरह पराजित किया था। जयस संस्थापक कमलेश्वर डोडीयार का आदिवासी युवाओं में जबर्दस्त प्रभाव है। जयस प्रत्याशी की मौजूदगी कांग्रेस के लिए बडा खतरा मानी जा रही है। दूसरी ओर भाजपा को अपने संगठन तंत्र पर भरोसा है।

सैलाना क्षेत्र में जयस जहां आदिवासियों के सम्मान को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाना चाहता है,तो भाजपा प्रदेश के विकास को मुद्दा बनाकर चुनाव लड रही है। कांग्रेस प्रत्याशी हर्षविजय गेहलोत अपने पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों के दम पर मैदान में उतरे हैैं।

पिछले दो चुनावों के आंकडों को देखें तो वर्ष 2013 में यहां कुल सात उम्मीदवार मैदान में थे। 2013 में भाजपा की संगीता चारेल ने कांग्रेस के हर्षविजय गेहलोत को 2079 वोटों से चुनाव हराया था। जबकि वर्ष 2018 में कांग्रेस के हर्षविजय ने अपनी हार का बदला भाजपा के नारायण मईडा से लिया था और उन्होने 28498 मतों की जबर्दस्त जीत हासिल की थी।

जिले की आलोट सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां कांग्रेस ने विधायक मनोज चावला को दोबारा मैदान में उतारा है,तो भाजपा ने पूर्व सांसद डा. चिंतामणि मालवीय पर दांव लगाया है। कांग्रेस के बडे नेता रहे पूर्व सांसद और पूर्व विधायक प्रेमचन्द गुड्डू यहां निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मैदान में है और यही कांग्रेस के लिए बडा खतरा है। आलोट में कुल नौ प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैैं। आलोट में मतदाताओं की संख्या 222784 है,जिनमें 113114 पुरुष और 109661 महिला मतदाता है।

आलोट का चुनावी परिदृश्य कुछ ऐसा है कि कांग्रेस के लिए परेशानियां बढ रही है। विधायक मनोज चावला के कार्यकाल को लेकर आम मतदाताओं में नाराजगी है। इसके अलावा पूर्व सांसद प्रेमचन्द गुडु के मैदान में होने से कांग्रेस में दो फाड जैसी हालत हो गई है। प्रमचन्द गुड्डू पूर्व में एक बार आलोट से विधायक रह चुके है,इसलिए क्षेत्र में उनके पुराने सम्पर्क है। बगावत को थामने में कांग्रेस पूरी तरह असफल रही,लेकिन भाजपा अपने बागी उम्मीदवार रमेश मालवीय को समझाने में कामयाब रही और रमेश मालवीय ने अपना नाम वापस ले लिया। ऐसी स्थिति में यह आकलन भी किया जा रहा है कि कांग्रेस यहां तीसरे नम्बर पर जा सकती है। कांग्रेस के एक और नेता पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष प्रहलाद वर्मा भी निर्दलीय प्रत्याशी के रुप मे मैदान में है। उनकी मौजूदगी भी आखिरकार कांग्रेस के लिए ही दिक्कतें पैदा करने वाली है।

पिछले दो चुनावों को देखें तो वर्ष 2013 में यहां भाजपा के जीतेन्द्र गेहलोत ने कांग्रेस  के अजीत प्रेमचन्द गुड्डू को 7973 मतों से पराजित किया था। लेकिन वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा के जीतेन्द्र गेहलोत कांग्रेस  के मनोज चावला से 5448 मतों से पराजित हो गए थे। 

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