May 19, 2024

Raag Ratlami Delisting डिलिस्टींग के लिए जबर्दस्त रैली निकालकर वनवासियों ने दिखाया दम, तो कुछ नेताओं का निकला “दम”

तुषार कोठारी

रतलाम। पूरे देश में यह पहला मौका था,जब मतांतरण के विरोध और अपने अधिकारों के लिए वनवासियों ने हर जिले में जबर्दस्त प्रदर्शन किया। देश में अब तक धर्मान्तरण करने वाले वनवासी दोहरा फायदा उठा रहे है। चंद रुपयों के लालच में अपने पुरखों का धर्म छोडकर वे विदेशी धर्म अपनाते है,लेकिन वनवासियों को मिलने वाली सुविधाएं छोडने को तैयार नहीं है। जब किसी सरकारी योजना या आरक्षण का लाभ लेना हो तो वे वनवासी बन जाते है,और जब झांकीबाजी करना हो तो खुद को इंगलिस्तान से आया हुआ विदेशी समझने लगते है। इसकी वजह से अपने पुरखों का धर्म निभा रहे वास्तविक वनवासी अपने अधिकारों से वंचित रह जाते थे। जिन योजनाओं का लाभ उन्हे मिलना चाहिए उसका लाभ धर्मान्तरित हो चुके लोग ले उडते थे। सरकारें भी अपने वोट के लालच में इस पर रोक लगाने को तैयार नहीं थी। लेकिन अब वनवासी समाज जागरुक हो गया है। जिले भर से आए वनवासियों ने शहर के तमाम प्रमुख मार्गों से रैली निकालकर अपना सन्देश हर खास और आम तक पंहुचा दिया है कि वे अब इस अन्याय को और बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है।

जिले के वनवासियों ने भी रविवार को अपना शक्ति प्रदर्शन किया। जिले के तमाम वनवासी अंचलों से आए वनवासियों ने टंट्या मामा और बिरसा मुण्डा जैसे नायकों को याद करते हुए इस अन्याय के खिलाफ लडने का संकल्प जताया। कालेज के मैदान पर चिलचिलाती धूप और लू के थपेडे भी उनके संकल्प को कमजोर नहीं कर पाई। कालेज मैदान से निकली उनकी रैली शहर में जहां जहां से निकली लोग अभिभूत हो गए। कई जगहों पर स्वागत मंच सजा कर उनका स्वागत किया गया।

शहरों में वनवासियों की रैली निकलने से शहरी लोगों को भी समझ में आया कि अब वनवासी समाज में जागरुकता आने लगी है और वे अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लडने के लिए संगठित होने लगे है। वनवासियों की ये जागरुकता आने वाले दिनों में देश की धर्मान्तरण जैसी बडी समस्या का समाधान करने में पूरी तरह सक्षम साबित होगी।

फुल फार्म में “बडे साहब

जिला इंतजामिया के “बडे साहब” इन दिनों जबर्दस्त फार्म में चल रहे है। इंतजामिया के तमाम मातहत अफसर और दफ्तरी कारकून परेशान और डरे हुए है। “बडे साहब” की मीटींग हो और दो चार अफसरों को फटकार ना लगे तो मीटींग पूरी नहीं होती।

शहर सरकार की जिम्मेदारी भी इन दिनों बडे साहब के पास है। शहर सरकार के कारिन्दों को चुस्ती फुर्ती से काम करने की आदत कभी नहीं रही। शहर सरकार के कारिन्दे को बरसों से कामों को लटकाने अटकाने की आदतें लगी हुई है। शहर सरकार के कारिन्दे अपने ढीले ढाले रवैये के लिए पूरे सूबे में मशहूर रहे हैैं। इसका पूरा फायदा शहर सरकार के काम करने वाले ठेकेदार उठाते रहे है। सड़क नाली के कामों के ठेके लेने के बाद ठेकेदार कछुए की गति से काम किया करते थे। उनके कामों पर नजर रखने वाले इंजीनियरों को ठेकेदार अपनी सेवा पूजा से खुश रखा करते थे और इसके एवज में इंजीनियर उनके कामों को नजर अंदाज कर दिया करते थे।

लेकिन इस बार सबकुछ उलटा पुलटा हो गया। “बडे साहब” ने अचानक से छुट्टी वाले दिन शहर सरकार के कामों की समीक्षा का हुक्म दनदना दिया। “बडे साहब” ने जैसे ही कामों का हिसाब लेना शुरु किया,शहर सरकार की सच्चाईयां सामने आने लगी। “बडे साहब” को पता चला कि ठेकेदारों ने ठेके लेने के बाद काम ठीक से नहीं किए है। कामों को बेवजह लटकाया और टाला जा रहा है।

बस फिर क्या था? “बडे साहब” ने अपना फुल फार्म दिखाना शुरु कर दिया। “बडे साहब” की समीक्षा की गाज सीधे उन ठेकेदारों पर गिरी जो बरसों से शहर सरकार पर छाये हुए थे। एक ठेकेदार फर्म को तो सीधे पांच सालों के लिए ब्लैक लिस्ट कर दिया गया। अब ये ठेकेदार किसी भी विभाग का कोई सरकारी काम नहीं ले पाएगा। दूसरे ठेकेदार पर बडे साहब ने सीधे एक लाख की पैनल्टी जड दी। “बडे साहब” यहीं नहीं रुके उन्होने इंजीनियरों को भी सीधे चेतावनी दे दी कि अगर उन्होने अपना रवैया नहीं बदला और जनता के कामों में ढील पोल जारी रखी तो उन्हे भारी खामियाजा भुगतना पडेगा।

शहर सरकार के इतिहास में इस तरह के कडे फैसले इससे पहले कभी देखने को नहीं मिले थे। साहब की मीटींग से निकले अफसर हैरान है कि ये सख्ती कब तक चलेगी। उन्हे अपनी आदतें बदलता बेहद कठिन लगता है। लेकिन कडी कार्रवाई के डर से तौर तरीके बदलना भी जरुरी है।

“बडे साहब” के कडे रवैये से जहां मातहत अफसरों और ठेकेदारों में हडकम्ंप मचा हुआ है,वहीं आम लोग खुश है। उन्हे उम्मीद है कि बडे साहब की कडी कार्रवाई का असर जल्दी ही देखने को मिलेगा और समस्याओं का निराकरण जल्दी हो सकेगा।

नेताओं का निकला “दम

वनवासियों के बडे आयोजन के लिए फूल छाप पार्टी के नेताओं को कई सारी जिम्मेदारियां बांटी गई थी। फूलछाप पार्टी के के वनवासी कोटे के एकमात्र “माननीय” को बसों की जिम्मेदारी दी गई थी। वनवासियों के लिए उनके गांवों में बसें उपलब्ध कराई जाना थी,जिससे कि वे प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आ सके। कुछ अन्य संस्थाओं को अन्य जिम्मेदारियां दी गई थी। किसी संस्था को मैदान की व्यवस्था सम्हालना थी,तो किसी को यातायात की। व्यवस्थाओं से जुडे एक सज्जन का कहना था कि “माननीय” ने बसों की जगह मैजिक लगा दी। इसी का असर था कि संख्या आधी से भी कम रह गई। चर्चाएं तो ये भी होती रही कि आयोजन के लिए एकत्रित की गई सहयोग राशि का भी बडा हिस्सा नेताजी के हिस्से में चला गया। इन्ही बातों का असर था कि रैली शुरु होने के कुछ देर पहले तक तो मैदान खाली पडा था और आयोजकों को घबराहट भी होने लगी थी,लेकिन गनीमत थी कि वक्त गुजरने के साथ वनवासी बन्धु आते गए और आखिरकार आयोजन सफल हो गया।

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