Raag Ratlami Sailana Candidate : सामने आया सैलाना का सीन,अब भी उलझन में बची है तीन / चुनावी चकल्लस से पहले बहेगी धर्मगंगा….
-तुषार कोठारी
रतलाम। राग रतलामी का अगला एपिसोड आने तक हो सकता है कि सूबे में चुनावी संग्र्राम की तारीखे सामने आ जाएगी। लेकिन इससे पहले ही सैलाना का सीन सामने आ चुका है। फूल छाप ने सैलाना में पुरानी वाली मैडम को मैदान में उतारने की घोषणा कर दी है और इसी के साथ सैलाना के चुनावी अखाडे का सारा सीन क्लीयर हो गया है। पंजा पार्टी की तरफ से तो गुड्डू भैया का प्रत्याशी होना लगभग तय है। पिछली बार अपनी ताकत दिखा चुके जय जोहार वाले (जयस) वाले नेताजी ने भी अखाडे में उतरने की घोषणा कर दी है। तो जिले में अब तीन सीटें ऐसी बची है जिनकी तस्वीर अभी धुंधली है। जावरा आलोट और रतलाम का देहाती इलाका। रतलाम शहर का आधा सीन क्लीयर है। फूल छाप की तरफ से भैयाजी का मैदान में होना तय माना जा रहा है। पंजा पार्टी किस पर दांव लगाएगी? ये तय नहीं है।
सैलाना में फूल छाप की ओर से मैडम जी के मैदान में आने की घोषणा के साथ ही जोड बाकी गुणा भाग चालू हो गए है। जय जोहार वालों की मौजूदगी जोड बाकी करने वालो के गणित को उलझा रही है। जय जोहार वालों की तरफ से ताल ठोक रहे युवा नेता की टेढी चालें भी लोगों की समझ से बाहर है। कुछ ही दिन हुए जब ये नेताजी दुष्कर्म के केस में उलझे थे। जिला इंतजामिया भी नेताजी के खिलाफ था,इसलिए नेताजी के खिलाफ कई सारे केस लगे हुए है। अभी कुछ ही दिन गुजरे है जब जय जोहार वाले नेताजी ने घोषणा की थी कि वो अब कभी भी चुनाव नहीं लडेंगे। नेताजी की इस घोषणा को लोग सही मानते उससे पहले ही नेताजी ने खुद को सैलाना का प्रत्याशी घोषित करवा लिया। कयास ये थे कि जिले की पंचायत में दमदार जीत दिखाने के बाद जय जोहार वालों में जमकर खींचतान मची हुई थी और फूट पड गई थी। लेकिन अब चुनाव में उतरे नेताजी दावा कर रहे है कि कोई फूट नहीं है। हर कोई नेताजी के पक्ष में है।
चर्चाएं ये भी चली थी कि जय जोहार वाले नेताजी का फूल छाप वालों से गुपचुप पैक्ट हो गया है। एक गणित ये लगाया जा रहा था कि जय जोहार वालों की मौजूदगी पंजा पार्टी के लिए नुकसान दायक रहेगी,इसलिए पंजा पार्टी गुप चुप तरीके से जय जोहार वालों की मदद करने को तैयार हो रही थी। लेकिन हाल के दिनों में जय जोहार वाले नेताजी फूल छाप वाली मैडम के खिलाफ कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गए है। ये देखकर लगता है कि फूल छाप और जय जोहार वालों में कोई समझौता हुआ भी था तो वह टूट गया है।
तो ऐसी स्थिति में अब सैलाना का मामला बेहद जटिल होता दिख रहा है। ये हर कोई मान रहा है कि जय जोहार वाले बीस तीस हजार वोटों को उलटने पलटने में सक्षम है। अब ये किसे कितना नुकसान पंहुचाएंगे इसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है। पहले जय जोहार वालो को सिर्फ वोट काटू माना जा रहा था,लेकिन अब ये भी हो सकता है कि इनकी हैसियत वोट काटू से आगे बढ जाए।
उलझन वाली तीन सीटें…
सैलाना का सीन क्लीयर होने के बाद अब जावरा आलोट और रतलाम ग्र्रामीण ऐसी सीटें बची है,जहां का परिदृश्य पूरी तरह धुंंधला है। पंजा पार्टी और फूल छाप दोनो के ही दावेदारों को लेकर अटकलबाजी जारी है। इन तीन में से रतलाम की देहात वाली सीट पर पंजा पार्टी की ओर से डाक्टर सा. का आना तय माना जा रहा है। डाक्टरी छोड कर सियासती मैदान में उतरे डाकसाब ने अजब दांव चला था। डाक्साब दोनो हाथों में लड्डू रखना चाह रहे थे। असल में डाक्साब की सियासी पहचान जय जोहार वालो के साथ रहकर बनी थी,लेकिन डाक्साब जय जोहार वालो को छोडकर दोनो पार्टियों से टिकट मांग रहे थे।
डाक्साब का कहना था कि जो पार्टी टिकट देगी,वो उसी के हो जाएंगे। अब कहा जा रहा है कि पंजा पार्टी ने उनकी बात मान ली है और पंजा पार्टी की पहली लिस्ट में उनका नाम आने वाला है। दूसरी तरफ फूल छाप वाले माडसाब से माननीय बने नेताजी फिर से मैदान में उतरेंगे या नहीं ये तय नहीं है। इसी तरह जावरा और आलोट का भी उलझा हुआ सीन है।
जी उठा घण्टाघर
सिर्फ रतलाम नहीं बल्कि ज्यादातर भारतीयो की आदत रही है कि वे अपनी विरासतों और धरोहरों को सहेजने में बेहद लापरवाह होते है और इसका नतीजा ये होता है कि हमारी पहचान बनने वाली ये धरोहरें इस लापरवाही के चलते बरबादी की कगार पर पंहुच जाती है। हमारे कई मन्दिर,महल और किले इसका उदाहरण है।
लेकिन अब ये दृश्य बदल रहा है और अपनी धरोहरों को सहेजने संभालने और निखारने की प्रवृत्ति धीरे धीरे बढ़ने लगी है। रतलाम राज्य का प्रतीक ऐतिहासिक घण्टाघर भी रतलामवासियों की इसी उदासीनता के चलते पूरी तरह बेनूर हो चुका था और अपनी आभा खो चुका था। लेकिन रतलाम का प्रतिनिधित्व कर रहे भैयाजी ने अपने प्रयासों से इसे ना सिर्फ पुनर्जीवन दिलाया बल्कि इसकी पुरानी चमक दमक भी फिर से लौट आई है। घण्टाघर अब जीवंत हो चुका है और इसे इस भव्य रुप में देखकर रतलामवासियों को भी गौरवानुभूति हो रही है कि हमारा घण्टाघर कितना शानदार है।
जैसी दुर्दशा पहले घण्टाघर की थी वही हाल पूरे राजमहल का है। शानौशौकत वाले रणजीत विलास पैलेस और तमाम राजमहल की हालत इतनी बुरी हो चुकी है कि पूरा दरबार हाल चमगादडों के कब्जे में है। जिस राजमहल को रतलाम का दर्शनीय स्थल होना चाहिए था,वह ढहने की कगार पर है। जो महकमा बडी बडी प्रापर्टियों के सौदों पर मोहर लगाता है,वही इसी ढहती इमारत से चल रहा है,लेकिन इस शानदार प्रापर्टी को सहेजने संवारने की आज तक कोई बात तक नहीं की गई है।
हांलाकि भैयाजी ने नव श्रृंगारित घण्टाघर के उद्घाटन के मौके पर राजमहल की शानोशौकत को भी वापस लाने की घोषणा की है। तो यह मान लिया जाना चाहिए कि आने वाले दिनों में रणजीत विलास पैलेस के दिन भी बदलेंगे और रतलाम के लोग बाहर से आने वाले अपने अतिथियों को अपनी ऐतिहासिक विरासत दिखा सकेंगे।
फिलहाल ये भी कोई कम बडी उपलब्धि नहीं है कि अब रतलाम को अपना वो प्रतीक मिल चुका है,जिसकी एक झलक से पूरे रतलाम की कल्पना सामने आ सकती है। रतलाम को अपना एक लोगो मिल चुका है । रतलाम को अपनी पहचान मिल गई है और पहचान मिलना एक बडी उपलब्धि है।
चुनावी चकल्लस से पहले धर्मगंगा…..
एकाध हफ्ते में चुनावी आचार संहिता लागू होने का अंदाजा है और उसके बाद हर कोई चुनावी चकल्लस में व्यस्त हो जाएगा। लेकिन इससे पहले का ये पूरा हफ्ता श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के लिए समर्पित रहेगा। प्रख्यात कथावाचिका के मधुर स्वरों में होने वाली आठ दिवसीय कथा के लिए तगडे इंतजाम किए जा रहे है। आठ दिनों तक धर्मालुजन धर्मगंगा में डुबकियां लगाएंग। तब तक सियासती दांव पेंच की बातें भूल कर धर्मचर्चा करेंगे।
इधर कथा का समापन होगा और उधर चुनावी संग्र्राम की रणभेरी बजेगी। भागवत कथा आयोजन से धर्मलाभ तो प्राप्त होता ही है,लौकिक जीवन में भी सफलताएं मिलती है। राजनीति का लाभ भी लौकिक सफलता का ही एक हिस्सा है। इसलिए अगर कथा का राजनीति में लाभ मिले तो किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए।