Raag Ratlami MLA Jail : “खाया पिया कुछ नहीं गिलास फोडी बारह आना” जैसी हालत हो गई सैलाना के माननीय की/ फूल छाप की जिले की टीम में जगह पाने के लिए नेताओं की दौडभाग जारी
-तुषार कोठारी
रतलाम। हफ्ते के आखरी दिन सैलाना वाले माननीय कृष्ण जन्मस्थान में चार दिन गुजार कर बाहर आ गए। पिछले हफ्ते की शुरुआत माननीय के बवाल मचाने से हुई थी और समापन उनके बाहर आने से। इस पूरे हफ्ते में माननीय के साथ उनके कई साथियों को भी जेल की मेहमाननवाजी का मजा लेना पडा। पूरी कहानी को इस कहावत से बयान किया जा सकता है कि “खाया पिया कुछ नहीं गिलास फोडी बारह आना”। माननीय के लिए पूरी उठापटक को इसी बात से समझा जा सकता है।
कहानी की शुरुआत अस्पताल से हुई थी,जहां रात के वक्त पंहुचे माननीय वहां मौजूद सफेद कोट वाले साहब से उलझ पडे। माननीय को खुद के माननीय होने का गुरुर था तो सफेद कोट वाले साहब को अपने सफेद कोट का। सफेद कोट वाले साहब अस्पताल में मरीजों का इलाज करने के लिए मौजूद थे,इसलिए उन्होने वहां पंहुचे माननीय से यही पूछा कि इलाज किसका करना है? दूसरी तरफ माननीय सफेद कोट वाले साहब का नाम पूछ रहे थे। बस इसी तरह की छोटी छोटी बातों को लेकर विवाद हो गया। सैलाना वाले माननीय ने इस पूरे वाकये का विडीयो भी बनाया और अगली सुबह इसे वायरल भी कर दिया। माननीय की मांग थी कि सफेद कोट वाले साहब को फौरन अस्पताल से दफा कर दिया जाए। इसके अलावा माननीय ने सफेद कोट वाले साहब के खिलाफ मामला भी दर्ज करवा दिया।
अब बारी सफेद कोट वालों की थी। सफेद कोट वाले भी फार्म में आ गए। सफेद कोट वालों के गर्म होने पर खाकी वर्दी वालों ने सैलाना वाले माननीय के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया। अब क्या था,पूरे सूबे के इकलौते निर्दलीय माननीय का पारा सातवें आसमान पर जा पंहुचा। उन्होने इंतजामिया को चेतावनी दी कि अगर सफेद कोट वाले साहब को फौरन नौकरी से दफा ना किया गया,तो माननीय अपने चेले चपाटों को लेकर सडक़ पर उतर जाएंगे। इतंजामिया को चेतावनी देते देते माननीय इतना गुस्सा हो गए कि उन्होने इंतजामिया के बडे साहब को जमकर भलाबुरा कहा।
बडे साहब के नाम पर हुई बदतमीजी से नाराज इंतजामिया ने माननीय को सडक़ पर उतरकर प्रदर्शन करने की इजाजत देने से इंकार कर दिया। इस इंकार ने भन्नाएं माननीय ने कानून तोडने की कोशिश की और इंतजामियां ने उन्हे सींखचों के पीछे पंहुचा दिया। माननीय को उम्मीद थी कि उन्हे मामूली मामले में सींखचों के पीछे भेजा जा रहा है,इसलिए उनकी छुïट्टी एकाध दिन में ही हो जाएगी। लेकिन इंतजामिया के इरादे कुछ और ही थे। इंतजामिया के अफसरों ने एक एक करके चार दिन गुजार दिए। सींखचों का इंतजाम करने वाले अफसरों का कहना था कि माननीय बाहर जाने के लिए पल पल इंतजार कर रहे है,लेकिन उनका इंतजार लम्बा होता जा रहा था। सभी का अंदाजा था कि माननीय का छुटकारा अब नए हफ्ते में ही हो पाएगा,लेकिन शायद इंतजामिया के अफसरों का इरादा बदल गया और माननीय को हफ्ते के आखरी दिन ही सींखचों से बाहर करवा दिया गया।
पूरे हफ्ते चली इस उठापटक में माननीय के हाथ क्या लगा? चार दिन सींखचों के पीछे रहना पडा। अपने कई सारे समर्थकों को लाकर प्रदर्शन करने के लिए ढेर सारी एनर्जी खर्च की। कई समर्थकों पर लाठियां चली। इतना सब कुछ हुआ लेकिन माननीय की जो मांग थी वो अब तक पूरी नहीं हुई। कितना अच्छा होता कि माननीय सफेद कोट वाले से भिडने की बजाय अस्पताल की बदइंतजामी को उजागर करते और बदइंतजामी को ठीक कराने के लिए जिला इंतजामिया को मजबूर करते। अगर वो ऐसा करते तो अस्पताल में आने वाले हजारों मरीजों का भला होता और वे माननीय को दुआएं देते। लेकिन एक सफेद कोट वाले से भिडने में उन्होने अपना इतना वक्त और ताकत जाया की। अब वे कह रहे है कि सूबे की पंचायत में इस मामले को उठाएंगे। उनकी उठापटक से क्या होगा? ज्यादा से ज्यादा सफेद कोट वाले साहब को यहां से हटाकर कहीं और भेज दिया जाएगा। इसी को कहते है “खाया पिया कुछ नहीं गिलास फोडी बारह आना”।
फूलछाप नेताओं की दौडभाग जारी
फूलछाप पार्टी में मण्डलों के नए मुखिया घोषित हो गए है। इनमेें से कई पुराने चेहरों को दोबारा मौका मिल गया है,तो कई नए चेहरे लाए गए हैैं। वैसे तो फूल छाप पार्टी में मण्डलों के मुखियाओं पर ही काम का सबसे ज्यादा लोड डाला जाता है। फूलछाप पार्टी हाईटेक तरीके से काम करती है और मण्डल मुखियाओं को अपनी सारी गतिविधियां पार्टी के मोबाइल एप पर साझा करना होती है। लेकिन जो मण्डल के लेवल से खुद को उपर मानते है,उनकी नजरें जिले के पदों पर टिकी है। मण्डल मुखियाओं के बाद अब जिले में नए चेहरों को लाने का काम किया जाएगा। जिले के मुखिया ने जब से काम काज सम्हाला है,उन्होने अपनी नई टीम नहीं बनाई है। मण्डल मुखियाओं की नियुक्ति के बाद अब फूल छाप वाले नेताओं को उम्मीद है कि जिले के मुखिया भी अपनी नई टीम बनाएंगे। नई टीम में जगह पाने के तमन्नाई नेताओं ने दौड भाग शुरु कर दी है। कोई जिले के मुखिया को पटाने में लगा है तो कोई भैया जी को मनाने में जुटा है। जिले के मुखिया है कि अपनी चुप्पी तोडने को राजी ही नहीं है। वे किसी को यह नहीं बता रहे है कि नई टीम कब बनाएंगे और टीम में किस किस को लेंगे। बहरहाल नई टीम में जगह पाने के लिए दौडभाग जारी है।
तैराकी भी खेल,लेकिन स्विमिंग पुल बन्द
शहर की पहचान बन चुके चेतना खेल मेले की तैयारियां बडे पैमाने पर शुरु हो गई है। खेल मेले में कई तरह के खेल खेले जाते है। तैराकी को भी खेल माना जाता है,लेकिन इस खेल की तैयारी रतलाम जैसे शहर में बेहद महंगा शौक साबित होती है। तैराकी का शौक पूरा करने के लिए बरसों पहले शहर में त्रिवेणी इकलौती जगह थी। फिर कुछ प्राइवेट स्विमिंग पुल चालू हुए,लेकिन ये सारे प्राइवेट स्विमिंग पुल काफी महंगे हैैं।
शहर के लोगों की बरसों की मांग सरकार ने कुछ सालों पहले पूरी की थी,जब करोडों की लागत से स्विमिंग पुल बनाया गया। शहर सरकार के लापरवाही भरे तौर तरीकों के चलते केवल छ: फीट गहरे इस स्विमिंग पुल में एक लडके की डूबने से मौत हो गई। फिर इस स्विमिंग पुल को बन्द कर दिया गया। काफी समय तक बन्द रहने के बाद फिर जब लोगों ने मांग की तो इसे जैसे तैसे चालू किया गया। फिर पहले की तरह लापरवाही हुई और फिर किसी की डूबने से मौत हो गई। अब पिछले लम्बे वक्त से यह स्विमिंग पुल बन्द पडा है। शहर सरकार के कर्ता धर्ताओं को इसे चालू करने की कोई इच्छा भी नजर नहीं आती। शहर के प्रथम नागरिक से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि शहर सरकार इसे चला नहीं सकती,क्योंकि जब शहर सरकार इसे चलाती है तो लोगों की मौत हो जाती है। इसीलिए इसे बन्द कर दिया गया है। ये तो गनीमत है कि प्रथम नागरिक का फार्मूला सडक़ों पर लागू नहीं किया जा रहा है,वरना सडक़ दुर्घटना में किसी की मौत हा जाती तो उस सडक़ को ही बन्द कर दिया जाता।
फिर उन्होने कहा कि प्राइवेट लोगों को इसे चलाने के लिए बुलाया जाता है,लेकिन कोई प्राइवेट व्यक्ति या संस्था इसे चलाने को राजी नहीं है। इसकी वजह साफ है कि शहर सरकार की साख इतनी खराब है कि कोई प्राइवेट व्यक्ति या संस्था शहर सरकार के साथ काम करने को राजी नहीं होता। कुल मिलाकर स्विमिंग पुल के शुरु होने के कोई आसार नहीं है। बडी बात ये भी है कि स्विमिंग पुल अगर लम्बे वक्त तक बन्द रहता है तो वह पूरी तरह बरबाद हो जाता है। कुल मिलाकर शहर सरकार के लोग करोडों की लागत से बनाए गए स्विमिंग पुल को बरबाद करने पर तूले है और जब ये पूरी तरह बरबाद हो जाएगा तो इसकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं होगा। शहर में खेल मेला तो होगा लेकिन तैराकी के खेल में वही शामिल हो सकेंगे जिनकी हैसियत महंगे स्विमिंग पुल में जाकर तैयारी करने की होगी।