Raag Ratlami Loud Speaker : गुजर गया पूरा साल,लेकिन कम नहीं हुई भोंगलों की आवाज,फर्जी मजारों का अतिक्रमण भी जस का तस/ फूलछाप के नेताओ में राहत का माहौल
-तुषार कोठारी
रतलाम। सूबे के नए मुखिया उज्जैनी भाई सा. ने कुर्सी सम्हालते ही दिन में पांच पांच बार चीखने वाले भोंगलों को जब्त करने और सरकारी जमीनों पर कब्जा करने के लिए बनाई गई फर्जी और नकली मजारों को हटाने का फरमान जारी किया था। फरमान जारी होने के बाद कुछ दिनों तक तो सरकारी अफसर कार्रïवाई करते नजर आए लेकिन कार्रवाई की नौटंकी कुछ ही दिनों में ठप्प हो गई। सूबे के मुखिया के फरमान को अब पूरा साल गुजर चुका है,लेकिन दिन में पांच बार चीखने वाले भोंगले बदस्तूर चीख रहे हैैं और कई की तो आवाज पहले से भी उंची हो गई है।
इंतजामिया के अफसरों ने सीएम के फरमान की हवा तो पहले ही निकाल दी थी। मुखिया ने अपने फरमान में साफ साफ कहा था कि पहले भोंगले लगाने वालों को समझाईश दी जाए और अगर वे ना मानें तो भोंगलों को जब्त कर लिया जाए। अफसरों ने समझाईश देने तक तो फरमाबरदारी की,लेकिन जब भोंगलों को जब्त करने का मौका आया,तो सब के सब पीछे हट गए। नतीजा ये हुआ कि एकाध हफ्ता ही फरमान का असर नजर आया,जब भोंगलों की आवाजें थोडी धीमी रही। एक हफ्ता गुजरते गुजरते तो मामला फिर पहले जैसा हो गया। सुबह सवेरे पांच साढे पांच बजे शहर के हर कोने से भोंगलों की कानफाडू चीखें सुनाई देने लगी।
वैसे तो सूबे के मुखिया,उज्जैनी भाई सा.ने अफसरों को बडे पुख्ता निर्देश दिए थे। निर्देश तो यहां तक थे कि हर थाने पर एक टीम बनाई जाएगी जो थाना क्षेत्र में हो रहे ध्वनि प्रदूषण के मामलों पर नजर रखेगी और निर्धारित स्तर से उंची आवाज में चीखते भोंगलों को जब्त करने की कार्यवाही करेगी। लेकिन अफसरों ने इस बात को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया। अफसरों ने ना तो थाना स्तर पर कोई टीम बनाई और ना भोंगलों को जब्त करने की कोई कार्रवाई ही की।
अब पूरा एक साल गुजर गया है। भोंगले पहले से भी उंची आवाज में चीख कर मुखिया के फरमान को मुंह चिढा रहे हैं। लेकिन नई खबर ये है कि अब तमाम अफसरों से साल भर में की गई कार्यवाही का ब्यौरा मांगा जा रहा है। राजधानी में बैठे अफसरों ने तमाम मातहतों से पूछा है कि उन्होने साल भर में भोंगलों को हटाने के मामले मेंक्या कार्यवाही की है उसकी जानकारी भेजें।
मुखिया के फरमान में सरकारी जमीनों पर कब्जा करने के लिए बनाई गई नकली और फर्जी मजारों की जांच करने को भी कहा गया था। अफसरों ने इस मामले में तो कुछ भी नहीं किया। रतलाम में एक मजार के अतिक्रमण को जरुर हटाया गया,लेकिन वह भी इसलिए हटाया गया क्योकि इंतजामिया को वहां से निकल रही सडक़ को चौडा करना था। हांलाकि इसे हटाने में भी इंतजामिया के अफसर बडा डर डर कर काम कर रहे थे। ये तो अच्छा हुआ कि अदलिया ने अतिक्रमण करने वालों को कोई राहत नहीं दी और इंतजामिया को अतिक्रमण हटाने का आदेश दे दिया,वरना डरेे हुए अफसर इस अतिक्रमण की ओर से भी आंखें मूंदने को तैयार बैठे थे।
अब सवाल ये है कि क्या जिला इंतजामिया के अफसर,साल भर गुजरने के बाद कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएंगे? शहर के बच्चे बूढे सब कोई सुबह सवेरे चीखने वाले भोंगलों से परेशान है। ये भोंगले एक नहीं दिन में पांच पांच बार कानफोडू तरीके से चीखते है। पढाई करने वाले विद्यार्थी और बुजुर्ग इस चीख पुकार से सबसे ज्यादा प्रभावित होते है। सुबह छ: बजे से पहले तो किसी भी हालत में भोंगले नहीं बजाए जा सकते। देश की सबसे बडी अदलिया इस तरह का आदेश कई बरस पहले दे चुकी है। इसके बाद सूबे के मुखिया ने भी फरमान जारी कर दिया है। देखना है कि जिला इंतजामिया के अफसर अब भी डरते ही रहेंगे या कोई ठोस नतीजा निकाल कर दिखा पाएंगे।
यही सवाल नकली मजारों के बारे में भी है। बेशकीमती सरकारी जमीनों पर नकली मजारें बना बना कर कब्जा किया गया है। कोई नहीं जानता कि इन नकली मजारों के नीचे कुत्ता है या बिल्ली या वो भी नहीं है? मजारें बनाने वालों ने धीरे धीरे करके मजारों के आसपास की लम्बी चौडी जमीनों को अपने कब्जे में ले लिया है। इधर मजारों का आकार बडा हो रहा है,उधर मजारें चलाने वालों के घरों की मंजिलें उंची होती जा रही है। कुछ नकली मजारों पर तो उर्स भी होने लगे है। अंधश्रद्धा के चलते लोग चढावा भी चढाने लगते है और मजार बनाने वाले की कमाई मेें लगातार इजाफा होता जाता है। शहर की इकलौती हवाई पïट्टी के नजदीक की एक मजार इसका बेहतरीन नमूना है। कोई नहीं जानता कि इसके नीचे क्या है। लेकिन पिछले कुछ सालों में इसका आकार दस गुना बढ चुका है और मजार बनाने वाले की बिल्डिंग भी उंची होती जा रही है। जिम्मेदार अफसरों की सुस्ती कब दूर होगी? कोई नहीं जानता….।
फूल छाप वालों को राहत
फूल छाप पार्टी में इन दिनों रायशुमारी का दौर चल रहा है। मण्डल का नेता बनने के इच्छुक नेता अपने अपने आकाओं को मनाने रिझाने में लगे है,ताकि मण्डल पर कब्जा कर सके। नेताओं को रायशुमारी पर भी ज्यादा भरोसा नहीं है। उन्हे लगता है कि रायशुमारी महज नौटंकी है। होगा वही जो बडे नेता चाहेंगे। वैसे भी रायशुमारी करने वाले किसी को ये नहीं बताएंगे कि रायशुमारी में किसका नाम निकलकर आया। बल्कि जिसे नेता घोषित किया जाएगा,कहा जाएगा कि रायशुमारी में भी उसी का नाम निकल कर आया था। लेकिन इस सारी कवायद के बीच में फुल छाप के नेताओं को राहत इस बात से मिल रही है कि उपर वालों ने उमर का लफडा हटा दिया है। पहले उम्र की जो सीमा तय की गई थी,अब उसमें सीधे दस साल बढा दिए गए है। यानी पहले मण्डल के नेता की अधिकतम उम्र 35 साल तय की गई थी,लेकिन अब इसे बढा कर 45 कर दिया गया है। इसी तरह जिले के पदों की उम्र में भी दस साल बढा दिए गए है। फूल छाप के वो तमाम नेता अब खुश है जिनकी उम्र ज्यादा होने से उन्हे रेस में से बाहर कर दिया गया था। अब तमाम के तमाम नेता रेस में शामिल हो गए है। पदों को प्राप्त करने में किसकी किस्मत साथ देगी ये आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा।
राजस्व महकमें में जारी है वसूली
सरकार लाखे दावे करें कि राजस्व महकमे में नामांतरण सीमांकन जैसे मामलों का निपटारा अभियान चलाकर किया जा रहा है और लोगों को सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही है। लेकिन हकीकत ये है कि इस महकमे में बिना लिए दिए कोई काम नहीं होता। इतना ही नहीं छोटे छोटे कामों के फीस भी बहुत तगडी वसूली जाती है। हाल ही में रंगे हाथों धराए पटवारी का मामला सामने आने से ये बात पूरी तरह प्रमाणित हो गई है। राजस्व महकमे में नामांतरण और सीमांकन जैसे मामलों की फीस हजारों में वसूली जाती है। अभी तीन पहले लोकायुक्त वालों ने पंचेड के पटवारी के हाथ धुलवाए तो हाथ लाल हो गए। पटवारी ने सीमांकन की रिपोर्ट बनाने के लिए कम नहीं पूरे पचास हजार की रिश्वत मांगी थी। आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेट कितने बढ गए है। लोग बढे हुए रेट देकर काम करवाने के लिए मजबूर है। दुखदायी बात यह भी है कि रंगे हाथों पकडाने पर भी लोगों के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती। उन्हे लगता है कि कुछ ले देकर उनका मामला निपट ही जाएगा और उसके बाद फिर से वसूली का खेल बेधडक चालू हो जाएगा। इस तरह के मामलों में पकडे गए आरोपी की तमाम सम्पत्तियों की जांच भी अनिवार्य कर दी जाना चाहिए ताकि उसके द्वारा पहले के दिनों में हासिल की गई काली कमाई का हिसाब भी हो सके।